सपा के लिए बहुत कठिन है जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुखों के चुनाव की डगर
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनावी समीकरण समाजवादी पार्टी के पक्ष में है। पार्टीगत आंकड़े ही नहीं बल्कि जातीय आंकड़े भी सपा के मुआफिक में हैं। परन्तु सबसे बड़ी कमी है सपा का सरकार में न होना। इससे पूर्व के अप्रत्यक्ष चुनावों में जीत जाने के बाद भी सपा ब्लाक प्रमुखों ही नहीं जिला पंचायत अध्यक्ष तक को जिस दुर्दशा और अपमानजनक हालात का सामना करना पड़ा है, उसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि सारे समीकरण पक्ष में होने के बावजूद सपा को जिला पंचायत और ब्लाक प्रमुख पदों पर जीत का स्वाद यों ही मिल जाएगा। हां सपा राजनीतिक रूप से जिंदा रहने के लिए इन पदों पर प्रतीकात्मक चुनाव लड़ ले यह अलग बात है।
पूजा यादव या और कौन हो सकता है सपा प्रत्याशी
चुनाव तो बाद की बात है सबसे पहले तो सह तय हो कि सपा का प्रत्याशी कौन होगा। जिला पंचायत चुनाव के पहले सपा से अध्यक्ष पद के तीन दावेदार थे, लेकिन दो की पराजय के बाद केवल एक ही चेहरा बचा है। वह है पूजा यादव का। पूजा यादव सपा नेता राम कुमर चिनकू यादव की पत्नी हैं वह पूर्व में जिला पंचाायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। इसलिए राजनीति में सामान्य दिलचस्पी रखने वाले भी मानते हैं कि सपा में पूजा यादव कर दावेदारी लगभग पक्की है। उनको चुनौती देने वाला फिलहाल दूर दूर तक नहीं दिखता।
क्या चिनकू यादव सत्ता पक्ष से टक्कर ल सकेंगे
वैसे तो चिनकू यादव अपनी पत्नी को ही जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं बनवाया वरन गत चुनाव में सीट के सुरक्षित होने पर अपने वाहन चालक गरीब दास को भी जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराने में सफल रहे। परन्तु बदले माहौल में राजनीतिक हल्कों में यह सवाल गूंज रहा है कि इस बार सपा प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को कितनी टक्कर दे सकेंगे?
दरअसल जिला पंचाायत अध्यक्ष के पिछले दोनों चुनाव में पत्नी व ड्राइवर को जिता कर चिनकू यादव राजनीति के युवा स्टार बन चुके थे। लोगों का मानना था कि ये विपरीत हालात में भी संघर्ष की क्षमता रखते हैं, परन्तु गत 2017 में भाजपा के सत्ता में आते ही इन पर निरंतर हमले हुए और भाजपा के छत्रपों ने इनके पिता को डुमरियागंज ब्लाक प्रमुख पद से तथा वाहन चालक गरीब दास को जिला पंचाायत अध्यक्ष पद से हटा कर ही दम लिया। हालांकि चिनकू यादव ने मुकाबले की हरचंद कोशिश की मगर सरकारी तंत्र के आगे इनकी एक न चली और दोनों ही पद हाथ से जाते रहे।
सत्ताधारी दल के खिलाफ क्या होगी सपा की रणनीति
अब सवाल उठता है कि इस बार चिनकू यादव की पत्नी पूजा यादव मैदान में उतरीं तो हवा का रुख क्या क्या होगा? इस सवाल के जवाब में भाजपा खेमे में आम तौर से कहा जा रहा है कि अखिलेश के शासनकाल में जिस प्रकार वोटों की लूट हुई थी, उसे सपा और सपाइयों को याद रखना चाहिए। कुछ तटस्थ समीक्षक कहते हैं कि अब राजनीति में “जिसकी लाठी- उसकी भैंस” का जमाना है, इसे हर पार्टी के चुनावबाजों को याद रखना होगा। बहरहाल सपा में अभी कुछ तय नहीं है फिर भी यदि पार्टी चिनकू यादव की पत्नी पूजा यादव की प्रत्याशिता का एलान करती है तो सत्ताधारी दल के मुकाबले उनकी क्या रणनीति होगी, यह तो वक्त ही बतायेगा। जहां तक ब्लाक प्रमुखों के चुनाव की बात है तो यही तर्क उन पदों पर लागू होगा।
भाजपा का एक खेमा अभी से बहुमत बनाने में जुटा
इस बार जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में सपा के सदस्य भाजपा से लगभग दो गुनी तदाद में जीते हैं। यही नहीं अन्य दलों के मुस्लिम उम्मीदवार समेत कई निर्दल भी मुस्लिम चुने गये हैं। जो आम तौर से भाजजा के खिलाफ ही मतदान करते हैं। इस प्रकार की गणित से तो कागज पर सपा भाजपा की अपेक्षा काफी मजबूत दिखती है। परन्तु जैसी की सूचना है भाजपाई अभी से इस पर लोगों को तोड़ने में जुट गये हैं। सूत्रों के अनुसार सोमवार शाम तक भाजपा से प्रत्याशी बनने के दावेदार एक खेमे के लोग एक डेढ़ दर्जन सदस्यों से वार्ता कर उन्हें अपने पक्ष में राजी कर चुके थे। इसमें कई मुस्लिम सदस्य भी शामिल हैं। समझा जा सकता है कि वे किस भाव और किस तरीके से उस खेमे के पक्ष में जाने को राजी हुए होंगे। उस खमे के सूत्र बताते हैं कि जल्द ही हम जरूरत भर का बहुमत जुटा लेंगे। उसके बाद चुनाव होते हैं तो सिर्फ मतदान की औपचारिकता रह जाएगी। वैसे उस खेमे का दावा है कि यद सपा से कोई प्रत्याशी ही न हो और मतदान की नौबत ही न आये।