अत्याचारी ही नहीं प्रेम पुजारी भी थे अंग्रेज

August 4, 2015 7:22 PM0 commentsViews: 604
Share news
मिसेज गिब्बन की मुहब्बत का गवाह, डांक बगला दुल्हा सुमाली

मिसेज गिब्बन की मुहब्बत का गवाह, डांक बगला दुल्हा सुमाली

नजीर मलिक

“भारत वर्ष में दो सौ साल तक राज करने वाले अंग्रेजो की गुलामी के किस्से तो बहुत हैं, मगर उनकी शराफत व नेकनामी की कहानियां किसी को पता नहीं। नेपाल बार्ड़र इलाके के तकरीबन एक दर्जन जमींदारों की नीति व उनके विकास कार्य ही नहीं, उनकी मुहब्बत से भरी कहानियां बताती हैं कि हर अंग्रेज बुरा नही होता।”

नेपाल से सटे सिद्धार्थनगर ज़िले की 68 किमी सीमा के समानान्तर तराई इलाक़े में ब्रिटिश अफसरों एक से बढ़कर एक मानवीय कहानियां दर्ज हैं। यहां अंग्रेजो ने आवाम के लिए नहरें खुदवाईं, सड़कें बनवाईं, खेती को संरक्षण दिया और साथ में मुहब्बत का पैगाम भी। अंग्रेजों ने सीमा से सटे बजहां, बटुवां, मझौली, मरथी, सिसवां, जैसे इलाकों में लगभग एक दर्जन कृत्रिम जलाशय बनवाए और उससे पांच सौ किलोमीटर लंबी नहरें निकालकर इलाके को धन-धान्य से भर दिया। विश्व प्रसिद्ध कालानमक धान के संरक्षण का श्रेय उन्हीं को जाता है।

सिद्धार्थनगर जिले के उत्तरी क्षेत्र में विकास खंड बर्डपुर अन्तर्गत दूल्हा, बर्डपुर कस्बा, अलीदापुर जैसी जगहों पर अंग्रेज़ जमींदारों की बूढ़ी हवेलियां ब्रितानी हुकूमत की अनेक कहानियों को अपने भीतर छुपाए खड़ी हैं। साल 1844 में अलीदापुर क्षेत्र के जमींदार व गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर मिस्टर पेपे, बर्डपुर स्थित कोठी के तत्कालीन मालिक व गोरखपुर के जिलाधिकारी रहे मिस्टर बर्ड से जुड़ी कहानियों को यह हवेलियां आज भी बयां कर रही हैं।

अंग्रेजों ने अवध की सत्ता हड़पने से पहले उत्तर में अनेक जमींदारी स्थापित की थी, जिनमें बर्डपुर, नेउरा ग्रांट, दुल्हा कोठी, अलीदापुर और सरौली प्रमुख रहीं। बर्डपुर कस्बे का नामकरण भी अंग्रेज जमींदार आर.एन.बर्ड जो 1829 में गोरखपुर के कमिश्नर थे, के नाम पर हुआ। बर्डपुर वास्तव में अंग्रेज जमींदारों की रियासत थी, जिसमें 14 मौजें थे। आज भी इन मौजों को उनके क्रमांक से जाना जाता है। बर्डपुर स्टेट की स्थापना 1832 में की गई थी। जे.जे. मैकचालन इसके जमींदार थे। इसका स्वामित्व पचास वर्ष के लिए एलेक्जेंडर एंड कंपनी कोलकाला को सौंपा गया, पर यह फर्म पट्टे की शर्त को पूरा नहीं कर सकी। नतीजतन, एक मार्च 1934 में यह सम्पत्ति डब्लू.एफ.गिब्बन और जे.काक को बेच दी गई।

वर्ष 1948 में रियासत का प्रबंध देख रहे एच.गिब्बन की मृत्यु हो गई। उसके बाद एक वर्ष तक उनकी पी ने प्रबंध संभाला। मिसेज गिब्बन ने डब्लू पेपे को रियासत का प्रबंधक बनाया। इस दौरान दोनों की मुहब्बत परवान चढी। दुल्हा के इसी डाकबंगले में दोनों ने अनेक शाम एक दूसरे की आंखों में आंखें डाल कर जीने-मरने की कसमें खाईं और फिर शादी कर लिया।

नेपाल सीमा से सटे ककरहवा कस्बे से थोड़ी दूर स्थित दुल्हा ग्रांट के नाम से पृथक जमींदारी 1840 में बनाई गई। यहां आलीशान इमारत का निर्माण वर्ष 1958-60 में विलियम पेपे ने कराया। बाद में उन्होंने इस कोठी को अपने पोते जे.एच.एच. पेपे को इंग्लैंड जाने से पूर्व सौंप दिया। इस कोठी में पेपे अपने दो भाइयों व बहन के अलावा अपनी पत्नी के साथ काफी दिनों तक रहे। यह बर्डपुर स्टेट के स्वामियों की अंतिम पीढी थी। वर्तमान में उनके भवनों बर्डपुर व दुल्हा कोठी को क्रमशः सिंचाई व लोक निर्माण विभाग ने अपने कब्जे में ले रखा है। इन बूढ़ी हवेलियां को संरक्षित रखना सरकार की जरूरत हैं तकि इतिहास के दस्तावेज सुरक्षित रहें।

Leave a Reply