पूर्व विधायक अनिल सिंह की सपा में पुनर्वापसी के मकसद पर कयासबाजियां
— क्या टिकट की गारंटी के बिना आखिलेश का दामन थामा पूर्व विधायक ने?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। वर्ष 2007 में कपिलवस्तु विधनसभा क्षेत्र से चुने गये विधायक अनिल सिंह ने 2012 के परिसीमन में सीट को आरक्षित कर दिये जाने के बाद समाजवादी पार्टी से त्यागपत्र देकर कांग्रेस में में शामिल हो गये थे। वैसे तो सपा छोड़ने क बाद उन्होंने कांग्रेस को देश की एक मात्र सेक्युलर पार्टी बताया था मगर सच सही था कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कोई सीट चाहिए थी जो उन्हें कांग्रेस ने पूरा किया और पार्टी में शामिल होते ही पड़ोस की शोहरतगढ़ से कांग्रेस का टिकट दे दिया।
अब 2022 के चुनावों के ठीक पहले अनिल सिंह ने फिर रंग बदलते हुए सपा का दामन थाम लिया। उनके इस कदम से जिले में कयासबाजियाें का दौर शुरू हो गया हैं। मसलन जनता में यह चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर अनिल सिंह किस आश्वासन कम तहत समाजवादी पार्टी में शामिल होने का फैसला लिया है। क्या सपा उन्हें शोहरतगढ़ के अपने पुराने वफादार साथी की जगह पर उम्मीदवार बनाएगी या फिर उन्हें किसी अन्य स्थान से टिकट देगी? अगर यह दोनों बातें राजनीति के कसौटी पर खरी नहीं उतरती तो सवाल उठता है कि आखिर अनिल सिंह के सपा में शामिल होने के पीदे मकसद क्या है।
जानकार बताते हैं कि 2012 कपिलवस्तु सीट रिजर्व होने के बाद कहीं से टिकट की गुंजाइश न होने के बाद अनिल सिह ने सपा छोड़ा था। उस समय वह शोहरतगढ़ से टिकट चाहते थे, मगर वहां पाटी के कभी संकट मोचक रहे स्वा. दिनेश सिंह के पुत्र उग्रसेन सिंह को हटाना संभव नहीं था।इसके अलावा भी वहां से महिला आयोग की पूर्व सदस्य जुबैदा चौधरी सशक्त दोवेदार थी। वर्तमान में एक और प्रभावशाली नेता जमील सिद्दीकी ने भी अपनी दावेदारी ठोंक रखी है। ऐसे में अनिल सिंह की दावेदारी कमजोर हो जाती है। ज्ञात हो कि कि इटवा से पूर्व विधनसभा अध्यक्ष की उम्मीदवारी पक्की है। डुमरियागंज मुस्लिम सीट मानी जाती है। बांसी में वर्तमान जिलाध्या लालजी यादव पिछले 6 चुनाव से लड़ रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि उनके लिए पूरे जिले में कोई गुंजाइश नहीं बचती।
लेकिन अनिल सिंह के समर्थक इससे कत्तई इत्तफाक नहीं रख्रते। उनके समर्थक गांबिंद यादव कहते हैं कि अनिल सिंह एक ईमानदार और साफ सुथरी छवि के नेता हैं इसलिए अखिलेश यादव ने उन्हें पार्टी में कुछ सोच समझ कर ही लिया है। मगर सपा कार्यकर्ता कहते हें कि 2012 टिकट के लिए पार्टी त्यागने वाले को किसी पुराने साथी का टिकट काट कर अनिल सिंह को क्यों लाया जाएगा। पार्टी के लिए केवल ईमानदारी ही नहीं वफादारी भी मायने रखती है।
इंसर्ट—-
टिकट का निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष ही करेंगे
सिद्धार्थनगर। इस सिलसिले में सपा के जिला अध्यक्ष व पूर्व विधायक लालजी यादव का कहना है कि जहां तक मेरी जानकारी है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी किसी नेतो को सपा में सशर्त शामिल करने से परहेज कर रहे हैं। जहां तक किसी का पार्टी में शामिल होने का सवाल है तो वह अपनी इच्छासे अये हैं। लेकिन टिकट देना राष्ट्रीय अध्यक्ष का अधिकार है। वह जिसे भी टिकट देना होगा देंगे। लेकिन वह जिसे भी टिकट देंगे पार्टी के कार्यकर्ता उनके लिए जी जान से काम करेंगे।