आजादी के बाद शहरों की तरह विकसित गांव की सारी सुविधाएं खत्म होती चली गईं
––– ग्राम पंचायत कादिराबाद की व्यथा–कथा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। देश की आजादी के लगभग एक दशक बाद डुमरियागंज विकास खंड का ग्राम कादिराबाद जिले के विकसित गावों में अव्वल नम्बर पर था। सन 60 के दशक में इस गांव में स्ट्रीट लाइट जला करती थी। वाटर सप्लाई जैसी सुविधा थी, मगर गांव राजनीतिक रूप से ज्यों ज्यों ताकतवर हुआ, उसके विकास की रफ्तार कमजोर होती गई और गांव के व्रिकास का ग्राफ ठहर सा गया।
ब्लाक डुमरियागंज से मात्र पांच किलोमीटर दूर पक्की सड़क के किनारे कादिराबद लगभग 6 हजार की आबादी वाली ग्राम है। सन 60 दशक में उसकी आबाद लगभग 2 हजार हुआ करती थी। इतना छोट गांव हाने के बाद वहां सन 63 में नलकूप ही नहीं लगा वरन गांव में ओवरहेड भी बना तथा थोड़ी थोड़ी दूर पर स्टैंडपोस्ट बना कर ग्रामीणों को पेयजल सुविधा भी मुहैया कराई गई। उस समय यह जिले के विकास की बड़ी घटना मानी गई। इसका सारा श्रेय वहां के दो रिटायर्ड आनरेरी मजिस्टेट भाईयों मलिक शफआत और मलिक मुश्ताक को दिया गया। यह उन दोनों भाइयों के प्रयास का फल भी था।
सन 63 में बिजली आने के बाद नये नये प्रधान बने युवा मलिक कमाल यूसुफ ने गांव की हर गली में खड़ंजा लगवाने के साथ वहां स्टीट लाइट भी लगवाया। इस प्रकार कादिराबाद बस्ती गोरखपुर मंडल का पहला गांव बना जहां स्ट्रीट लाइट और पीने के लिए वाटर सप्लाई की व्यवस्था थी। फिर गांव में एक सरकारी अस्पताल की भी स्थापना करा दी गई। इसके अलावा गांव में उसी समय प्राथमिक दि्यालय, जूनियर हाई स्कूल, कन्या प्रथमिक और जूनियर स्कूल भी बने। इस प्रकार गांव में आज से 47 साल पहले सारी स्थापित तमाम प्रकार की मूलभूत सुविधाएं स्थापित हो गई।
लेकिन न जाने किसने इस गांव के विकास की नजर लग गई। बीते चार दशक में इस गांव पर विनाश की बिजली गिरने लगी। पहले स्टैंड पोस्ट टूटे फिर पानी सप्लाई ठप हो गई। गांव में सप्लाई के लिए बना ओवरहेड टंक का ढांचा आज भी हाथी दांत की तरह खड़ा है। सन 80 के दशक में अस्पताल भी बंद हो गया और बाद में दूसरी ग्राम पंचायत में स्थापित हो गया। नलकूप भी वन भी खंडहर हो चुका है। नियति ने गांव वालों को यहीं नहीं छोड़ा बल्कि गांव का कन्या और जूनियर स्कूल भी पड़ोस के ग्राम पंचायत में स्थानांतरित हो गया। बिजली अब कभी कभार ही आती है। इस प्रकार विकास की रोशनी से चकाचौंध यह गांव उपेक्षा के अंधकार में डूब गया।
राजनीतिक प्रतिशोध के करण छीनी गईं सुविधाएं- ग्राम प्रधान
गांव के प्रधान मलिक रियाजुद्दीन बताते हैं कि दरअसल कादिरबाद के तत्कालीन प्रधान कमाल यूसुफ बाद में विधायक हुए तब तक सब कुछ ठीक रहा। बाद में जब वे १० साल तक विधायक नही हुए तो दूसरे विधायकों ने राजनीतिक दुश्मनी और द्धेष वश इस गांव की सारी सुविधाएं छिनवा लीं। हां यह जरूर है कि यहां की स्ट्रीट लाइट पहले गांव के तालाबों की नीलामी से हेाने वाली आय से चलती थी। मगर पट्टा प्रथा के कारण जब आमदनी ही नहीं रही तो मेटीनेंस और बिजली बिल अदा करना कठिन होता गया, फलतः स्ट्रीट लाइट बंद हो गईं उन्होंने कहा कि एक बार वे फिर गांव में कुछ बेहतर करने के प्रयास में लगे हैं।