कुंभ भगदड़ में फंसी, बदमाशों से लूटी, फिर किसी तरह भागी तो सावित्री की जान बची
जान बचाने के लिए ले गए लुटेरों के गिरोह ने उनके सारे गहने लूट लिए, खेतों में रात भर छुप कर जान बचाई
नज़ीर मलिक
सिद्धार्थनगर। मौनी अमावस्या के दिन संगम स्नान की पवित्र लालसा लेकर 65 साल की सावित्री प्रयागराज गई, मगर नियति का खेल देखिए, 29 जनवरी को कुम्भ मेले में हुई भगदड़ में वह फंस गई। किसी तरह वहां से बची तो लुटेरों के चंगुल में फंस गई। जहां उसके ज़ेवर लूट लिए गये, वहां उसकी जान पर भी बन आई। ये तो मां गंगा की कृपा थी कि वह किसी तरह से भाग कर सरसों के खेत में जा छिपी, तब उसकी जान बची। एक महिला के रूप में गंगा मईया ने मुझे बचाया। यह कहते हुए बांसी कोतवाली क्षेत्र के ग्राम लहरा निवासी सावित्री देवी (65) फफक पड़ीं। घर पहुंचने के बाद भी वह चौंक जा रही हैं। किसी से बात करने से भी डर रही हैं। वह पूरी तरह से जख्मी हो गईं। बात करते-करते रोने लग रही हैं।
सावित्री देवी को लेकर कल वाराणसी से अपने गांव लेहरा आए उनके छोटे पुत्र अजय ने बताया कि उनकी मां 27 जनवरी को दूसरे गांव के कुछ लोगों के साथ प्रयागराज मौनी अमावस्या स्नान करने गईं थीं। जहां 29 जनवरी को हुई भगदड़ में वह साथ गए लोगों से बिछड़ गईं। जब घर निकलने के लिए झुंसी में ट्रेन पकड़ने पहुंचीं तो वह छूट गई।
इसके बाद मदद के लिए एक सुरक्षाकर्मी से मिलीं। सुरक्षाकर्मी ने एक व्यक्ति से कहा कि माताजी को शिविर में पहुंचा दो। वहां से इन्हें इनके घर भेज दिया जाएगा। वह युवक दूसरी ट्रेन में सवार हुआ और दूसरे स्टेशन पर उतरा। जहां उसके साथ कई महिलाएं थीं। वह उसे लेकर एक सुनसान स्थान पर गया, जहां 50 से अधिक गाने बजाने वाली महिलाएं थीं।
इसके बाद उन्होंने मंगलसूत्र, गले की मख्खी, टप्स और पायल आदि लूट लिया। हमने कहा कि मुझे जाने दो, लेकिन वे लोग मारने लगे। कोई कहने लगा जान से मार दो, तो कोई आंख फोड़ने या कोई गरम पानी डाल देने की बात कर रहा था। वे सब कह रहे थे की बुढ़िया बच कर चली जाएगी तो पुलिस को बता देगी। मैं उनसे जान की भीख मांगती रही, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं थे। अंधेरा हो चुका था। इसी बीच लघुशंका के लिए जाने की बात कहकर निकली और पास सिवान में सरसों के खेत में छिप गई।
वे सभी बाइक से और पैदल मुझे ढूंढते रहे, लेकिन ढूंढ नहीं पाए। पूरी रात यही चला और भोर हो गई तो लुटेरे वहां से भाग चुके थे। सुबह उसी गांव की एक महिला ने देखा तो मुझे अपने साथ लिया और गांव के एक ठाकुर के यहां लेकर गई।
जहां उन्होंने स्नान करवाया, नया वस्त्र दिया। इसके बाद चौकी मातल देई लेकर गए। जहां से पुलिस ने बताए पते की पोस्ट ऑफिस से जानकारी ली। इसके बाद संबंधित थाने में बात की। फिर बड़े भाई के मित्र वाराणसी से प्रयागराज चौकी गए और मुझे वाराणसी ले आए।
छोटे अजय आगे बताते हैं कि वहां से मैं रविवार रात मां को लेकर चला और उन्हें घर लेकर पहुंचा। दरवाजे से उंगली कुचल दी गई। शरीर पर अनगिनत चोट के निशान हैं। दवा खिलाई जा रही है।
सावित्री देवी आज घर पर हैं, वह बहुत खुश हैं कि उनकी जान बच गई, मगर घटना की चर्चा पर अब भी वे सिहर जाती हैं। क्या फिर कभी प्रयागराज जाना चाहेंगी? इस सवाल पर वह इनकार में सिर हिलाती हैं फिर धीरे से कहती हैं, अब नही जाना है। मन चंगा है तो कठौती में ही अपनी मां गंगा हैं।