exclusive–न कुदरत का रहम, न मुख्यमंत्री का करम, सिद्धार्थनगर की किस्मत में जलते खेत और मरते किसान

April 12, 2016 4:44 PM0 commentsViews: 3597
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नजीर मलिक

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सिद्धार्थनगर। आज फिर हजारों बीघे फसल जल कर खाक हो गई। रोजाना आसमान से कुदरत का कहर आग की शक्ल में टूट रहा है। जमीन पर मुख्यमंत्री के सरकारी कारिंदे अपने बंगलों में कैद हैं। इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच में बुद्ध की सरजमीन पर जलते खेत और मरते किसानों की इबारतें लगातार लिखी जा रही हैं।

कहां हैं हमारी व्यवस्था चलाने वाले? कुदरत से लड़ पाना तो कठिन हैं, लेकिन नुकसान को कम करना अपने हाथ में हैं। लेकिन कैसे कम होगा नुकसान? जिले में दमकल की गाड़ियां सिर्फ पांच हैं। गांवों के पोखरे सूखे हैं। खेत दर खेत की सुरक्षा ऐसे कैसे हो सकती है।

पिछले सात दिनों में आठ इंसान जल कर मर चुके हैं। बीस हजार बीघा फसल जल कर तबाह हो चुकी है। होना तो यह चाहिए था कि अफसर और सियासतदान मिल बैठक कर कुछ करने की सोचते। वैकल्पिक गाड़ियों का इंतजाम करते, पाखरों में पानी भरवाते। लेकिन उन्हें किसान की पीड़ा से गरज ही नहीं।

आला हाकिम को जनता से मतलब नहीं

जिले के आला हाकिम भी गजब के हैं। संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने दस से 12 बजे के बीच के अलावा किसी से न मिलने न फोन उठाने का एलान कर रखा है। उनके राज प्रासाद के दरवाजे भी आम जनता और नेता के लिए बंद हैं। आखिर गम में डूबे पीड़ित किसान कहां जायें?

सियासतदानों के पास दिलासा तो है ही

वो तो सरकारी वेतन वाले आला हाकिम हैं, लेकिन सियासतदसन तो जनता के सेवक हैं। गांवों में दौरा कर मीडिया को बयान और पीड़ित को दिलासा देने के अलावा इन सियासी सेवकों के पास कुछ नहीं है।

जिले के सभी विधायक और एमपी अगर अपने घोषित-अघोषित संसाधनों से दस लाख भी खर्च कर देते तो तो शायद एक हजार मोहताज किसानों को जिंदगी ढर्रे पर लाने में मदद मिल जाती, लेकिन नहीं मीडिया तो है न, उनकी झूठ मूठ की बात छाप ही देगी। सस्ती लोकप्रियता के अलावा उन्हें और चाहिए भी क्या? जनता मरती है तो मरती रहे।

अभिमन्यु की  तरह जंग में अकेले डटे हैं एसपी

जिले के नौजवान एसपी अजय कुमार साहनी इस जंग में अकेले ही मोर्चा ंसंभाले हुए हैं। दमकल की गाड़ी जल गई तो बनवाने के लिए सरकारी मदद के बजाये स्वंय उसकी मरम्मत कराई। चालक नहीं होने पर अपने चालकों को मोर्चे पर लगाया। लेकिन अकेला चना भाड़ तो नहीं फोड़ सकता है।

…. तो आओ और चीखो, चीखना तो पड़ेगा ही

तो आओ हम बंगलों में आराम फरमाते अफसरों और फर्जी बयानबाजी करते सियासतदानों के नाम पर मातम करें। इनके खिलाफ जोर जोर से चीखें ताकि हमारी आवाज अखिलेश यादव के नक्कारखाने तक पहुंच जाये। वरना कल कमला प्रसाद मरे, वसीम के खेत जले हैं, तो आने वाले दिन आपका नम्बर भी आ सकता है।

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