इटवा : बूढ़ी राप्ती की कटान तरह भाजपा का जानाधार काट रही बसपा
भाजपा के वोटों में सेंधमारी के लिए पूर्व भाजपा वर्करों को चतुराई से इस्तेमाल कर रहे बसपा के हरिशंकर सिंह
नज़ीर मालिक
सिद्धार्थनगर। इटवा क्षेत्र की बूढ़ी राप्ती नदी है तो छोटी मगर बाढ़ व कटान की दृष्टि से बेहद खतरनाक है। वह जब सड़क या तटबन्ध काटती है तो पहले अंदर अंदर कटान कर उसे खोखला करती है और जैसे ही लोग कुछ समझ पाएं, मिनटों में वह तेजी से विनाश लीला रच देती है। बूढ़ी राप्ती नदी के इस तेवर को इटवा में बहुजन समाज पार्टी ने अंगीकार कर लिया है और वह भाजपा के एक एक सुरक्षात्मक तटबंध (जनाधार) को धीरे धीरे मगर मज़बूती से काटने लगी है।
ज़िले की सबसे हॉट सीट मानी जा रही इटवा सीट का चुनावी संघर्ष रोचक होता जा रहा है। यहां से प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी व सपा शासन में विधानसभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडेय के बीच प्रतिष्ठा की जंग का अनुमान लगाया जा रहा था। अभी तो नामांकन की रस्म भी पूरी न हुई मगर इस दौरान बहुजन समाज पार्टी कटान की दृष्टि से बेहद खतरनाक बूढ़ी राप्ती नदी की तरह भाजपा के जनाधार को अंदर से काट रही है।
हलचलों से दूर हैं राजपूत समर्थक
दरअसल वोट की कटान के लिए बसपा प्रत्याशी हरिशंकर सिंह बहुत प्रभावशाली रणनीति पर काम कर कर रहे हैं। एक तो उन्होंने अपने सजातीय वर्करों और समर्थकों को बड़ी खामोशी उनके गांव व पड़ोस के गांवों को संभालने की ज़िम्मेदारी दे दी है तथा उन्हें सार्वजनिक मंचों से दूर रखा गया है। वास्तव में राजपूत जैसी प्रभावशाली कौम यदि सड़कों पर अति सक्रिय हो जाय तो माहौल तगड़ा तो दिखता है मगर लाभ कम मिलता है, यदि वे लोग खामोशी से अपने गांवों में काम करते है तो गैर राजपूत खासकर किसान और गरीब को अपने पक्ष में लाने में अधिक सफल देखे जाते हैं। हरिशंकर सिंह इसी सच्चाई को समझ कर अपनी राजपूत ऊर्जा को सकारात्मक ढंग से प्रयोग में ला रहे हैं।
भाजपा के खिलाफ भजपा के पूर्व वर्करों को उतारा
इसके अलावा हरिशंकर सिंह ने भाजपा समर्थक अति पिछड़े वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा के अपने पुराने वर्करों को अपने पक्ष में लगा दिया है। भनवापुर और खुनियांव ब्लॉक के दर्जनों गांवों में इसका खुला असर देखा जा रहा है। पिछड़ों में वे अपनी पैठ बनाने को लेकर गावों में जाते हैं। सबके बीच भाजपा द्वारा अपने प्रति किये गये अपमानजनक व्यवहार को बड़ी शलीनता से पेश करते हैं। मसलन वे ग्रामीणों से पूछते हैं कि पिछले तीन दशक से इलाके में भाजपा के लिए खून पसीना बहाते रहे मगर चुनावों के समय हर बार किसी दूसरे को टिकट दिया जाता रहा।
हरिशंकर की सौम्यता उनकी ताकत
वे यह भी कहते है कि यहां तक तो फिर भी ठीक था मगर गत दिनों उनके ही पार्टी के विधायक जो मंत्री भी हैं ने किस प्रकार उनके परिजनों को ब्लाक प्रमुख बनने से रोक कर उन्हें घोर अपमानित किया गया? भोले भाले ग्रामीण उनकी बातों को सुनते हैं उनकी आंखें में व्याप्त दर्द को महसूस करते है और उन्हें अपना वोट देने का वचन देते हैं। सहानुभूति का यही औजार भाजपा के सुरक्षा तटबंध को बूढ़ी राप्ती की कटान की तर्ज पर काट रहा है।आचरण से सौम्य और राजपूत होकर भी दबंगई से कोसो दूर हरिशंकर सिंह की सही सौम्यता उनकी ताकत बन गई है जिसमें बसपा के दलित वोट मिल कर उन्हें अपराजेय बनाने की ओर ले जा रहे हैं। कहन न होगा हरिशंकर सिंह आज इटवा के दिगग्जों के बीच मजबूती से ख़ड़े हैं।
अपेक्षा का शिकार हुए वरिष्ठ भाजपाई नेताओं के नराजगी का भरपूर उठा रहे फायदा
हमारे रिपोर्टर आरिफ मकसूद के मुताबिक घोर अपेक्षा का शिकार हुए भाजपा नेता एंव कार्यकर्ता जो जनसंघ से पार्टी से जुड़े कर मजबूत करते रहे, इनके बदौलत पिछले चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी सतीश चंद्र द्विवेदी को जबरदस्त जीत मिली, परन्तु पांच वर्ष इन कार्यकर्ताओं को घोर अपमान ही का सामना करना पड़ा है, यहां तक कि इटवा विधानसभा में पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्ता में रह कर भी अपना निजी कार्य कराने में असफल दिखाई दिए , इस नराजगी को हाल के चुनाव में हरीशंकर सिंह के रूप में एक विकल्प मिल गया है , चूंकि हरिशंकर सिंह पुराने भाजपाई रह चुके हैं और 2007 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं जाहिर है कि हरिशंकर सिंह का पुराने भाजपाई कार्यकर्ताओं से नजदीकियां हैं ऐसे में इन संबंधों को वोट के रूप में बदलने का पूरा प्रयास करेंगे।