अशोक तिवारी के बसपा में शामिल होने से बदल सकते हैं डुमरियागंज के समीकरण, भाजपा को झटका
बहुजन समाज पार्टी की भरोसेमंद नेता सैयदा खातून का राजनीतिक कैरियर दांव पर
शिवपाल फैक्टर सैयदा के राह की सबसे बड़ी बाधा, कमाल यूसुफ हैं मुख्य प्रतिद्धंदी
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज के पूर्व विधायक व भाजपा नेता जिप्पी तिवारी के अनुज अशोक तिवारी द्धारा बसपा का दामन थाम लेने से विधानसभा क्षेत्र डुमरियागंज के सियासी समीकरणों में चुनाव पूर्व अचानक नया मोड़ आ गया है। इससे भाजपा खेमे को जहां झटका लगा है, वहीं सपा ने राहत की सांस ली है।
बताया जाता है कि अशोक तिवारी ने गत दिवस लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ले ली है। सूत्र बताते हैं कि सदस्या लेने के साथ ही अशोक तिवारी को डुमरियागंज से बसपा से चुनाव लड़ने हरी झंडी दिखा दी गई है। लेकिन पार्टी ने अभी इसकी अधिकृत घोषणा नहीं हुई है। लेकिन डुमरियागंज के राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि उनको चुनाव लड़ने की आज्ञा मिल चुकी है।
गत दिवस डुमरियागंज के एक निजी समारोह में अशोक तिवारी क बड़े भाई व भाजपा के पूर्व पूर्व विधायक प्रेम प्रकाश जिप्पी तिवारी ने कहा कि बातचीत में कहा कि अनुज के चुनाव लड़ने पर उन्हें दूसरे चुनाव क्षेत्र में जाना पड़ेगा ताकि वह किसी प्रकार के आरोप के जद में न आं। क्योंकि भाजपा के प्रति वे पूरी तरह निष्ठावन हैं।
अशोक तिवारी से क्यों चिंतित है भाजपा
अशोक तिवारी के बसपा में शामिल होने पर राजनीतिक दल के रूप में भापा के लिए चिंता का विषय है, तो जाती तौर पर बसपा नेता और पूर्व विधायक तौफीक मलिक की बेटी सैयदा खातून के लिए भी कम खतरनाक नहीं है।
दरअसल मुस्लिम बाहुल्य वाले डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में सदा से ही मुस्लिम लीडरशिप का बर्चस्व रहा है। जिप्पी तिवारी एक मात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने न केवल भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से बंजर डुमरियांज की जमीन को उर्वरक बनाया अपितु वे तीन बार यहां से विधायक भ चुने गये। मगर दुर्भाग्य से गत चुनाव में उन्हें यहां से टिकट न मिल सका। फिर भी भाजपा की जीत हुई।
नये हालात में राजनीतिक जानकार मानते हैं कि डुमरियागंज में जिप्पी तिवारी परिवार की अपनी प्रतिष्ठा है। क्षेत्र में उनका जनाधार बहुत व्यापक है।इसलिए यदि अशोक तिवारी बसपा से मैदान में उतरे तो ब्राहमण दलित गठजोड़ बना कर सपा और भाजपा को कड़ी टक्कर देंगे।जानकारों के अनुसार इसमें भाजपा की बड़ी क्षति होग्री। जानकार मानते हैं कि भाजपा से बाह्म्णों की नाराजी, बसपा उम्मीदवार के रूप में होना तथा स्वयं सतीश मिश्रा की रणनीति के चलते डुमरियागंज में ब्राहम्ण समाज का बड़ा वोट बसपा को जाने की आशंका है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सही भाजपा के लिए चिंता का विषय है।
सैयदा का राजनीतिक कैरियर दांव पर
दूसरी बात कि इस सियासी मोड़ पर गत विधानसभा चुनाव में भाजपा से मात्र ढाई सौ वोटों से हारीं बसपा नेता सैयदा मलिक का राजनीतिक वजूद दांव पर लग गया है। सैयदा पिछले कुद दिनों से सपा व बसपा के बीच झूल रहीं थीं। हालांकि उन्होंने अभी तक बसपा को छोड़ा नहीं है परन्तु मायावती ने अशोक तिवारी को पार्टी में लेकर उन्हें संदेश तो दे ही दिया है। ऐसे में अगर उनक गोट सपा में भी नहीं बैठी तो उनके सियासी कैरियर पर ग्रहण लग सकता है। क्योंकि शिवपाल फैक्टर के चलते वहां पूर्व मंत्री कमल यूसुफ मलिक टिकट के सशक्त दावेदार हैं।
हम तो बड़े भाई की खड़ाऊं ही सकते हैं- अशोक तिवारी
बसपा के संभावित प्रत्याशी अशोक तिवारी से यह पूछने पर कि वह भाई व भाजपा नेता जिप्पी तिवारी भाजपा में हैं, ऐसे में आप उनका सहयोग तो नहीं पा सकेंगे? उन्होंने जवाब दिया की हालांकि जंग के मैदान में वह विरोधी पार्टी के साथ रहेंगे और रहना उनका धर्म भी है, परन्तु हमारे यहां तो बड़े भाई की खड़ाऊं के माध्यम से राज करने की परम्परा रही है। उसी का अनुसरण वे भी करेंगे। गड़े भाई भाजपा में हैं तो क्या, उनकी खड़ाऊं पर तो मेरा अधिकार रहेगा ही। इसलिए जीत भी उन्हीं की होगी।