देवरिया उप चुनाव में बागी उम्मीदवार पिंटू सिंह बिगाड़ रहे भाजपा का खेल
—गोरखपुर से सटे होने के करण देवरिया सीट जीतना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती बनी
— सपा नेता ब्रह्माशंकर त्रिपाठी की प्रतिष्ठा भी दांव पर, उनके राजनतिक जीवन का सबसे कठिन चुनाव
नजीर मलिक
यूपी के देवरिया में हो रहा उपचुनाव अब निर्णायक दौर में पहुंच रहा है। मगर भाजपा के बागी उम्मीदवार ने कमल के खिलने की उम्मीदों पर एक तरह से सख्त पहरा बिठा रखा है। जिससे आजाद होने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेता जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। सीएम योगी की गृृह मंडल होने कारण यह सीट जहां उनके लिए चुनौती का विषय है, वहीं विपक्ष के कद्दावर नेता के रूप में यहांं सपा नेता ब्रह्माशंकर त्रिपाठी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पड़ोसी जिले देवरिया में होने वाले उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकीं हैं। कहने को तो यह उनका पड़ोसी जिला है, मगर भौगोलिक और राजनतिक दृष्टि से देवरिया भी योगी जी के बेहद करीब है। इसलिए यह चुनाव जीतना उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है।
यों तो यहां अनेक उम्मीदवार हैं मगर उल्लेखनीय नाम केवल पांच ही हैं और प्रथम दृष्टतया लड़ाई भी पंचकोणीय ही नजर आती है। परन्तु राजनतिक विश्लेषकों का मानना है कि पांच खेमों में बंटे मतदाता मतदान से पूर्व तीन खेमों में हीसिमट जाएंगे। मतदान यहां तीन नवम्बर को होना है।
यहां से बसपा ने अभय नाथ त्रिपाठी को टिकट दिया है तो ब्रह्माशंकर ने अपने पुराने योद्धा ब्रह्माशंकर त्रिपाठी पर दांव लगाया है। अभय त्रिपाठी जहां बसपा के प्रतिबद्ध वोटों में कुछ सजातीय और अति पिछड़े वोटो को जोड़ कर परिणाम को अपने पक्ष में मोड़ने का माना बाना बुन रहे हैं तो ब्रह्माशंकर त्रिपाठी भी सजातीय एवं यादव व मुुस्लिम मतों को अधिक से अधिक जोड़ने में लगे हैं। इनका जनाधार अन्य समाजों में भी है, परन्तु अल्पसंख्यक मतों की बेहद काम तादाद और दूसरे बगल की परम्परागत सीट त्याग कर उनका यहां उपचुनाव लड़ने आना काफी लोगों को रास नहीं आ रहा है।
जहां तक भाजपा का सवाल है, उसने यहां से एस एन तिवारी को मैदान में उतार रखा है। परन्तु भाजपा का गढ़ होने के बावजूद यहां हवा एस एन त्रिपाठी के खिलाफ जा रही है। देवरिया के शिव कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि यहां से पहले भाजपा के जन्मेजय सिंहविधायक थे। उनके न रहने पर उनके बेटे पिंटू सिंह टिकट के प्रबल दावेदार थे। मगर टिकट से वंचित होने के बाद पिंटू सिंह निर्दल उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं।
पिंटू सैंथवार जाति से आते हैं,जिनकी तादाद यहां अधिक है। टिकट न मिलने से उनकी जाति के लोग उन्हीं के पास जुट रहे हैं यहीं नही उन्हें सिम्पैथी का लाभ भी मिल रहा है। इसके अलावा यहां काग्रेस के उम्मीदवार मुकुंद मणि त्रिपाठी भी पूरी ताकत से चुनाव मैदान में हैं।
तो पहली नजर में यहां लड़ाई पंचकोणीस है परन्तु चुनाव के विश्लेषक मानते हैं कि आखिरी समय में लड़ाई त्रिकोण होगी, जिनमें एक कोण सपा और दूरी बसपा को होगा। अब रहा तीसरा कोण् तो भाजपा, कांग्रेस और निर्दल पिंटू सिंह में से जो भी शक्तिशाली दिखेगा बाकी दो के वोटे उसकी तरफ खिसकेंगे।फिलहाल ऐसा होना तो बाद की बात है अभी तो भाजपा उम्मीदवार बागी उम्मीदवार से ही जूझने में लगे हुए हैं।