63 पंचायतों में सन्नाटा, न दारू मुर्गा का नारा, न बड़कऊ की दबंगई का शोर, कई सरों से ताज छिने
गंवई सियासत का दर्द
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिले की 1136 ग्राम पंचायों में 63 ऐसी हैं जहां चुनवी शोर के बजाए निराशा का आलम है। जिले सृजन के बाद से पहली बार उन गांवों में ‘दारू मुर्गा़-पक्का वोट’ की गूंज नहीं सुनाई पड़ेगी। 2021 के ग्राम पंचायत चुनाव में 63 गांव के ब़ड़कऊ कहाने वाले ताकतवर लोगों में भी निराशा है। दारू मुर्गा, लाठी डंडा के बल पर उनके सरों पर प्रधानी का ताज सज जाता था, जो अब नहीं सज सकेगा। इसी चुनाव के बल पर तो गांव के लोग बाग गांव के बड़कऊ लोगों की इज्जत करते थे, परन्तु अब तो उन्हें प्रधान जी कह कह सलाम करने वाला कोई न मिलेगा। इसका कारण है कि इस बार जिले की 63 ग्राम पंचायतें गंवई राजनीति से दूर हो गई हैं। मतलब वे नगर पंचायत में शामिल कर दी गई हैं। इस लिए इस चुनावी उत्सव में अब न वहां दारू मुर्गा का नारा चलेगा, न ही बड़कऊ की दबंगई के बल पर बेगार चल सकेगा।
परसा शाहआलम मधुकर पुर का हाल
शहर से सटे ग्राम पंचायत परसा शाहआलम में श्याम नारायन मौर्य स्वयं और परिवार के सदस्य तीन बार प्रधान रह चुके, पर इस बार वंचित हैं। वह सपा नेता के साथ प्रधान संघ के जिलाध्यक्ष, संरक्षक पदों पर लंबे समय तक थे, मगर कल तक के अभूतपूर्व नेता जी पूर्व होकर चुनावी गूंज में खो से गये हैं। इसी प्रकार सदर ब्लाक का ही हिस्सा रहा ग्राम पंचायत मधुकरपुर में जयंत पांडेय भी प्रधान और बीडीसी रहते हुए प्रधान संघ में जिला महामंत्री का दायित्व संभाल चुके हैं। जयंत जी की इस इलाके में तूती बोलती थी। मगर अब ने नगर पालिका क्षेत्र में शामिल हो गये है। गांव में चुनावी शेर जोरों पर है, मगर इस बार जयंत भइया- जिंदाबाद का नारा कहीं पर नहीं है। वे सोच रहे होंगे कि एक वह दिन थे और एक आज का दिन है।
बर्डपुर से भी छिना प्रधानी का ताज
इसी प्रकार बर्डपुर कस्बे से दो बार ग्राम प्रधान रही विनीता यादव के पति ओम प्रकाश यादव भी शहरी राजनीति से जुड़ गए। विनीता के पति ओम प्रकाश भाजपा नेता है। उनके श्वसुर भाजपा के विधायक थे। मगर उनका गांव नगर पंचाायत में शामिल हो जाने के कारण आज उनके घर ही नीं पूरे कस्बे में सन्नाटा है। लेकिन इनका गम थोड़ा कम है। क्योंकि ओम प्रकाश अभी भाजपा की सक्रिय राजनीति से जुडे हैं। हां, सर से प्रधानी का ताज जरूर हट गया है। यह ताज छोटा जरूर था, मगर ताज तो ताज होता है। प्रधान न होने की कमी उन्हें अवश्य साल रही है।\
इसी को समय का फेर कहते हैं। वर्तमान में जिन गांवों में चुनाव नहीं हो रहे उनमें नौगढ़ ब्लाक में आठ, बर्डपुर में दो, उसका बाजार में तीन, इटवा में 14, शोहरतगढ़ में पांच, भनवापुर में 11 और डुमरियागंज में 20 ग्राम पंचायतें शामिल हैं।
इटवा, बिस्कोहर चाफा आदि में भी सन्नाटा
ऐसे ही इटवा टाउन क कई बार प्रधान रहे माधव, बढ़नी चाफा, बिस्कोहर, भारतभारी आदि गांवों के प्रधान की हैसियत छोटे मोटे जमींदार की थी। विशाल आबादी वला कस्बानुमा गांव होने के कारण शासन से खासा धन आता था। लोगें की समस्या सुलझाने में वाहवाही मिलती थी। अलाके का दारोगा, सरकारी अफसर व बड़ा नेता तक उनका मेहमन होता था। जिससे उनके रूतबे में इजाफा होता था। बर्डपुर नम्बर आठ की सियासत में रहमान परिवार की तती बोलती थी। मर वह गांव भी नगर पंचायत में आ गया है। सोनई पिपरा, आदि गाचों की भी सही हालत है। क्योंकि सब गांव नगर निकाय का हिस्सा बन गये। लिहाजा अब वहां चुनाव नही हो रहा। सोचिए कैसा लगता होगा इन प्रधानों को, जिनके सर से ताज अचानक ही छिन गया।
अब चुनाव पैसे का खेल हो गया -श्याम मौर्य
ग्राम पंचायतों के शहरी क्षेत्र में शामिल होने के बाद से प्रमुख और गंवई राजनीति में सक्रिय चेहरों मे से एक श्यामनारायन मौर्य चुनाव से वंचित हो जाने पर स्वयं को काफी राहत में बता रहे हैं। परसा शाहआलम से कई बार प्रधान और ग्राम प्रधान संघ के जिलाध्यक्ष रहे श्याम नारायन मौर्या कहते हैं कि पंचायत चुनाव अब पहले जैसा नहीं रहा। सब पैसे का खेल है। इसी प्रकार जयंत पांडेय कहते हैं कि शहरी की अपेक्षा गंवई राजनीति काफी ओछी हो गई है। मुक्ति मिलने से काफी राहत है।