बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्विवेदी के गले की हड्डी बनने वाला है भूमि व प्रमाणपत्र घोटाला प्रकरण?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। प्रदेश के बेसिक मंत्री व इटवा के विधायक डा. सतीश चंद्र द्धिवेदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हाल में भाजपा की एक हाई प्रोफाइल बैठक के बाद राजनीतिक हल्कों में अनुमान लगाया जा रहा है कि उनके द्धारा कथित रूप करोड़ों की जामीन की खरीदारी तथा उनके भाई अरूण द्विवेदी की फर्जी प्रमाण पत्र द्वारा अससिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति ही उनके गले की हड्डी बन सकती है।
मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक हाल ही में भाजपा के एक हाई प्रोफाइल बैठक में उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों के मद्देनजर योगी मत्रिमंडल के कुछ मत्रियों को हटा कर नये चेहरों को लाने पर गंभीर चर्चा हुई थी। ताकि चुनाव से पहले सरकार की छवि को ठीक किया जा सके। तब उसमें बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश छिवेदी का नाम चर्चा में नहीं था। परन्तु उनके भाई अरुण द्धिवेदी के नियुक्ति सम्बंधी (ews) आरोपों में घिर जाने, उनके स्वयं व उनकी माता श्रीमती कालिंदी देवी द्वारा करोड़ों की जमीन लाखों में खरीदने का मामला सामने आ जाने के बाद मीडिया और राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा आम होने लगी है कि प्रदेश मंत्रिमंडल हटाये जाने वालों की सूची में प्रमुख रूप से उनकी भी नाम हो सकता है।
दरअसल सतीश द्विवेदी की दिक्कत यह है कि आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह उनके प्रकरण को लेकार कफी सक्रिय हैं तो उनके जमीन खरीद व भाई के प्रमाण पत्र के दस्तावेज सार्वजानिक करने वाले पूर्व आईपीएस व एक्टिविस्ट अमिताभ ठाकुर व उनकी पत्नी श्रीमती नूतन ठाकूर राज्य स्तर पर इस मुद्दे को लेकर तहलका मचाये हुए हैं। इस मामले का खुलासा करने का श्रेय इन्हीं पति पत्नी को जाता है। इसके अलावा जिले के कई सांसद विधायक व पूर्व विधायक/मंत्री भी इनसे नाराज हैं। इसका कारण मंत्री सतीश द्विवेदी के राजनैतिक आचरण में अनुभव की कमी बताई जाती है। इसलिए स्थानीय स्तर से लगायत लखनऊ, दिल्ली की कई बड़ी हस्तियां इनके खिलाफ लामबंद हैं। जो मीडिया व अपने राजनीतिक प्रभाव के चलते इन पर शिकंजा कसती जा रही है।
क्या है मंत्री पर आरोप?
जहां तक इस प्रकरण का सवाल है पहले यह मामला बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई अरूण द्धिवेदी की सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद की नियुक्ति को लेकर शुरू हुआ था। एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर के मुताबिक यह नौकरी उन्होंने अर्थिक रूप से कमजोर (गरीब) कोटे के लिए आरक्षित कोटे का प्रमाणपत्र बनवा कर हासिल की थी। श्रीमती ठाकुर के मुताबिक जिस संयुक्त परिवार में लाखों रूपये प्रतिमाह कमाने वाले चार असिस्टेंट व एक सहायक टीचर रहे हों हो वह आर्थिक रूप से कमजोर कैसे हो सकता है। हां इस प्रमाणपत्र को बनाने के लिए मंत्री की ओर से राजनैतिक दबाव जरूर डाला जा सकता है।
दस्तावेजों ने मचाया हलचल
अभी यह मामला गर्म ही था कि नूतन ठाकुर ने कुछ अन्य दस्तावेजों को भी जारी कर दिया। उन्होंने उन पांच रजिस्ट्री के दस्तावेज जारी कर दिये जिसमें वर्ष 2020 के अंत में तीन प्लाटों की खरीद गई थी। अन्य दो 2019 के लास्ट में खरीदी गई है। जिनमें तीन की खरीद उनकी मां के नाम तथा एक स्वयं बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्धिवेदी के नाम है। और एक उनके सबसे छोटे भाई अनिल द्विवेदी के नाम पर जो जमीन जिला मुख्यालय पर खरीदी गई है। सभी जमीनों की कीमत लगभग करोड़ो के आस पासअदा की गई है। जबकि उन जमीनों की कीमत लगभग 7 करोड में आकी जा रही है। मजे की बात यह है कि एक जमीन मंत्री ने अपने माँ के नाम पर लिखवाया है जिस भूमि पर पहले से अन्य मकान बनाकर कब्जा है । और इस विवादित जमीन पर स्थानीय निवासी ने आरोप लगाया है कि सिर्फ दो लाख रुपया ही दिया गया है , अन्य पैसा मांगने पर धमकी दिया जा रहा है।
प्रकरण समाप्त नहींः अमिताभ ठाकुर
खैर इस मामले के तूल पकड़ने के बाद मंत्री जी के अनुज अरुण द्विवेदी ने अपने पद से त्यापत्र दे चुके हैं मगर राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा तेज है कि अभी प्रकरण समाप्त नहीं हुआ है। अभी इसकी कीमत और भी चुकानी पड़ेगी। पूर्व आईएएस अमिताभ ठाकुर ने इस प्रकरण में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेज कर कहा है कि अरूण द्विवेदी के त्यागपत्र से प्रकरण समाप्त नहीं हो जाता। इसलिए इसकी सघन जांच और कार्रवाई की जरूरत है। अमिताभ ठाकुर के पत्र से यह स्पष्ट होता है कि मामला और तूल पकड़ने की और अग्रसर है ।
तस्वीर का दूसरा पक्ष भी है
राज्यमंत्री सतीश द्धिवेदी का परिवार विवादों में घिरा है। उनकी आलोचना भी हो रही है। मगर जिले में एक वर्ग ऐसा भी है जो जिले में राजनीतिक शुचिता का सवाल उठा कर इनके समर्थन में खड़ा है। कांग्रेस के पूर्व पीसीसी सदस्य रहे रामराज दूबे कहते हैं कि कि बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्धिवेदी पर जो आरोप हैं उसकी सच्चाई तो जाच के बाद ही सामने आयेगी, मगर महत्वपूर्ण सवाल यह है कि स्थानीय स्तर पर जो लोग इस विवाद को हवा देने में लगे हैं पहले उन्हें अपने गरेबान में झांकना चाहिए।
रामराज दुबे कहते हैं कि ये वही चेहरे है जिन्होंने अपने विधायक सांसद व मंत्री काल में कई करोड़ की सम्पत्तियां बनाई और अब मजे ले रहे हैं। इनमें सत्ता व विपक्ष के तमाम लोग शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कल तक जिसके पास कुछ नहीं था आज वे स्कूल खड़े कर उनके नाम पर जमीने खरीद रहे हैं। कइयों के पास बड़े होटल हैं। महानगरों में आलीशान बंगले और फार्म हाउस तक हैं। यह उनके पास कहां से आ आये। इसकी भी जांच की जरूरत है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपीलकिया है कि एक बार उनकी सम्पत्तियों की भी जांच की जाये तो जाने कितने लोग बेनकाब हो जाएंगे और उन्हें जेल की हवा तक खानी पड़ जाएगी।