हाय रे मजबूरीः करोना के खतरे के बीच दस साल का मासूम कर रहा परिवार का भरण-पोषण
एम. आरिफ
इटवा, सिद्धार्थनगर। कहते हैं मजबूरी सामने आती हैं तो नन्हे कदम भी रोजी रोटी के लिए घर से निकल पड़ते हैं । कोरोना के इस महामारी में मजदूर परिवारों के सामने कई मजबूरियां आ गई है । ऐसे में में एक मासूम बालक नन्हें कदमों से भागदौढ़ कर परिवार का खर्च उठा रहा है।
दरअसल, लॉकडाउन की वजह से अंकुर के परिवार का रोजी रोटी पर संकट आ गया है । बाप के पास इस वक्त काम नहीं है।वह बीमार भी है। घर में दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ने लगे। फाके के हालात थे। राशन खरीद सकें इसके लायक भी पैसे नहीं थे। परिवार वालों को भूखे पेट दस साल की बेटे से सहन नहीं हुई। और वह घर के खर्च का बीड़ा अपने कंधों पर उठा लिया।
इटवा तहसील क्षेत्र के ग्राम धनगढ़वा के अंकुर मार्केट से सब्जी खरीद कर साइकिल से गली मोहल्लों में घूम-घूम कर बेच रहा है। कितना बच जाता है? पूछने पर जवाब देता है-कभी 100 तो कभी कभार 200 रुपये तक बच जाते हैं। इससे उस दिन का खाने का काम तो हो ही जाता है। उसके मासूम चेहरे पर मीठी मुस्कान यह इशारा कर रही थी कि खाने का इंतजाम कर वह कितने सुकून में है। वह बताता है ि दसके मां बाप के पास काम नहीं है। लिहाजा वह मजबूरी में धंधा कर रहा है।
बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई ने की मदद
क्षेत्र में लोगों की मदद करने के लिए निकले अरुण द्विवेदी की नजर अंकुर पर पड़ी तो उन्होंने अपनी गाड़ी रोक कर मासूम का हाल चाल पूछा और राहत सामग्री देकर मदद की । अंकुर ने निर्विकार भाव से उनकी सामग्री स्वीकार की और फिर चल पड़ा ‘सब्जी ले लो’ की आवाज लगाता हqआ किसी अन्य गांव की ओर।