आधी दुनियांः बांसी नाम की फुलवारी का जतन से देख भाल कर रहीं “चमन” आरा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। किसी चमन (बगिया) की खूबसूरती बढ़ाने वाली को चमनआरा कहते हैं। नगरपालिका बांसी नाम की फुलवारी को महकाने जैसा काम करने वाली उस शख्सियत का भी नाम चमन आरा है। यूँ तो ये एक सियासी दल का प्रमुख चेहरा हैं, लेकिन इनकी असल पहचान बिना भेदभाव समाज के हर वर्ग के साथ खड़े रहने वाली है। सुख हो या दुःख, आपदा हो या सहयोग देने का अवसर, अक्सर वे हर जरूरत पर अगली पांत में खड़ी दिख जाती हैं। भले ही ससुराल में आकर उन्होंने राजनीति सीखा हो मगर अपनी कार्यकुशलता के बल पर वे ससुराली विरासत की सीमारेखा से कहीं आगे निकल गई हैं। लोग उनमें भविष्य की बड़ी महिला नेत्री की छवि की तलाश करने लगे हैं।
युवाओं की रोल माडल हैं चमनआरा
बांसी विधानसभा क्षेत्र की सियासी फिजाओं की पहचान बन चुकी चमन आरा राइनी आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं। बोलचाल में स्मार्ट, लड़ने में जुझारू और आत्मविश्वास से भरपूर चमन आरा युवाओं की रोल माडल तो हैं ही, महिलाओं के लिए एक नज़ीर है। जनसेवा के अब तक के सफर में इन्होंने हर उस कठिन डगर पर कदम बढ़ाएं हैं, जहां पड़ित और शोषित लोग शिद्दत से उनका इंतजार करते देखे गये।
सरकारी तंत्र की खामियों का रोना नहीं रोतीं चमनआरा
चमनआरा को जो बात औरों से अलग करती है वो ये कि सरकारी तंत्र की खामियों का रोना रोने की बजाय ये यथासंभव संसाधन जुटा कर जरूरतमंद को राहत देने की ईमानदार कोशिश करती हैं। एक बार वे नगर पालिका बांसी की अध्यक्ष रही हैं। वर्तमान अध्यक्ष तो उनके पति हैं मगर आज भी जनता के बीच वहीं दिखाई पड़ती है। उनकी हर सियासी गतिविधि में उनके पति मो. इद्रीश पटवारी हमेशा खड़े नजर आते हैं। पति इद्रश पटवारी की राजनीति में जहां धैर्य और संयम है, वहीं चमनआरा ने आक्रामक राजनीति का दामन थामा है।लिहाजा वह युवाओं का राल माडल बनती जा रही हैं।
कोरोना काल में हर पड़ित की मदद की
चमनआरा में जुझारू प्रवृति की कमी नहीं है, लिहाजा वह कठिन से कठिन हालात का सामना करने से नहीं हिचकतीं। उदाहरण के लिए बता दें कि कोरोना काल में जब बड़े नेता घरों से बाहर निकलने का साहस नहीं कर पा रहे थे तब यह युवा नेत्री मोटर साइकिल पर बैठ कर गरीब पीड़ितों का दुख बांट रही थी, और हमारी संवेदनशील पुलिस इस जांबाज महिला की गाड़ी का चालान काट रही थी। चमनआरा को नारी अधिकार और समाजवादी मुद्दों की गहरी समझ है। इसी समझ के तहत वह आये दिन लड़ती भिड़ती नजर आती हैं। अभी पिछले सितम्बर महीने वे लखनऊ में संघर्ष करते गिरफ्तार हुई थी।
चमनआरा वास्तव में बांसी विधानसभा क्षेत्र के सियासी बगिया की संरक्षक/माली की भूमिका में आती जा रही हैं। वह अपनी आगे कि राजनीतिक यात्रा में विधायक और सांसद के पड़ाव पर कब पहुंचेंगी? इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि अभी क्षेत्र में बहुत काम है। अभी शोषित पीड़ित समाज की आवाज बन कर उनका उत्थान करना है। वे कहती हैकि एक दिन यही समाज उन्हें ऐसे चुनाव लड़ने के लिए आवाज देगा, तब वे सोचेंगी। वे गरीब व वंचित समाज को संदेश व भरोसा देते हुए कहती है कहती हैं कि—
मेहरबां हो के बुला लो मुझे जब भी चाहो,
मै गया वक्त नहीं हूं कि फिर आ ही न सकूं।