राख क ढेर में जले गेहूं के दाने तलाशने को मजबूर किसान परिवार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। गेंहूं की फसल के लिए आफत बन चुकी आग की चिंगारी किसानों पर कहर बन कर टूट रही है। पिछले दस दिनों चल रहे तबाहियों के चलते सैकड़ोंकिसान परिवारोंके मृंह कानिवालादिनता जा रहा । आग की चिंगारियां देखते ही देखते खड़ी फसल ही नहीं उनकी उम्मीदों को भी को राख बना देती हैं।आस टूटने के बाद भी जले हुए खेतों में किसानों के परिवार राख के बीच दाना तलाशते देखे जा सकते हैं।
सब कुछ खाक हो जाने के बाद भी वह मिट्टी और राख से गेहूं की बाली को चुनते हैं बची बालियों से शायद उनके खर में कुछ जून कीरोटी का इंतजाम हो जाए। किसान दर्द भरे स्वर में कहते हैं कि ठंडल तो चल गया है, बाली से कुछ निकल जाएगा तो कुछ ही दिन खा लेंगे। अगलगी के इस दौर में गांव गांव में राख में बाली चुनने के लिए किसानों का पूरा कुनबा लगा रहता है। शनिवार को खेसरहा क्षेत्र के धमौरा गांव के सीवान में जली बाली बाली को बटोरते हुए किसानों के चेहरे पर जो बेबसी साफ नजर आई, वे कड़ी धूप और आग की लपटों के समान शरीर को झुलसाती पछुआ हवा के बीच पूरे कुनबे के साथ किस्मत के दाने बटोर रहे थे।
खेसरहा थाना क्षेत्र के धमौरा में शुक्रवार शाम को लगी आग से दजनों किसानों की खड़ी फसल के साथ ही उनके अरमान भी जल गए। किसी को घर बनवाने, किसी को बच्चों की अच्छी शिक्षा, किसी के सामने बैंक का कर्ज और किसी को खाने के लाले पड़ गए। पीडि़त किसानों का कहना है कि जैसे कोई जानबूझकर खेतों में आग लगा रहा है। धमौरा निवासी अरुण मिश्र का कहना है कि शुक्रवार को लगी आग से 8 बीघा गेहूं की खड़ी फसल जलकर राख हो गई। सोचा था इस बार उपज बेचकर बच्चे का दाखिला शहर में कराएंगे। लेकिन आप बच्चों को गांव में ही पढ़ाना पड़ेगा।
बूढ़ी घोसियारी निवासी अजय मिश्र का कहना है कि आज से लगभग 22 बीघा फसल जलकर राख हो गई। घर निर्माण का कार्य चल रहा है सोचा था कि फसल बेचकर घर पूर्ण करा लूंगा। लेकिन फसल जलने के साथ ही घर पूर्ण कराने का सपना भी चूर हो गया। पचपेड़वा निवासी राम कुमार का कहना है कि आग से नौ बीघा फसल जलकर राख हो गई। उनके ऊपर केसीसी और ट्रैक्टर का लोन का कर्ज है, उन्होंने सोचा था कि फसल बेचकर सभी कर्जा चुका दिया जाएगा। लेकिन फसल जलने के साथ ही सब समाप्त हो गया।
पचपेड़वा निवासी सहदेव यादव के मुताबिक गांव में लगी आग से एक बीघा खड़ी फसल जल गई। खेतों से गेहूं काट लिया गया था और बेच भी दिया गया था। यही एक बीघे का गेहूं खाने के लिए बचा था जो समाप्त हो गया अब बाजार से गेहूं खरीद कर खाना पड़ेगा। यही हाल पूरे जिले का है, जहां राख के ढेर में अनाज ढूंढते बच्चे प्रतिदिन देखे जा सकते हैं।