कानपुर में हिंदू युवाओं ने मुस्लिम बहन की शादी करा कर दिया इंंसानियत का पैगााम
विषेष संवाददाता
लखनऊ। कानपुर में एक मुस्लिम बहन की शादी थी. इसी बीच कानपुर में दं’गा-फसा’द और क’र्फ्यू शुरू हो गया. घर वालों ने सोचा कि शादी टाल दी जाए. दुलहिन और दुलहा दोनों के घर वाले बड़ी चिंता में थे कि फसाद में शादी कैसे होगी? दुल्हन के मोहल्ले के कुछ हिंदू युवाओं को पता चला कि शादी टलने वाली है. एक युवा के मन में कचाूेट उठी. बोला, गुरु शादी तो होकर रहेगी. अपने कुछ दोस्तों को लिया और पहुंच गया दुलहिन के घर. बोला हम पड़ोसी हैं, हमारे रहते किसी की क्या मजाल जो शादी में व्यवधान डाले. परतापगढ़ से बारात आनी थी. फोन किया गया कि भैया बारात लेकर आ जाओ, लाइन क्लीयर है.
जब बारात आई तो चिंटू, पिंटू, बबलू, नीरज, पिंकू, रिंकू सब हिंदू लड़के दुललिन के घर से एक किलोमीटर दूर इकट्ठा हुए. बारात आई औरउन युवकों ने बनाई ह्यूमन चेन, फिर बारात को ह्यूमन चेन के अंदर सुरक्षित लेकर दुल्हन के घर आए. जब तक शादी हुई सब लड़के वहीं जमे रहे और फिर वापस बारात को सुरक्षित विदा किया.
इस अभियान की अगुआई करने वाले लड़के से पूछा गया कि का हो गुरु? ई सब कइसे? तो गुरु टाइट होकर बोला कि अरे भाई उस लड़की को अपनी आंख के आगे बड़े होते देखा है. हमारी बहन है, उसका दिल नहीं टूटने दे सकते थे. हम तो वही किए जौन हमें ठीक लगा. दुलहिन बनकर बहन जी ने कहा कि मेरा असली भाई यही है. जो मेरे लिए किया है, कभी जीवन में भूल नहीं पाउंगी. बहन ससुराल से लौटी तो सबसे पहले हिंदुआने में जाकर अपने इन भाइयों से मिली.
गणेश शंकर विद्यार्थी के कानपुर में अब भी इंंसानियत के पुजारी रहते हैं, इसलिए हलके में तो लेना मत. एक और कहानी सुबह देखी जिसमें एक मुस्लिम युवक का हृदय एक हिंदू भाई को दान किया गया और सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट भी हो गया. तो भइया, यही है असली भारत. अब सोचिए कि ऐसे समाज को कोई गोडसे और जिन्ना का चेला बांट सकता है क्या? संभव नहीं है.
यह भारत अपने बनने के साथ भगत सिंह और अशफाक उल्ला खां को साथ फां’सी पर झूलते देख चुका है. नफरत की खेती करने वालों से कह दो कि अपनी नफरत का ज़’हर पीकर जह’न्नुम चले जाएं. प्रोटेस्ट वाला पोस्टर सही कह रहा था कि ‘हिंदू मुस्लिम राजी तो क्या करेगा अर्बन नाजी?’ तो जोर से बोलिए जय हिंदǃ