… तो क्या गोरखपुर सदर सीट पर पिछले उपचुनाव का इतिहास दोहराया जायेगा?

April 14, 2019 1:37 PM0 commentsViews: 698
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नजीर मलिक

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूर्व संसदीय सीट गोरखपुर सदर से हालांकि भाजपा प्रत्याशी का एलान नहीं हुआ है। लेकिन अब इस बात  के पूरे आसार है कि वहं से पिपराइच के विधायक और मुख्यमंत्री के करीबी महेन्द्रपाल सिंह  चुनाव लड़ेगे। यह खबर जैसे ही सार्वजनिक हुई, लोगों में चिमगोइयां होने लगीं कि क्या पिछले उपचुनाव में भाजपा अपनी हारी सीट पर दुबारा कब्जा करने में कामयाब हो पायेगी।

निराश हैं प्रवीण निषाद व उपेन्द्र शुक्ल समर्थक

‘ज्ञात रहे कि पिछले उपचुनाव में भाजपा के उपेन्द्र शुक्ल यहां से भाजपा प्रत्याशी थे। वह यहां कड़ी टक्कर में बसपा समथर्मत सपा के प्रवीण निषाद से चुनाव हारे थे। प्रवीण ने अभी  सपा त्याग कर भाजपा से हाथ मिला लिया है। उन्हें आशा थी कि भाजपा उन्हें गोरखपुर से उम्मीदवार बनायेगी। लेकिन खबर आई कि पिपराइच विधायक महेन्द्रपाल सिंह यहां से भाजपा प्रत्याशी होने वाले हैं। इससे प्रवीण निषाद व उपेन्द्र शुक्ल दोनों के समर्थकों में निराशा है।

सपा ने फिर खेला बड़ा दांव

बताया जाता है कि भाजपा द्धारा प्रवीण निषाद को टिकट न देने से निषाद समाज में बड़ी निराशा थी।उधर सपा ने एक बड़ा दांव फिर खेला। उसने पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद को गोरखपुर सदर सीट से प्रत्याशी बना कर निषाद मतो में अपनी पैठ बरकरार रखा है। गोरखपुर सीट पर निषादों के सबसे अधिक वोट हैं। यहां निषाद मत साढ़े तीन लाख, दलित और मुस्लिम क्रमशः ढाई ढाई लाख और यादव मतदाता डेढ़ लाख हैं।  यहां ब्राह्मण मतदाता भी  डेढ लाख हैं। रामभुआल निषाद पूर्व मंत्री रहे हैं। निषाद समाज में उनकी पैठ काफी मजबूत मानी जाती है।

ब्राह्मण मतदाता किधर जायेगा

गोरखपुर की राजनीति मे अपनी उपेक्षा से ब्राह्मण समाज पहले भी दुखी था, ऊपर से उपेन्द्र शुक्ल के टिकट कटने की आशांका से वह और भी चिंतित है। उधर गोरखपुर के सबसे प्रभावशाली ब्रहमण/ पूर्वमंत्री हरिशंकर तिवारी परिवार (जिसे हाता परिवार भी कहा जाता है) पूरी तरह विरोधी खेमे की राजनीति कर रहा है। जाहिर है यह खेमा ऐसी स्थिति में ब्रह्मण समाज को गठबंधन की तरफ ही खींचने की कोशिश करेगा।  यह सर्वविदित है कि पूर्चांचल के बड़े हिस्से में हाता परिवार ब्राह्मणों का नेतृत्वकर्ता माना जाता है।

इस हालत में  परिस्थितियां भाजपा के बिलकुल खिलाफ होंगी। फिलहाल भजपा के अधिकृत प्रत्याशी की घोषण नहीं हुई है, इसलिए इसे सिर्फ कयासबाजी माना जा सकता है, लेकिन अगर परिस्थितियां यही रहीं तो गोरखपुर में भाजपा को एक बार फिर खतरनाक हालात से सामना करना पड़ सकता है।

 

 

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