केले की पहली फसल बना देती है लखपति, इटवा के सैकड़ों किसानों ने धान गेहूं छोड़ कर अपनाया हरीछाल की खेती

November 26, 2015 2:04 PM0 commentsViews: 682
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हमीद खान

इटवा के टेउवां ग्रांट में लहलहाती केले की फसल

किसानी आज घाटे का सौदा है, लेकिन केले की खेती ने इस मिथक को तोड़ दिया है। इटवा में एक एक एकड़ में केले की खेती करने वाला किसान पहली फसल के बाद ही लखपती बन जाता है। एक लाख की पूंजी लगाने वाले किसानों को 10 महीने में ही 3 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। यही वजह है कि इटवा का टेउवां ग्रांट क्षेत्र अब केले की दुनियां में मिनी भुसावल कहा जाने लगा है। हजारों किसानों ने अपनी धान गेहूं जैसी मुख्य फसल को छोड़ कर केले की खेती शुरू कर दी है।

इटवा इलाके के बेलवा गांव के बड़े काश्तकार सुधीर शर्मा जी भी प्रमुख रुप से केला की खेती को वरीयता देते हैं। केले की खेती करने वाले डोकम (टेउवां) निवासी जमाल चौधरी ,एजाज चौधरी तथा तथा क्षेत्र के रज्जाक, अब्दुल हक आदि का कहना है। केले का सीजन जुलाई से नवंबर तक होता है। जबकि बुवाई मानसून आते ही शुरु हो जाती है। एक एकड़ में 1620 पौधा लगाया जाता है। जिसमें 30 से 35 हजार खर्च आता है।

 फसल अच्छी रही तो 50 से लेकर 100 रुपये प्रति घौद आमदनी होती है। सीमा करीब होने के कारण इस क्षेत्र के केले का निर्यात नेपाल तक होता है। साथ ही साथ बड़े पैमाने लखनऊ, दिल्ली, कानपुर ,गाजियाबाद तक यहां का केला निर्यात किया जाता है। जो किसान स्वयं मंडी में ले जाने में सक्षम हैं, उन्हे अधिक फायदा होता है। और दूर दराज के व्यापारी खरीद के लिए खेताें तक आते हैं।

डा. अख्तर हैं नकदी खेती के जनक

इटवा इलाके में केले की खेती की शुरु कराने का श्रेय कृषि वैज्ञानिक डा. अख्तर को जाता है। डा. अख्तर को इस क्षेत्र में मुकाम हासिल है। वह उसी इलाके के रहने वाले हैं। डा. अख्तर ने ही टेउवां इलाके में 20 साल पहले केले की खेती शुरू कराई थी।

शुरु में तीन किसानों ने ही दिलचस्पी ली, मगर आज इलाके लाभ को देख कर हजारों किसानों ने इसे अपना लिया है। इससे उनकी हालत भी बदली है। यहां के केला किसान अब कारों से घूमते नजर आते हैं। उनके बच्चे अच्दे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। एक तरह से इसकी आमदनी ने उनकी जीवन शैली ही बदल दी है।

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