संविधान घोषणा के बाद नेपाल में खून खराबे की आशंका, रविवार को नेपाल में दीवाली, मधेसी करेंगे ब्लैक आउट

September 18, 2015 8:41 AM0 commentsViews: 1755
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नजीर मलिक

मधेसी संयुक्त मोर्चा का प्रस्तावित प्रांत विभाजन का नक्शा, जिसमें लाल रंग का हिस्सा अलग मधेस प्रांत का है

मधेसी संयुक्त मोर्चा का प्रस्तावित प्रांत विभाजन का नक्शा, जिसमें लाल रंग का हिस्सा अलग मधेस प्रांत का है

बुधवार को संविधान पर मुहर लग जाने के बाद नेपाल में टकराव के आसार बढ़ गये है। नेपाल सरकार ने जहां रविवार की शाम पूरे नेपाल में दीपावली मनाने की घोषणा की है, वहीं मधेसियों ने रात में ब्लैक आउट का फरमान जारी कर दिया है। इसके बाद वहां खून खराबे के आसार नजर आने लगे हैं।
खबर है कि नेपाल सरकार के दीवाली मनाने की घोषणा की वहां के तीन बड़े राजनीतिक दलों नेपाली कांग्रेस, नेकपा एमाले, नेकपा माओवादी ने खुल कर हिमायत की है। नेपाल की तकरीबन पौने दो करोड़ पहाड़ी मूल की आबादी जश्न मनाने की तैयारियों में है। दूसरी तरफ संयुक्त मधेसी मोर्चा के आहवान पर सवा करोड़ भारतीय मूल के  नेपाली यानी मधेसी उस दिन रात में अपने घरों की बिजली बंद रख कर विरोध करेंगे।

दोनों वर्गों के इन फैसलों से वहां टकराव और हिंसा की आशंका बढ़ गई है। पहाडों पर तो खून खराबे की कोई आशंका नहीं है, लेकिन मैदान के जिलों में जहां पहाड़ी और मधेसी संयुक्त रूप से बसे हुए हैं, हिंसा की पूरी आशंका है। नेपाल के तराई के दो दर्जन जिले इस दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने जा रहे है। सरकार इन क्षेत्रों में सेना का गश्त कराने की तैयारी में है।

क्या है विवाद

नेपाल में विवाद का प्रमुख कारण प्रांतो का सीमांकन है। संविधान के मुताबिक नेपाल में कुल सात प्रांत बनाये गये हैं। इन प्रांतो का सीमांकन उत्तर से दक्षिण दिशा में बेहद लंबा किया गया है, जिससे मधेशी बहुल आबादी का थोड़ा थोड़ा हिस्सा कट कर पहाडी मूल के क्षेत्रों में मिल गया है। इससे चुनावों में मधेसियों की शक्ति समाप्त हो गई है।

संयुक्त मधेषी फोरम के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव का कहना है कि इससे तो पूरी संसद में पहाड़ी ही चुन कर आयें, फिर मधेसियों के हितों की रक्षा कैसे हो सकेगी? उनकी मांग है कि मधेसी आबादी के लिए अलग मधेस प्रात बनाया जाये।

याद रहे कि नेपाल 1996 से ही अशांत है। सन 2006 तक माओवादी आंदोलन के दौरान वहां पन्द्रह हजार लोग मारे गये। इसके बाद संविधान निर्माण के दौरान मधेशियों और पहाडियों में हुई झड़पों में कम से कम दो हजार लोग मारे गये। इधर एक पखवारे में सीमांकन संबंधी आंदोलन के दारान कम से कम सौ लोगों को जान देनी पड़़ी। नये संविधान पर मुहर लगने से एक बार वहां पुनः हिंसा भड़केगी, इससे आम नेपाली इंकार नहीं करता हैं।

फिलहाल नेपाल में तूफान आने से पहले का सन्नाटा है। मधेशी मोर्चा के लोग अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहे हैं, लेकिन रविवार और सोमवार का दिन बहुत नाजुक है। इन्हीं दो दिनों में तय हो जायेगा कि नेपाली राजनीति की अगली दिशा क्या होगी।

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