गठबंधन की सिर फुटौवल से भाजपा खेमे में जयकारे की उम्मीद, भगवा खेमा अशान्वित

November 20, 2018 4:25 PM0 commentsViews: 1782
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नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। पीस पार्टी के अध्यक्ष डा. अयूब के डूमरियागंज से चुनाव लड़ने की चर्चाएं एक बार फिर जोरों पर हैं। कुछ दिन पूर्व खबरें उछली थीं कि वह शायद डुमरियागंज से चुनाव न लड़े और गठबंधन से उन्हें राज्यसभा में भेजा जाये, लेकिन हाल की रणनीतियां बताती हैं कि उनकी दिलचस्पी डुमरियागंज से जीत कर संसद में पहुंचने की है। अगर यह खबर पक्की है तो डुमरियागंज में मुस्लिम वोटों के लिए एक और महाज खड़ा होने की आशंका है जो बीजेपी की फतह की एक और वजह बन जायेगी। इन सियासी हलचलों को लेकर भाजपा खेमा बहुत अशान्वित है।

पता चला है कि पीस पार्टी अध्यक्ष ने डुमरियांगंज लोकसभा सीट से पीस पार्टी के अध्यक्ष ने एक बार फिर चुनाव लड़ने का  इरादा बनाया है। इससे पूर्व भी वह यहां से किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन कामयाब न हो सके थे। तब वह अकेले लड़े थे, लेकिन इस बार उनका इरादा गठबंधन से चुनाव लड़ने का है।इस प्रकार गठबंधन से टिकट के चार दावेदार हो गये हैं। इनमें अगर पेंच फंसा और गठबंधन टूटा तो भाजपा के खिलाफ कई मुस्लिम चेहरों के उतरने की संभावना है। जो अन्ततः भाजपा के लिए ही लाभदायक होगी।

  फिलहाल क्या है गठबंधन का स्वरूप

वैसे तो यूपी में सपा बसपा सहित कई दलों में गठबंधन की बातें मौखिक रूप से तय हो चुकी हैं। मगर अभी तक बसपा और सपा के बीच समझ पक्की हो चुकी है। राजस्थान, एमपी और छत्तीगढ़ के चुनाव परिणाम तय करेंगे कि कांग्रेस गठगंधन में रहेगी या अलग से लड़ेगी। इसके अलावा डाक्टर अयूब की पार्टी का गठबंधन से सीटों को लेकर कोई बात तय नहीं है। जबकि अखिलेश ने यह साबित कर दिया है कि बसपा से गठबंधन को लेकर वह हर हालत में प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए वे कुछ खास सीटों की कुर्बानी से पीछे नहीं हटेंगे। उनके लिए भाजपा को हराना ही उद्देश्य है।

 क्या है वर्तमान स्थिति

वर्तमान में डुमरियागंज सीट से बहुजन समाज पार्टी की दावेदारी हर हाल में तगड़ी है। गत लोकसभा चुनाव में बसपा यहां दूसरे नम्बर पर थी। गठबंधन के नियम के अनुसार जीती सीटो पर जीतने वाले दल और हारने वाली सीटों पर दूसरे नम्बर रहने वाली पार्टी का दावा मजबूत  होता है। गत लोकसभा चुनाव में बसपा यहां दूसरे नम्बर पर थी, इसलिए बसपा इसे अपनी सीट मान रही है। शायद इसी विश्वास के चलते बसपा के लोकसभा प्रभारी/प्रत्याशी आफताब आलम समय से काफी पहले चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। उनका दावा है कि बसपा ही यहां से चुनाव लड़ेगी।

सपा, पीस और कांग्रेस की दावेदारी और मुहम्मद मुकीम

जहां तक सपा का सवाल है उनके सीनियर  नेता माता प्रसाद पांडेय और हाल तक राज्यसभा सांसद रहे अलोक तिवारी यहा से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, लेकिन जिस प्रकार से अखिलेश यादव हर हालत में बसपा से गठबंधन के लिए खुद चार कदम पीछे जाने की बात बार बार कह रहे हैं उससे नहीं लगता कि सपा यहां से अपने उम्मीदवार के लिए प्रतिष्ठता का प्रश्न बनायेगी। दूसरी तरफ अगर तीन प्रदेश के चुनावों के बाद गठबंधन में कांग्रेस शामिल हो भी जाये तो भी उसे यह सीट नहीं मिलने वाली। चूंकि गठबंधन होने पर यूपी में  कांग्रेस को सात से दस सीटें ही मिलेंगी, ऐसे में वह अपने बड़े नेताओं को छोड़ कर यहां से मोहम्मद मुकीम साहब के टिकट को प्रतिष्ठा  का प्रश्न बनायेगी, इस सोच को स्वयं बड़े कांग्रेसी भी नहीं मानते। ऐसे में बचते हैं डाक्टर अयूब।

डा. अयूब का प्लस प्वाइंट, और गठबंधन की बेचैनी

सूत्रों के मुताबिक पीस पार्टी के अध्यक्ष डा, अयूब के पक्ष में एक ही बात जाती है कि उन्होंने गोरखपुर के गत उपचुनाव में साफ्ट कार्नर रख कर सपा उम्मीदवार की अप्रत्यक्ष मदद की थी। वह एक पार्टी के अध्यक्ष हैं, लिहाजा गठबंधन में सीटों के बंटवारे में उनके खुद के लड़ने की इच्छा को नजर अंदाज करना मुश्किल है। यही उनकी ताकत है। लेकिन मायावती पीस अध्यक्ष को पसंद नहीं करतीं। उनका स्वाभाव भी जिद्दी है। उनकी पार्टी यहां दो नम्बर पर थी। इसलिए वह इसे मानेंगीं, इसमें संदेह है। वैसे अखिलेश की मंशा थीं कि  डा. अयूब चुनाव न लडें  बल्कि राष्ट्रीय प्रचारक के रूप में चुनाव प्रचार में हिस्सा लें और चुनाव के बाद राज्य सभा में जायें, लेकिन डा. साहब की चुनाव की लड़ने की मंशा ने गठबंधन के खेमे को बेचैन कर दिया है।

क्या होंगे सियासी हालात, क्या लगेगा भाजपा का जयकारा ?

राजनीतिक हालात बताते है कि  मामला पेचींदा है। अगर टिकट बसपा के पक्ष में गया तो पीस पार्टी अध्यक्ष्र  और कांग्रेस की ओर बागी प्रत्याशी उतरने की संभव नाएं कायम रहेंगी। यह तय है कि सपा से कोई बगावत नहीं होगी। बसपा के उम्मीदवार आफताब आलम का कहना है कि गठबंधन से जिसे भी टिकट मिलेगा, उन्हें मंजूर होगा। परन्तु अन्य दावेदार ऐसी घोषणा नहीं कर रहे।  दूसरी तरफ  लोगों का मानना है कि टिकट मिले या न मिले, गठबंधन में बगावत होगी जरूर। अगर ऐसा हुआ तो इस चुनाव में भी भाजपा की जय जयकार गूंजेगी, इति सिद्धम।

 

 

 

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