अगामी चुनाव में ओबीसी लीडर को टिकट न मिलने से भाजपा को हो सकता है नुकसान

January 13, 2021 1:35 PM0 commentsViews: 865
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शोहरतगढ़ विधानसभा सीट पर ओबीसी उम्मीदवार उतार कर भाजपा दे सकती है पिछड़ा वर्ग कार्यकर्ताओं को भारी संतुष्टि

                                     

 नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। जिले में जनसंघ (अब भाजपा) के उदयकाल से ही पार्टी मेें ही पिछड़ा वर्ग का प्रभुत्व रहा हैै। जिले का पहला जनसंघी विधायक भी पिछड़ा वर्ग से ही रहा। कल्याण सिंह की सरकार तक इस जिले की राजनीति  में पिछड़ों को महत्व देने की प्रक्रिया चलती रही। लेकिन बीते डेढ़ दशक से भाजपा में पिछड़ों की राजनीति की अनदेखी की जाने लगी। इसे लेकर यहां भाजपा के ओबीसी वर्करों में भारी बेचैनी है। वे सबसे ज्यादा वोट देने के बाद भी अपनी उपेक्षा से बेहद नाराज हैं। पार्टी के अनेक समर्थकों का मानना है कि यदि इस बार भी उन्हें चुनाव में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तो भाजपा को व्यापक क्षति उठानी पड़ सकती है। वर्कर कहते हैं कि अब पार्टी को इस संदर्भ मेेंं पुनः मंथन की जरूरत है।

ओबीसी राजनीति पर लगा विराम

जिले में भाजपा, जो तब जनसंघ के नाम से जानी जाती थी शुरू से ही मजबूत थी। १९६२ में ही सदर क्षेत्र से 1962 में ही शारदा प्रसाद रावत ने चुनाव जीत कर जनसंघ का डंका बजा दिया था। उसके बाद 1967 से लेकर सन 2000 के बीच सदर सीट से स्व. धनराज यादव ने सात बार, रामरेखा यादव ने एक बार, शोहरतगढ़ से पप्पू चौधरी ने तीन बार चुनाव जीता। लेकिन 1996 के बाद से भाजपा द्धारा अचानक जिले में पिछड़ों को बढ़ाने की गति पर विराम लग गया। हालांकि इस दौरान भाजपा में पिछड़ा वर्ग के कई प्रभावशाली नेता रहे।

ओबीसी कार्यकर्ता बताते हैं कि यह सब सोची समझी रणनीति के तहत हुआ। वरना क्या करण है कि 11 प्रतिशत ब्राह्मण और 3 प्रतिशत राजपूत आबादी वाले क्षेत्र में लोकसभा व विधानसभा की सभी पांचों सामान्य सीटों पर सवर्णों को ही टिकट मिलता है। जबकि ओबीसी समाज का वोट 32 प्रतिशत है। ओबीसी कार्यकर्ता कहते है कि वोट हमारा राज तुम्हारा वाला फार्मूला कब तक चल सकेगा

कई पिछड़़े नेेता हाेे चुकेे पार्टी से आउट

जिले की राजनीति की नब्ज जानने वाले बताते है कि कल्याण सिंह के बाद ओबीसी समाज के नेताओं की उपेक्षा का एक लंबा दौर चला जो अब तक जारी है। हलाकि भाजपा से स्वयंबर चौधरी विधायक बने परन्तु सिटींग विधायक रहते हुए भी पार्टी ने टिकट काट दिया था यही कारण है कि स्वयंबर चौधरी जैसे बड़े नेता ने उस समय पार्टी छोड़ दिया था । तीन बार विधायक रहे पप्पू चौधरी को पार्टी से आउट करा दिया गया। कल्याण सिंह के करीबी युवा नेता जेपी सिंह विद्यार्थी को पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया।

गोविंद माधव सर्वाधिक लोकप्रिय ओबीसी नेता

पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे राम बरन यादव बताते हैं कि उपेक्षा के चलते वर्तमान में पार्टी में पिछड़े समाज के नताओं की संख्या लगातार घट रही है। अब भाजपा में केवल जिलाध्यक्ष गोविंद माधव एक मात्र ओबीसी नेता हैं, जिनकी पहचान जिला स्तर पर है वह काम भी अच्छा कर रहे हैं। उन्हें पार्टी चुनाव लड़ा कर भाजपा ओबीसी क्लास में अपना जनाधार और मजबूत कर सकती है। गोविंद माधव कई बार मंत्री रहे स्व. धनराज यादव की राजनीतिक विरासत को बाकायदा संभाल रहे हैं। इसलिए पार्टी को उन्हें प्रत्याशी बनाने के बारे में सोचना ही होगा।

जहां तक गविंद माधव की बात है, उनका समर्थन सवर्ण कार्यकर्ता भी करते हैं तथा भाजपा के स्वाभाविक शुभचिंतक मानते हैं कि जिले में ओबीसी को नजरअंदाज करने से पार्टी का जनाधार घट सकता है। भाजपा के बढ़नी मंडल के अध्यक्ष के अध्यक्ष योगेन्द्र तिवारी का मानना है कि पार्टी को पिछड़े वर्ग में जनाधार बरकरार रखना है तो किसी सक्षम ओबीसी नेता को चुनावी अखाड़े में उतारना ही होगा और इसके लिए फिलहाल पार्टी में जिलध्यक्ष गोविंद माधव से उपयुक्त कोई और नहीं दिखता।      

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