बलरामपुर कांडः हाथरस की गुड़िया की चिता बुझी नहीं, गैंसड़ी की गुड़िया भी जल गई
सग़ीर ए ख़ाकसार
ऐसा लगता है जैसे खत्म मेला हो गया
उड़ गयी आंगन से चिड़िया घर अकेला हो गया।
मुनव्वर राना साहब का यह शेर उन बेटियों के लिए है जो शादी के बाद अपने ससुराल चली जाती है। लेकिन यहां तो चिड़िया हमेशा हमेशा के लिए दूसरी दुनिया मे चली गयी है। दरिंदगी और हवस की शिकार हुई यह बेटी अब लौटकर अपने बाबुल के घर कभी नहीं आएगी। आंगन में सन्नाटा पसरा है।मां के आंसू रोते रोते सुख गए हैं। जी,हाँ ! हम बात कर रहे हैं बलरामपुर ज़िले के गैंसड़ी अंतर्गत मझौली गांव की 22 वर्षीय आदिवासी छात्रा इच्छा शिल्पकार (परिवर्तित नाम) की जिसे गांव के दो युवकों ने अपनी हवस का शिकार बनाया । जिसकी बाद में मौत हो गयी।घटना 29 सितंबर की है।पुलिस ने गैंगरेप और हत्या के आरोप में दोनों युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
इच्छा की इच्छाएं अन्नत थीं।उसके अपने सपने थे।वो खुले आसमान में उड़ना चाहती थी।कुछ बनना चाहती थी।अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वो दिन रात कड़ी जद्दो जहद कर रही थी।पढ़ाई के साथ साथ वह एक एनजीओ में महज तीन हज़ार रुपये प्रतिमाह की मामूली तनख्वाह पर नौकरी भी कर रही थी।।बेहद गरीब परिवार की छात्रा इच्छा को उन दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार तब बनाया जब वह पचपेड़वा स्थित एक कॉलेज में बीकॉम में एडमिशन कराने गयी थी और अपने घर वापस लौट रही थी।पिता बजरंगी की भी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है।
बहुत मेहनत के बाद वो बहुत मामूली पैसा ही कमा पाते हैं।वो सिल और लोढ़ा छीनने का मामूली काम कर किसी तरह अपनी तीन बेटियों सहित अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं।इच्छा का भाई एक होटल पर नौकर का काम करता है। इच्छा की दो उससे छोटी बहने भी हैं जो पढ़ाई करती हैं।इच्छा अपने दोनों बहनों की ज़रूरतों का भी ख्याल रखती थी।साथ ही साथ पढ़ाई करने और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती थी।
यूं तो पूर्वांचल का बलरामपुर ज़िला मानव विकास सूचकांक में बहुत पिछड़ा है। लेकिन महिलाओं में शिक्षा,साक्षरता,एवं जागरूकता बढ़ी है।बेटियां बड़ी तादाद में स्कूल की तरफ रुख कर रही हैं। शिक्षा और साक्षरता को लेकर महिलाएं जागरूक हुई हैं।आंकड़ों की माने तो पिछले एक दशक में महिलाओं की साक्षरता दर में उन्नीस फीसदी का इजाफा हुआ है।महिलाओं में साक्षरता दर की यह बृद्धि पुरषों से तीन फीसदी ज़्यादा है।वर्ष 2001 में महिलाओं का साक्षरता दर 21.79 फीसदी था जो 2011 में 40.92 हो गया।
बलरामपुर की सरजमीं साहित्यिक रूप से भी काफी उर्वरशील है।अली सरदार जाफरी,बेकल उत्साही जैसे विश्वप्रसिद्ध शायरों ने अंतरराष्ट्रीय फलक पर जहां इसे पहचान दिलाई है वहीं नई जनरेशन की सबा बलरामपुरी, रुखसार बलरामपुरी जैसी उदीयमान कवित्रियों ने महिला सशक्तिकरण को मजबूत बनाने में अपनी भूमिका निभाई है।अपनी शायरी से अलग पहचान बनायी है।
बलरामपुर की महिलाओं ने सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में ही नही बल्कि राजनैतिक क्षेत्र में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।जिले के चार नगर निकायों में दो नगर पालिका और दो नगर पंचायत है।एक नगर पालिका और एक नगर पंचायत में फिलहाल महिला चैयरपर्सन काबिज हैं।जिला मुख्यालय नगर पालिका के चेयरपर्सन पद की श्रीमती कितबुनिशा शोभा बढ़ा रही है तो वहीं नगर पंचायत पचपेड़वा की चेयरपर्सन समन मलिक ने सफलता के झंडे गाड़े हैं।काफी पहले से ही महिलाएं राजनैतिक रुप से प्रतिनिधित्व करती रही हैं।2002 में बलरामपुर विधान सभा से गीता सिंह सपा से विधायक रह चुकी है।
तुलसीपुर विधान सभा से कांग्रेस की प्रत्याशी ज़ेबा रिजवान उच्च शिक्षा प्राप्त महिला है।उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया से मास कम्युनिकेशन में परास्नातक किया है।विनीता सिंह भी राजनैतिक रूप से सरगर्म रही हैं।जेबा रिजवान कहती हैं कि हैं अपराध नियंत्रण में प्रदेश सरकार पूरी तरह विफल है। प्रदेश की स्थिति बद से बदतर हो गयी है।अभी हाथरस की बेटी की चिता ठंढी भी नहीं हुई थी कि बलरामपुर की घटना ने दिल दहला दिया।
महिलाओं में शिक्षा और साक्षरता दर का बढ़ना निश्चित रूप से महिला सशक्तिकरण को दर्शाता है।इच्छा जैसी बेटियां और उनकी की इच्छाएं असमय ही दम न तोड़ दें इसके लिए बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ जैसे सिर्फ नारों से काम नहीं चलेगा ।बेटियों को उनकी सुरक्षा और बेहतर भविष्य की गारंटी देनी होगी।