नाकाबंदी आंदोलन से नेपाल के सीमाई बजारों में छाया सन्नाटा, एक हजार करोड़ का व्यवसाय प्रभावित

December 4, 2015 12:01 PM0 commentsViews: 458
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अजीत सिंह

कृश्णानगर मार्केट में दुकानों पर पसरा सन्नाटा बाता रहा व्यापार की हालत

कृष्णानगर मार्केट में दुकानों पर पसरा सन्नाटा बाता रहा व्यापार की हालत

सिद्धार्थनगर। मधेसी नाकाबंदी आन्दोलन के कारण नेपाल के बिगड़े हालात से सीमावर्ती बाजार चौपट हो गए हैं। महराजगंज और सिद्धार्थनगर से सटे दोनो देशों के नौतनवां, सोनौली, ठूठीबारी, महेशपुर, बुटवल, भैरहवा और कृष्णानगर  में तीन महीने के भीतर करीब एक हजार करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ है।

ठंड के समय गुलजार रहने वाला गर्म कपड़ों का बाजार कृष्णानगर महेशपुर और भैरहवा भारतीय खरीदारों के बिना वीरान पडे हैं। बड़े दुकानदार पूंजी बचाने के लिए सेल का भी सहारा ले रहे हैं। लेकिन यह तरकीब भी आन्दोलन में काम नहीं आ रही है। इसी तरह लखीमपुर.पीलीभीतए बलरामपुर.बहराइच और बिहार सीमा से सटे बाजार भी बेरौनक हो गए हैं। बिहार के सीमावर्ती बाजारों को भी डेढ़ सौ करोड़ से ज्यादा तकी चपत लगी है।

सोनौली, नौतनवां,  ठूठीबारी और बरगदवा बाजार नेपाल के ग्राहकों पर टिका है। इन बाजारों में आम दिनों में रोज नेपाल से बड़ी संख्या में लोग खरीदारी को आते थे। लेकिन मधेसी आंदोलन के बाद तराई बनाम पहाड़ी की लड़ाई में नेपाल से कम ही लोग यहां पहुंच रहे हैं। डीजल.पेट्रोल की किल्लत ने भी समस्या बढ़ाई है।

भारतीय सीमा से सटे नेपाल के रूपन्देही और नवलपरासी क औद्योगिक इलाकों में करीब 200 करोड़ के व्यवसाय का नुकसान हो चुका है। व्यवसायियों का कहना है कि अगर आन्दोलन ऐसे ही चलता रहा तो सीमेंट और कपड़ा उद्योग बंद हो जाएगा।

लगातार जारी आंदोलनए हिंसाए प्रदर्शनए आगजनी के कारण भारत व नेपाल के दोनों ओर के बाजारों में ग्राहकों का आना.जाना कम हो गया है। दुकानों व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों व उद्योग धंधों में ताले लटके हैं। सौ करोड़ का नुकसान अकेले महराजगंज को हो चुका है।

बाजार की कहानी

सोनौली में कपड़ों की दुकानों पर सन्नाटा है। किराना स्टोर भी सूने हैं। पहले ऑटो पार्ट्स के लिए बड़ी संख्या में आने वाले नेपाल के लोग नहीं दिख रहे हैं।

नौतनवा में कपड़े और हार्डवेयर की खरीद के लिए नेपाल के मर्चवार, बुटवल और भैरहवा तक के लोग आते थे। लेकिन अभी इनकी संख्या घट गई है। दुकानदार पूंजी लगाकर माथा पीट रहे हैं।

ठूठीबारी की साप्ताहिक बाजार करीब उजड़ चुकी है। नेपाल के नारायण घाट, गैड़ा कोट अरुन खोला, दाउन्ने देबी, बरघाट, सेमरी, गोपालगंज, गुमही, सोनवल, खैरहली, नवलपरासी के खरीदारों से गुलजार रहने वाली बाजार में सन्नाटा है।

महेशपुर की ठूठीबारी से सटे नेपाल के इस बाजार में भारतीय गर्म मशाला और गर्म कपड़ों की खरीद के लिए पहुंचते थे। लेकिन वहां से रौनक गायब है। कृष्णानगर से सटे गढनी बाजार में भी चनरौटा दांग, तुलसीपुर, बहादुरगंज तक के हजारों नेपाली खरीदारी करने आते थे, लेकिन इस बार वह गायब हैं। यहां से लोग रूई, रजाई के कपडे और रोजमर्रा के भारतीय सामान ले जाते थे।

तो खाने के लाले पड़ जाएंगे

ठूठीबारी व्यापारमंडल अध्यक्ष भवन प्रसाद गुप्ता कहते हैं कि आन्दोलन से पहले रोजाना करीब एक करोड़ का कारोबार होता था। अब यह घटकर चार से पाच लाख पर पहुंच गया है। ऐसे ही रहा तो खाने के लाले पड़ जाएंगे। अब तो नेपाल के सुकरौलीए बैरियहवा, परसिया, वेलासपुर, रमपुरवा, भुजपवाह, खैरटहवा, रमपुरवा, महेशपुर, गोपालपुर, हरपुर के लोग ही नहीं आ रहे हैं।

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