निषाद पार्टी के अलग होने के बावजूद गोरखपुर में गठबंधन की ताकत बरकरार

March 31, 2019 2:06 PM0 commentsViews: 1830
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अजीत सिंह

“युपी के गोरखपुर जिले की सदर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी को लेकर काफी उलटफेर हो गया है। शुक्रवार से शुरु हुआ सियासी ड्रामा शनिवार को भी जारी रहा। शनिवार को सपा व बसपा गठबंधन ने रामभुआल निषाद को मैदान में उतार कर अपनी मंशा जाहिर कर दी। वर्तमान सदर सांसद प्रवीण कुमार निषाद के पिता व निषाद पार्टी के मुखिया डा. संजय निषाद भाजपा के बेहद करीब आ चुके हैं। उन्होंने गठबंधन से नाता तोड़कर भाजपा से जुड़ने का संकेत दे दिया है। यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर की साीट है और वे यहां से लगातार सांसद का चुनाव जीतते रहे हैं।।”

उपचुनाव के बाद एक बार फिर लगा था कि पिछली वाली स्थिति एक बार फिर बनेगी। हालांकि इस बार सपा-बसपा का दांव नया है। भाजपा व कांग्रेस ने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा पुन: उपेंद्र दत्त शुक्ला या डा. धर्मेंद्र सिंह पर दांव आजमा सकती है। कई निषाद नेता भी उनके पाले में हैं।

जिले के मतदाता चकित हैं और कह रहे हैं कि अब निषाद वोटों में बिखराव तय है। निषाद वोट के ही सहारे अब कोई सियासी पार्टी जीत हासिल नहीं कर सकती। निषाद वोटों में सेंध लग चुकी है। वर्तमान सदर सांसद व निषाद पार्टी द्वारा उठाया गया कदम उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। भाजपा को टक्कर देने के लिए गठबंधन अब भी मजबूत है।

क्या कहते हैं जानकार?

बार एसोसिएशन सिविल कोर्ट के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य एडवोकेट नजमुल हक मारुफी का कहना है कि जिस व्यक्ति को सपा व बसपा ने सांसद बनाया आज उसी ने अपने फायदे के लिए पार्टी को अलविदा कह दिया।जनता इसे अच्छी तरह समझती है। इसलिए सांसद प्रवीण निषाद के चले जाने से गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

जानकारों की नजर में  सपा व बसपा का गठबंधन मजबूत है। चुनाव एक जाति विशेष का वोट हासिल करके नहीं जीता जा सकता। सबका साथ लिए बगैर कोई प्रत्याशी नहीं जीत सकता। गठबंधन अभी भी दमदार है। रामभुआल निषाद की भी निषाद वोटों पर अच्छी पकड़ है। इसलिए मुकाबता बेहद दिलचस्प मुकाबला होगा।

क्या है गठबंधन की ताकत का राज

क्या है गठबंधन की ताकत का राज? बता दें कि इस सीट पर , दलित मुस्लिम और यादव मतादाता लगभग ढाई ढाई लाख हैं। गठबंधन उम्मीदवार रामभुआल खुद निषाद समाज कि हैं, जिसकी तादाद भी लगभग 2.60 रामभ्आल इसमें भी सेंध लगाएंगे ही, गोरखपुर में गैरयाद पिछडे भी 3.60 है। इसमें भी कुछ अति पिछडें वोट गठबंधन के साथ रहेंगे ही। इसलिए गठबंधन उम्मीदवार को कमजोर मानना भाजपा के लिए कदाचित भूल होगी।

 

 

 

 

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