बताओ मोरी रानी अब का करिहो, चली गय परधानी अब का करिहो
बहत किहो मनमानी सरऊ, तबै गई परधानी सरऊ, अब तो भुजिया भत न पइबों खात रहेव बिरयानी सरऊ
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। गांव की राजनीतिक जमीन तपने लगी है। गांव के चौपालों अैर नुक्कड़ों पर भाति भांति की चुनावी चर्चा जारी है। सवाधिक चर्चा उनगांवों में है जहां की ग्राम प्रधानी की सीट पिछले चार चुनाव से अनारक्षित रही है और वहां का दबंग वर्ग का कोई न कोई प्रधान जीत कर प्रधानी की मलाई काटता रहा है। ग्राम पंचायत के नये नियम क तहत इस बार ऐसे लगभग सभी गांवों को आरक्षित किया जाना है। इसलिए आरक्षण पाने वाला तबका बहुत खुश है। यही कारण है कि ऐसे गांवों की चुनावी चर्चा में हंसी मजाक के साथ होलियाना मूड के कई गीत गाये जा रहे हैं। फरूक सरल की गीत “ चली गै परधानी अब का करिहो” खब लोक पिय हो रहा है।
शासन के नये नियम के मुताबिक 1995 वसे अब तक हुए ग्राम प्रधानी के सभी चार चुनावों में जो गांव कभी आरक्षित नहीं हुए, उन्हें इस बार अवश्य आरक्षित किया जाना है। इस लिहाज से देखा जाये तो जिले कि कुल 1136 ग्राम पंचायतों में 60 ऐसी हैं जो कभी भी आरक्षित नहीं हुई हैं। इसके अलावा 200 से अधिक ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जो पिछड़ों और महिलाओं के लिए तो आरक्षित हुई परन्तु वे अनुसूचित जाति के लिए कभी आरक्षित नहीं हुईं। इस प्रकार जिले में लगभग 275 ग्राम पंचायतें ऐसी हो जाती हैं, जो अनुसूचित जातियों के लिए कभी आरक्षित नहीं की गई।
शासन के आरक्षण नियम के मुताबिक जिले की 23 प्रतिशत ग्राम पंचायतें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित की जानी हैं। इस लिहाज से उनकी तादाद लगभग सवा दो सौ होती है। शासन के निर्देश पर चिन्हित किये गये इन्हीं 275 ग्रम पंचायतों में से सवा दो सौ गांवों को इस बार अनुसूचितों को लिए आरक्षित किया जाना है।
इसका मतलब है साफ है कि इसबार जिले की लगभग वे ग्राम सभी ग्राम पंचायतें दलितों के लिए आरक्षित हो जाएंगी जिनकों दबंग सवणों व पिछड़ों ने जोड़ तोड़ कर अपने लिए चयनित कर रखा था। ऐसे गांवों के दलित वर्ग के लोग बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं। शोहरतगढ़ क्षे़त्र के एक शिक्षित अनसूचित युवक गंगाराम व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि शासन का इस नियम ने दबंगों की चूलें हिला दी हैं। इससे दलित वर्ग बेहद प्रसन्न हैं
एक अन्य व्यक्ति झिनकान कहते हैं कि अब ऐसे गांवों से अनुसूचित व्यक्ति प्रधान होगा तो उन दलित टोलों का विकास होगा, जिन्हें दबंगों ने नजर अंदाज कर रखा था। फिर वे होलियाना मस्ती में गुनगुनाने लगते है कि- “ बताओ मोरी रानी रानी अब का करिहो, चली गै परधानी अब का करिहो”? इसी प्रकार ग्राम कुओं हाटा के एक युवक ने बताया कि उसकी ग्राम पंचायत में दस घर अनुसचित हैं। शासन के नये नियम से इस बार यह सीट उनके लिए आरक्षित हो सकती है। वह हर्ष से गाता है- “बहुत किहो मनमानी सरऊ, तबै गई परधानी सरऊ”। ग्राम साहा का एक युवक कहता है कि अब हमारा गांव रिजर्व होगा। परधान बन कर हम भी कार खरीदेंगे।
होली वाले मौसम में इस तरह के होलियाना गीत को भले ही आप नजर अंदाज कर दें, मगर दो बातें साफ होती हैं। प्रथम यह कि दलित मुख्य धारा में आने के लिए किस कदर इच्छुक है। दूसरा कि प्रधानी सेवा का नहीं कमाने का एक सरकारी कार्यक्रम है। कि साइकिल पर चलने वाला भी एक साल की परधानी में चौपहिया वाहन का स्वामी बन जाता है। बहरहाल इस कटेगरी के 275 गांवों के दबंग वर्ग के लोग नये नियम से दुखी है तो दलित वर्ग होली के फुल मूड में दिख रहा है।