डिजिटल दुवाओं के साथ पढ़ी गई ईद की नमाज, इस बार अपनों को गले नहीं लगा पाये लोग
निजाम अंसारी
शोहरतगढ़ सिद्धार्थनगर। हमेशा की तरह चाँद देखकर रोजे रखना और चांद देखकर ईद मनाना मुस्लिम परम्परा का हिस्सा रही है। मगर करोना व लॉकडाउन के कारण उसका असर मुस्लिम समुदाय में दिखा लोगों ने नए कपड़े नहीं पहने। किसी के परिवार का कोई एक बच्चा नए लिबास में नजर आ रहा था तो भी मुसलमानों के अंदर खुशी का कोई ज़ज़्बा नजर नहीं आ रहा था। कोविड 19 के कारण लोग गले भी नहीं मिले जैसा कि आमतौर पर गले मिलकर दुवा दी जाती है।
ईद में लोग एक दूसरे के परिवार में जाते हैं सिवइयाँ खाते हैं, इसका भी साफ तौर पर असर दिखा। बहरहाल ईद तो ईद है खुशी का दिन माना जाता है और माना जाता रहेगा लेकिन इस बार की ईद के किस्से लोग अपने आने वाली पीढ़ियों को जरूर सुनाएंगे। मुस्लिम समुदाय का मन बुझा बुझा सा रहा लोगों ने ईद की नमाज की परम्परा तो निभाई लेकिन खुश कोई नहीं था लोगों ने अपने घरों पर हल्की फुल्की ईद की तैयारियां की घर पर ही नमाज अदा की और घर के अंदर ही ईद हो गई। लेकिन इसके अलावा भी एक ईद खुशी वाली और हुई फेसबुक व्हाट्सएप्प इंस्टाग्राम के जरिये लोगों ने अपने दोस्त यारों रिश्तेदारों को मुबारकबाद के साथ ही डिजिटल दुवाएं लीं।
सोशल डिस्टेन्स का शानदार नमूना इस ईद की नमाज को कहा जा सकता है चुनिंदा लोग मस्जिदों में माइक पर नमाज के तरीके पढ़कर आम लोगों को उनके घरों पर आवाज के सहारे से नमाज पढ़ाई गई। जहां तक आवाज पहुँची वहां तक के लोगों को नमाज अदा करने में मदद मिली। सबसे बड़ी बात इस लॉक डाउन की ईद को बेहतर और खुशगंवार बनाने के लिए कस्बे के कुछ जिंदादिल लोगों ने गरीब अवाम की मदद करी जो लंबे लॉकडाउन के कारण बेअसर साबित हुईं । ॽहालांकि उन्हें फौरी तौर पर मदद हासिल हुई दुवाओं के काबिल अख्तर भाई , एज़ाज़ अंसारी , रहमानी फाउंडेशन दारा भाई ने लोगों को ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद दी वहीं जामा मस्जिद शोहरतगढ़ के इमाम जनाब अब्दुल्लाह आरिफ सिद्दीकी ने ईद की नमाज 8 बजे पढ़ाई दुवा में कोरोना वायरस से निजात के लिये अल्लाह से रहम की भीख मांगी।