अंग्रेजों के जुल्म का गवाह थाना इटवा होगा जमींदोज, बनेगा नया भवन
––– जंगे आजादी में स्वतंत्रता सेनानियों को कुचलने में अहम रही इटवा थाने की भूमिका
–––159 साल पुराना है भवन, 356 लाख की लागत से बनेगा आदर्श थाना– माता प्रसाद
एम. आरिफ
इटवा, सिद्धार्थनगर । आजादी की लड़ाई लड़ रहे सैकड़ों लोगों की शहादत का गवाह रहा इटवा थाने का भवन अब जमींदोज होगा। यूपी सरकार ने अब इसकी जगह पर साढ़े तीन करोड़ से अधिक की लागत का नया भवन बनाने का फैसला किया है। इसके लिए धन भी आवंटित कर दिया गया है। विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने बताया है कि यह प्रदेश का आदर्श थाना बनेगा।
गत दिवस विधानसभा अध्यक्ष पांडेय ने डीएम नरेन्द्र शंकर पांडेय व एसपी राकेश शंकर के साथ नये थानाभवन का शिलान्या किया। इस अवसर पर श्री पांडेय ने बताया कि इस भवन के निर्माण के लिए पुलिस विभाग को 3 करोड़ 56 लाख रुपये का स्वीकृति मिली है। जिसके सापेक्ष 1 करोड़ 68 लाख 50 हजार रुपये शासन द्वारा अवमुक्त किया जा चुका है।
इसी क्रम में जिलाधिकारी नरेन्द्र शंकर पाण्डेय ने कहा कि नये थाने भवन के निर्माण होते ही जनता की सुविधा के लिये एक आगन्तुक कक्ष का भी निर्माण कराया जायेगा। पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने कहा कि अच्छे प्रयास ही अच्छा परिणाम मिलता है। कम लोग हैं जो ऐसा प्रयास करते हैं। विधानसभा अध्यक्ष के ही प्रयास से नये भवन की आधार शिला मूर्त रूप ले रही है।
कार्यक्रम का संचालन पुलिस क्षेत्राधिकारी दीप नरायण त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर अपर पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार, एसडीएम जूबेर बेग, उग्रसेन सिंह, थानाध्यक्ष रणधीर मिश्रा, ओम छापड़िया, प्रकाश दूबे, नुन्दी काका, अमित दूबे, उदयभान तिवारी, कमरूज्जमा खां , पल्लन पाण्डेय, दुर्गा जायसवाल, राजेन्द्र, रमेश तिवारी, माया राम सहित कई गणमान्य मौजूद रहे।
गुलामी के दौर में जुल्म गवाह रहा है इटवा थाना
दरअसल इटवा थाना 1857 में छिड़ी जंगे आजादी के दौरान भारतीय लड़ाकों पर हुए जुल्मों का गवाह रहा है। जैसे ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम छिड़ा, इस थाने की स्थापना कर दी गई। 1857 में छिड़ी लड़ाई 1858 तक चलती रही।
1878 में इस इलाके में लड़ाई के दो बड़े मोर्चे थे। एक डुमरियागंज मेंराप्ती का किनारा था और दूसरा इटवा गांव। डुमरियागंज में सेनानियों को सेनापति अंग्रेज कमांड गिफ्फोर्ड से लड़ रहे थे और इटवा में तुलसीपुर की रानी लाल कुंवरि कैप्टन हैलेट से मुकाबला कर रहीं थीं। इटवा थाना ही अंग्रेज अफसरों का अड्डा था। मो. हसन की सेना ने तो गिफ्फोर्ड को मार दिया लेकिन रानी तुलसीपुर की सेना को हारना पड़ा।
रानी के सैकड़ों सिपाही पकड़े गये। उन्हें इसी थाना परिसर में यातनी दी गई। दर्जनों को यंत्रणा देकर मार डाला गया। रानी ने स्वयं नेपाल के जंगलों में पनाह ली। इस जनपद में आजादी की लड़ाई को समाप्त करने में इटवा थाना की भूमिका अहम रही है।