पैगामे-ए-मुहब्बत बांटने वाले रोल माडल का जाना अखर गया बलरापुर वालों को

February 16, 2019 2:30 PM0 commentsViews: 506
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सगीर ए खाकसार

बलरामपुर। जिले की  सामाजिक,सांस्कृतिक,साहित्यिक गतिविधियों में आपकी गरिमामयी मौजूदगी रहती थी।अदब से बेहद लगाव था।नाशिस्तो में भी हिस्सा लेते थे।आवाज़ में मिठास थी ।जब भी मिलते कोई न कोई शेर गुनगुनाते रहते।देश भक्ति का आलम यह था 1965 में भारत पाक युद्ध मे शहीद हुए बलरामपुर के नौजवान विनय कायस्था की प्रतिमा की स्थापना के लिए लंबा जद्दोजहद किया और भूख हड़ताल पर भी बैठे।काफी लंबे जद्दो जहद के बाद बलरामपुर के वीर विनय चौराहे पर विनय कायस्था की प्रतिमा स्थापित करने में उन्हें कामयाबी मिली।

दादा के उन संघर्षों में अंशमात्र की भूमिका मेरी भी रही।उनके साथ  एक दिन के उपवास पर मैं भी बैठा।बलरामपुर का होटल पथिक उनका दूसरा घर था दोस्तों, बुद्धिजीवियों की महफिलें वहीं सजती थीं।विमर्श के केंद्र में बलरामपुर का विकास ,शिक्षा,खेलकूद,हिंदुस्तान की गंगा यमुनी तहज़ीब आदि होती थी।सच्चे अर्थों में आज़ाद सिंह गंगा यमुनी तहज़ीब और साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक थे।वो हमेशा ही युवाओं और छात्रों को समाज मे सकारात्मक बदलाव के लिए प्रेरित करते रहते थे ।बलरामपुर प्रवास के दौरान मुझे उनसे अपार स्नेह व प्रेरणा मिला।

आज़ाद सिंह के बेहद करीबी और और दैनिक बलरामपुर के संपादक इमामुद्दीन कहते हैं उन्होंने बलरामपुर से कुछ लिया नहीं ,हमेशा ही दिया।वो बलरामपुर से वो बेपनाह मोहब्बत करते थे। सोशल एक्टिविस्ट वैष्णवी सिकरवार आज़ाद सिंह के निधन से दुखी हैं वो उन्हें “आज़ाद सर”कहकर बुलाती थीं।उनकी पूरी टीम बस आज़ाद सिंह के एक हुकुम पर किसी भी आंदोलन में कूदने से नहीं हिचकिचाते थे।वैष्णवी कहती हैं “खबरदर!अगर किसी ने ये कहा कि आज़ाद सिंह नहीं रहे”वो हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेंगें।

मूलतः बलरामपुर के रहने वाले और फिलवक्त मस्कट में कार्यरत एम नैय्यर उमर आज़ाद सिंह को याद करते हुए कहते हैं कि मेरी मुलाकात उनसे करीब डेढ़ दशक पहले हुई थी।देश – भक्ति और शहीदों के प्रति उनका सम्मान हर पीढ़ी के लिए सबक़ होना चाहिए। उनकी देश भक्ति ऐसी नहीं थी जो धर्म- संप्रदाय पर आकर दम तोड़ देती हो।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नर्वदेश्वर शुक्ला आज़ाद सिंह पुराने मित्रों में से हैं।करीब दो माह पूर्व लंबे समय के बाद सिद्धार्थ नगर ज़िले के पैतृक गांव बोहली में शुक्ला जी और आज़ाद सिंह की मुलाकात हुई थी। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शुक्ला पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि हम सब के छोटे भैया और प्रदेश  के राजनैतिक हल्के मे “कुवर साहब “के नाम से मशहूर थे। 1974 से मेरी और उनकी दोस्ती थी।जब मै उत्तर प्रदेश किसान कांग्रेस का अध्यक्ष था तब वे मेरे साथ महामंत्री थे ।बाद मे वे अखिल भरतीय किसान कांग्रेस के  सेक्रेट्री हुये ।

श्री शुक्ला कहते हैं सियासत में उनके जैसा ईमानदार,निष्कपट, इंसान मैंने नहीं देखा ।मैंने एक सच्चा मित्र खो दिया है और बलरामपुर वालों के लिए यह क्षति अपूर्णनीय है। उनकी सादगी,ईमानदारी ,और सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पण उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करदेती थी। दया,प्रेम,और परोपकार उनके स्थायी गुण थे जो उनकी शख्सियत में चार चांद लगाते थे।

एम एल के पीजी कालेज बलरामपुर के प्रो. पी सी गिरी कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के निधन के बाद से उनके कोमल और भावुक हृदय में बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र के पूर्व नाम की पुनर्बहाली का सपना, एक आंदोलन की शक्ल लेने लगा था।आजकल वे इस अभियान को वीर विनय की मूर्ति स्थापना की तरह ही धीरे धीरे गति प्रदान कर रहे थे। बलरामपुर राजपरिवार के अति निकटवर्ती सामंत परिवारों में से एक होने के नाते वे भव्य कोठी और पर्याप्त  ज़मीन-ज़ायदाद के पैदायशी वारिस थे, लेकिन आज़ाद सिंह की पहचान इन सबसे कम बल्कि उनके मस्तमौला स्वभाव,शेरो-शायरी और गीत-संगीत के प्रेमी होने के नाते थी।

आपसी भाईचारा, अमन और मोहब्बत का चराग हर वक्त रोशन करने  वाले आज़ाद सिंह के जाने से मोहब्बत का एक चराग बुझ गया है।लेकिन “पैगाम” के ज़रिए  मोहब्बत का पैगाम जन जन तक पहुंचता रहेगा।11 फरवरी 1949 को जन्में आज़ाद सिंह  आज 15 फरवरी 2019  इस दुनिया से आज़ाद हो गए।

जिन शहिदों के लिए समाजसेवी, आजाद सिंह अपने जीवन में सघर्ष करते रहे उन्ही शहीदों के शहादत दिवस पर उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

उनका जो काम है वो अहले सियासत जाने

अपना पैगाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुंचे।

अलविदा दादा आज़ाद सिंह!

 

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