जातीय गणित के मुताबिक इटवा में चार दलों में बराबर की टक्कर के आसार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। प्रदेश की चन्द वीआईपी सीटों में से एक इटवा विधानसभा सीट का जातीय गणित बेहद दिलचस्प है। उसे देखते हुए इटवा में इस बार चारो प्रमुख दलों में बराबर की टक्कर होने के आसार हैं। बढत के लिए कौन कितनी मेहनत करेगा, उसी के आधार पर चुनावी सफलता की जमीन तैयार होगी।
सरकारी आकड़ों के मुताबिक इटवा विधानसभा क्षेत्र में 35.88 प्रतिशत मुस्लिम, 17.70 प्रतिशत दलित मत हैं। इसके अलावा 27 प्रतिशत पिछडे और शेष 20 प्रतिशत सवर्ण मत माने जाते हैं। राजनीतिक जानकारो का कहना है कि दलित और मुस्लिम मतों (53 फीसदी) के सबसे तगड़े दावेदार बसपा के अरशद खुर्शीद और कांग्रेस के मो. मुकीम हो सकते हैं।
दूसरी तरफ 47 फीसदी सवर्ण व पिछडे मतों में सपा के माता प्रसाद व भाजपा के (हरिशंकर सिंह, सतीश द्धिवेदी, सुजाता सिंह अथवा शिवनाथ चौधरी में से कोई एक) उम्मीदवारों की बड़ी हिस्सेदारी सम्भव है। जाहिर है कि एक खेमें के 53 फीसदी वोटों में कांग्रेस और बसपा तथा दूसरे खेमें के 47 फीसदी वोटों में सपा और भाजपा की बड़ी हिस्सेदारी होगी।
अगामी विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बसपा के अरशद खुर्शीद और कांग्रेस के मो. मुकीम (मुकीम नहीं तो सलाम एडवोकेट या मुर्तजा चौधरी) में से मुस्लिम वोटों पर कौन अधिकार जमायेगा। सवर्ण वोटों में यही हालात प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और भाजपा के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेगी।
सपा के माता प्रसाद पांडेय और कांग्रेस के मो. मुकीम राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं। उनके पास अगर अनुभव है तो बसपा के अरशद खुर्शीद और भाजपा के युवा उम्मीदवारों में भी उत्साह की कमी नहीं है। एक तरह से अगले चुनाव यहां अनुभव और उत्साह के बीच रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।