अरशद खुर्शीद और सय्यदा खातून के सियासी कैरियर पर संकट के बादल, जाएं तो जाएं कहां?
डुमरियागंज सीट पर सपा से दांव लगाने में अंतिम ताकत से जुटे
अरशद खुर्शीद व सय्यदा खातून, कामयाबी के आसार बहुत कम
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बहुजन समाज पार्टी के दो धुरंधर सियासतदान अरशद खुर्शीद और सैयदा खातून के सियासी कैरियर पर ग्रहण लगने के आसार पैदा हो गये हैं। इन दोनों नेताओं की पसंदीदा सीटों पर बसपा सुप्रीमों मायावती ने नए टिकटार्थियों को प्रोजेक्ट कर अकलियत के दोनों नेताओं को करारा झटका दिया है। इसके बाद से अरशद व सैयदा अपने नये राजनीतिक ठिकाने की तलाश में सक्रियता से जुट गये हैं।
बताया जाता है कि बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने डुमरियागंज विधानसभा सीट से पार्टी में हाल में आये अशोक तिवारी को चुनाव लड़ाने के लिए हरी झंडी दे दी है। अशोक तिवारी तीन बार विधायक रह चुके कद्दावर नेता प्रेम प्रकाश उर्फ जिप्पी तिवारी के भाई हैं। उन्होंने अपना प्रचार भी शुरू कर दिया है। इसी प्रकार इटवा विधानभा सीट से अरशद खुर्शीद के स्थान पर मायावती ने भाजपा छोड़ बसपा में आये वरिष्ठ नेता हशिंकर सिंह पर दाव लगाने का इरादा किया है। इससे आशद शुर्शीद और सैय्यदा एक तरह से बसपा में हाशिए पर दिखाई दे रहा है।
आखिर क्यों की गई सैय्यदा की उपेक्षा
सैय्यदा और अरशद खुर्शीद दोनों को गत चुनावों में बहुत शानदार प्रदर्शन रहा था। सैयदा खातून डुमरियागंज सीट पर 70 हजार से अधिक मत हासिल कर तकरीबन ढाई सौ वोटों से हारी थीं। हालांकि सैयदा ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था। बहरहाल इतनी कड़ी टक्कर के बाद सभी को यकीन था कि सैयदा अबकी बार जरूर जीत जाएंगी। लेकिन इस बार उनके टिकट पर ही खतरा खड़ा हो गया। बताते है कि अपनी इस सियासी दुर्दशा के लिए सैयदा खुद ही जिम्मेदार हैं।
दरअसल पिछले कुछ महीनों से सैयदा खातून सपा के सम्पर्क में थीं और टिकट चाह रही थीं, मगर वह इस सम्पर्क को गुप्त रखने में कामयाब न रहीं और उनके एक एक गतिविधि से मायावती वाकिफ होती रहीं और जब समय आया तो मायावती ने अपनी चाल दिखाई और अशोक तिवारी को बसपा में शामिल कर सैयदा के दिन पूरे होने का संकेत दे दिया। अब सैयदा की उम्मीदें समाजवादी पार्टी से हैं। मगर वहां पहले से बैठे कई ताकतवर दावेदारों को नजरअंदाज कर सपा द्धारा उन्हें टिकट देना लगभग नामुमकिन लगता है।
अरशद खर्शीद क्यों किए गए दरकिनार
बसपा के धाकड़ मुस्लिम लीडर अरशद खुर्शीद ने बाहर से आकर अपने पहले ही चुनाव में इटवा सीट पर माता प्रसाद पांडेय जैसे दिग्गज को पीछे छोड़ कर भाजपा को जिस प्रकार टक्कर दी थी उसकी सराहना बहुतों ने की थी।अगर माता प्रसाद पांडेय के चिर प्रतिद्धंदी मुहम्मद मुकीम गठबंधन के चलते जी जान न लगाया होता तो शायद अरशद खुर्शीद चुनाव परिणाम बदल भी सकते थे। मगर इटवा में एक नये मुस्लिम उम्मीदवार के उतरने से पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम इतने भयभीत हुए कि उन्होंने अरशद के खिलाफ सालों की प्रतिद्धंदिता भूल कर माता पाण्डेय के लिए अपने चुनाव से ज्यादा मेहनत करने लगे । इस चुनावी लड़ाई में बेहतर प्रदर्शन कर अरशद खुर्शीद मायावती की नजरों में चमक गये।
लेकिन इसे अरशद का दुर्भाग्य कहें या कुछ और कि अरशद बलरामपुर के पूर्व बाहुबली सांसद रिजवान जहीर के भांजे हैं और इस समय राजनीतिक रूप से सपा के साथ हैं। यह बात मायावमी के बर्दाश्त से बाहर हैं। सूत्र बताते हैं कि अरशद खुर्शीद अगर चुनाव जीत भी जाएं तो वह सपा के साथ हो सकते हैं।मायावती के दिल में बैठी इस आशंका को निकाल पाने में अरशद खुर्शीद नाकाम रहे और टिकट का सेहरा हरिशंकर सिंह के सर बंधने का फैसला हो गया। वह अभी चार दिन पहले ही भाजपा से बसपा में शामिल हुए हैं।
दोनों नेता अगले ठिकाने की तलाश में
जिले में बसपा की राजनीति में आप्रसंगिक कर दिये गये अरशद खुर्शीद व सैयदा खातून का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा, सियासी विश्लेषक इसके आंकलन में जुटे हैं। सूत्रों के मुताबिक सैयदा खतून पहले से सपा से टिकट का प्रयास कर रही थीं, मगर वह अब और तेजी से अपनी कोशिश में जुट गईं हैं। इसी के साथ अरशद खुर्शीद भी डुमरियागंज सीट पर सपा से टिकट में भिड़ गये हैं। डुमरियागंज ही उनकी गृह तहसील भी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सपा अपने पुराने साथियों को छोड़ कर इन्हें आश्वासन देगी? यही नहीं अगर शिवपाल यादव से समझौता हुआ तो यह सीट निश्चित रूप से पुराने सपाई कमाल यूसुफ के खाते में जाएगी।
और अंत में
जिले के राजनीतिक विश्लेषक यशोदा श्रीवास्तव कहते हैं कि पहली बात तो यह है कि सपा की बढ़ती लोकप्रियता को भांप अखिलेश यादव किसी को टिकट का आश्वासन नहीं दे रहे। वह पहले पार्टी में बिला शर्त शामिल होने की बात करते हैं। यही कारण है कि सैयदा को कई महीनों की कोशिशों के बाद भी उन्होंने टिकट का आश्वासन नहीं दिया। ऐसे में प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि सपा में सैयदा के लिए टिकट पाना तकरीबन असंभव है।
रही बात अरशद खुर्शीद की तो उनके लिए भी वहीं नियम हैं जो सैयदा पर लागू होते हैं। लेकिन अरशद के लिए रिजवान जहीर से रिश्ता होना कुछ मायने रखता है। रिजवान और सपा के रिश्ते हमेशा से ही बेहतर रहे हैं वह चाहे जिस भी दल में रहे हों, आज अखिलेश का उन पर भरोसा है। इसलिए कहा जा सकता है कि किन्हीं विशेष हालात में उन्हें टिकट मिल सकता है। यदि ऐसा न हुआ तो रिजवान के कारण सरकार बनने पर अरशद के लिए कुछ और व्यवस्था की जा सकती है।