मन की व्यथा को दूर करने में श्रीमद्भागवत कथा की भूमिका अहम- आचार्य दिव्यांशू
भागवत कथा सुनना और सुनाना दोनों परम सौभाग्य की बात
अजीत सिंह
सिद्धार्थनगर। नौगढ़ क्षेत्र के सुकरौली गांव में चल रहे नौ दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा में श्री सिहेंश्वरी देवी मंदिर के व्यवस्थापक और कथा व्यास आचार्य दिव्यांशु ने श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का प्रसंग सुनाया, जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण से प्रेम किया और श्रीकृष्ण ने उनका हरण कर उनसे विवाह किया। उन्होंने कहा कि भागवत कथा सुनना और सुनाना दोनों परम सौभाग्य की बात है। मन की व्यथा को दूर करने में श्रीमद्भागवत कथा अहम भूमिका निभाती है।
श्री सिहेंश्वरी देवी मंदिर के व्यवस्थापक और कथा व्यास आचार्य दिव्यांशु ने बताया कि रूक्मिणी, विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं और उन्होंने बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपने हृदय में पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। रूकमणि का भाई रुक्म, श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह चेदिनरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुक्मणी ने श्रीकृष्ण को एक पत्र भेजा, जिसमें उसने अपनी इच्छा व्यक्त की कि वह श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती है। पत्र में रुक्मिणी ने बताया कि वह प्रतिदिन पार्वती जी की पूजा करने के लिए मंदिर जाती हैं। श्रीकृष्ण आकर उन्हें यहां से ले जाएं।
रुक्मिणी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि आप इस दासी को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं हजारों जन्म लेती रहूंगी। पार्वती के पूजन के लिए जब रुक्मिणी आई उसी समय प्रभु श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर ले गए और उनसे विवाह कर लिया। रुक्मणी के पिता ने रीति-रिवाजों के साथ दोनों का विवाह कर दिया और इंद्र लोक से सभी देवताओं द्वारा पुष्पों की वर्षा हुई। भीम और शिशुपाल युद्ध का भी उन्होंने विस्तृत रूप से वर्णन किया। साथ ही साथ कृष्ण की लीलाओं पर भी प्रकाश डाला।
इस अवसर पर रामकरण गुप्ता, सुजीत जायसवाल, रामलौट त्रिपाठी, गीता देवी, पंडित शारदा प्रसाद पांडेय, पंडित विक्रम शास्त्री, नितिन शास्त्री, रवींद्र त्रिपाठी, पिंटू त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।