बिजली से तीन दर्दनाक मौतें, एक को मिलेगा मुआवजा, दो को नहीं, लेकिन क्यों?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। भारी बारिश व बादलों की कड़क के साथ पिछले 24 घंटों में तीन तौते हा चुकी हैं। इनमें दो आकाशीय और एक घरेलू बिजली के प्रवाह से मो गये हैं। इस पूहले की भारी बारि में एक दिन में बिजली के कहर से चार मौते हुई थीं व एक ने सरकारी बिजली के सपर्षाघात से जान गंवाई थीं। लेकिन इन सात लोगों की मौत को आपदा मान कर सरकार उनके लिए 4 से 5 लाख मुआवजा देगी, लेकिन सरकारी बिजली के करंट से मरने वालों को कुछ भी नहीं मिलेगा। जरा इस सरकारी नियम को समझिये।
शुक्रवार को शाम को सिद्धार्थनगर कोतवाली क्षेत्र के खुटहना गांव में शुक्रवार शाम बिजली गिरने से खुटहना गांव निवासी हरिशंकर पांडेय (46) की मौत हो गई है। इसी प्रकार इटवा थाना क्षेत्र के अमहवा गांव के पास शुक्रवार दोहपर चाट की दुकान लगाने के लिए जा रहे भालचंद्र यादव (39) पर गरज के साथ बिजली गिर गई। इस हादसे में उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसी प्रकार खेसरहा थाना क्षेत्र के पिपरा गांव में शुक्रवार को एक युवक करंट की चपेट में आ गया। इस हादसे में उसकी मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, क्षेत्र के पिपरा गांव निवासी 35 वर्षीय मुकेश गौड़ अपने पड़ोसी पराग प्रजापति की छत पर त्रिपाल उतारने गया था। त्रिपाल लेकर वह नीचे उतर रहा था कि सीढ़ी के बगल में लगे बिजली के पोल के संपर्क में आ गया उसमें करंट प्रवाहित हो रहा था। जब तक लोग को समझ पाए करंट के झटके से उसकी मौत हो गई।
इन तीन घटनाओं पर सरकारी नजर डालिये दो आकाशीय बिजली से मरे हैं वे 4 लाख की मदद पाने के हकदार हैं। लेकिन बिजली पोल के सटने में हुई मौत पर मृतक मुकेश गौड़ को कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। इसका कारण है कि आकाशीय बिजली, सर्पदंश, बाढ़ में उूबने जैसी घटनाओं को सरकार आपदा मानती है। इसलिए सरकार उसे मुावजा देगी, जबकि मुकेश गौड़ अकस्मात बिजली के उसे खंभे से टकरा गया, जिसमें बिजली उतर आई थी। इस प्रकार से माना जाये तो कुदरती आपदा तो नहीं थी, लेकिन वह सरकारी आपदा जरूर थी। कहने का मतलब यह कि इस प्रकार की सैकड़ों घटनायें होती हैं लेकिन सरकार नियमों कानूनों की वोट लेकर उसे मुआवजा नहीं देती है।
इसी प्रकार सदर थने के खुअहन गांव के हरिशंकर पांडेय को भी मुआवजा नहीं मिलेगा। क्योंकी आकाशीय बिजली से मरने के बावजूद उनके परिजनों ने लाश का पोस्टमार्टम नहीं कराया था। हालांकि मौके पर तहसीलदार आदि तमाम सरकारी कर्मी पहुंचे भी थे। मगर उनकी रिपोर्ट पर भी मुआवजा नहीं मिलेगा, क्योंकि नियम है कि ऐसी मौतों का पोस्ट मार्टम कराया जाये। यानी तहसीलदार जिसकी भूमिका मजिस्ट्रेट की होती है। लेखपाल जिसकी रिपोर्ट पर जन्म मृत्यु प्रामाणपत्र बनता है वह पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट से सामने कुछ भी नही है। सरकार को एेसे पुराने कानून पर नये सिरे से विचार करना चाहिए।





