Exclusive- टीपू सुल्तान की वंशज शहजादी नूर की तस्वीर बनेगी ब्रिटिश नोटों की शोभा

October 20, 2018 4:39 PM0 commentsViews: 625
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— दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे सफल जासूस थी शहजादी नूर, जिससे हिटलर भी खौफ खाता था

— जर्मनी में मौत की सजा से पहले उसके आखिरी शब्द थे लिबरेटा, जिसका अर्थ है आजादी

नजीर मलिक

टीपू सुल्तान की वंशज नूर उन निसा उर्फ शहजादी नूर की तस्वीर अब ब्रिटिश नोटों की शोभा बनने वाली है। ब्रिटेन में इस पर लगभग निर्णय हो चुका है। सन 2020 में छपने वाल बड़े नोटों पर शहजादी नूर की तस्वीर को वहां के बड़े नोटों पर जगह दी जायेगी।

खबर के मुताबिक बैंक ऑफ इंग्लैंड ने हाल ही में 2020 से प्रिंट में जाने के लिए बड़े मूल्य नोट के नए संस्करण की योजना की घोषणा कर संकेत दिया था कि वह नए अक्षरों पर संभावित पात्रों के लिए सार्वजनिक नामांकन आमंत्रित करेगा। इस हफ्ते के शुरू में दाखिल की गई एक ऑनलाइन याचिका पर बुधवार तक सैकड़ों हस्ताक्षर हो चुके हैं। जिसमें टीपू सुल्तान के वंशज भारतीय सूफी, संत हजरत इनायत खान की पुत्री शहजदी नूर खान को मुद्रा पर सम्मानित किया जाना है।

अंग्रेजों के सबसे खतरनाक भारतीय दुश्मन माने जाने वाले टीपू सुल्तान के वंशज इनायत खान बेटी और बेहद मेधावी शहजादी ने आखिर ऐसा क्या कर दिया की अंग्रेज उसे इतना बड़ा सम्मान देने को मजबूर हो गये।

द्धितीय विश्व युद्ध की खतरनाक जासूस थी शहजादी

दरअसल बला की खुबसूरत और बेहद बुद्धिमान नूर युवावस्था से ही जासूस बनना चाहती थी। उसने इसका विधिवत प्रशिक्षण भी लिया था। इसी बीच 40 के दशक में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। मुकाबला तानाशाही बनाम लिबरल शक्तियों के बीच था। शहजादी नूर का मानना था कि अगर उन्होंने मित्र राष्ट्रों के लिए कुछ किया तो उदारवादी ताकतों की मदद तो होगी ही, भारत की आजादी के लिए भी इंगलैंड पर नैतिक दबाव बनेगा। लिहाजा उन्होंने तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी के खिलाफ काम करने की सोचा और उनने मित्र राष्ट्रों की तरफ से जासूसी करने का निर्णय लिया।

शहजादी के कारनामों से हिटलर भी था परेशान

1942 में वह फ्रांस और जर्मनी में रह क’र जासूसी करने लगीं। उनके काम से हिटलर और मुसोलिनी बहुत परेशान थे। हिटलर की जासूसी विंग गेस्टापो के दर्जनों शातिर जासूस शहजादी की तलाश् में कई देशों की खाक छानने में लगे थे। आखिर नवम्बर 1943 में उन्हें गिरफ्तार कर जर्मनी के फार्जेम जेल में डाल दिया गया।

सितम्बर 1944 में गोली मार कर दी गई मौत की सजा

श्रावानी बसु द्धारा शहजादी की जीवन वृत्त पर लिखी गई किताब श्जासूस राजकुमारी के मुताबिक शहजादी नूर से 10 महीनों तक जेल में कड़ी पूछताछ की गई। उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं। लेकिन उन्होंने कोई भी रहस्य नहीं खोला। अंत में सितम्बर 1944 में उन्हें गोली मार कर मौत दी गई। पत्रकारों के मुताबिक जब उन्हें गोली मारी गई तो उनके मुंह से जर्मन भाषा का एक ही शब्द निकला “लिबरेटा” जिसका अर्थ है “स्वतंत्रता/आजादी” ।

उन्हें मिले हैं विश्व के कई प्रतिष्ठित सम्मान

उनके साहस की गाथा आज भी म़ित्र राष्ट्रों के बीच गाई जाती है। उनकी किताबों में शहजादी नूर एक नायिका के रूप में दर्ज है। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें युनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में लंदन के गॉर्डन स्क्वेयर में स्मारक बनाया गया है, जो इंग्लैण्ड में किसी मुस्लिम महिला ही नहीं किसी भी एशियाई महिला के सम्मान में समर्पित इस तरह का पहला स्मारक है।

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