Vip seat– इटवा में माता प्रसाद की तितरफा घेरेबंदी, खतरे में घिरे असेम्बली स्पीकर
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। यूपी असेम्बली स्पीकर माता प्रसाद पांडेय इस बार अपनी पुरानी सीट इटवा में तीन तरफ से घिरते नजर आ रहे हैं। बता दें की जब–जब वह तितरफा मुकाबले में घिरे है, उनके हिस्से में अकसर पराजय ही आई है। इस बार भी जानकार उन्हें कड़े मुकाबले में मान रहे हैं।
तितरफा जंग के आंकड़े
जिला बनने के बाद वर्ष १९८९ में हुए पहले चुनाव में माता प्रसाद पांडेय और कांग्रेस के मो. मुकीम का सीधा मुकबला हुआ था, जिसमें मुकीम ५२१६७ पाकर भी माता प्रसाद पांडेय (५५१५९) से चुनाव हार गये। १९९१ में जैसे ही मुकाबला तिकोना हुआ, जीत मुकीम के हाथ लगी। १९९३ में हुए तिकोने मुकाबले में जीत भाजपा के स्वयंबर चौधरी के हाथ आई।
१९९६ में माता प्रसाद चौकोनी लड़ाई में फंसे। उनके मुकाबले में भाजपा के ब्रह्म प्रकाश चौधरी और बसपा के स्वयंवर चौधरी थे। घोर जातीय लड़ाई में सपा के माता प्रसाद निर्दलीय उम्मीदवार मुकीम के हाथों हार कर तीसरे नम्बर पर रहे। लेकिन २००२ और २००७ में सपा के मुकाबले केवल एक ही हिंदू कैंडीडेट रहा और माता प्रसाद दोनों चुनाव आराम से जीत गये। दूसरी तरफ २०१२ के चुनाव में कांग्रेस के मो मुकीम के अलावा पीस पार्टी से एक और मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में माता प्रसाद फिर जीत गये।
इतिहास बताता है
इटवा क्षेत्र का चुनावी इतिहास बताता है कि जब भी विभिन्न दलों से दो या तीन हिंदू उम्मीदवार उतरे हें, मतों के बिखराव का नुकसान सदा माता प्रसाद जैसे दिग्गज को ही उठाना पड़ा है। इस बार भी हालात यही है, ऐसे में पूर्व के नतीजों के आधार पर उनकी स्थिति फिलहाल बहुत मजबूत नहीं आंकी जा सकती।
इस बार हालात साजगार नहीं
इस बार के हालात भी साजगार नजर नहीं आ रहे। माता प्रसाद के मुकाबले भाजपा ने डा. सतीश द्धिवेदी को मैदान में उतारा है। रालोद भी हरिशंकर सिंह जैसे जमीनी नेता को मैदान में उतार कर लड़ाई में नया मोड़ दे दिया है। ऐसे में ३६ फीसदी मुस्लिम और १७ फीसदी दलित वोटों के आधार पर बसपा के अरशद खुर्शीद फिलहाल आंकड़ों में काफी मजबूत दिखने लगे हैं। ऊपर से पडोसी सीट डुमरियागंज से मलिक कमाल यूसुफ जैसे मुस्लिम चेहरे का टिकट कटने से मुसलमानों की नाराजी की प्रभाव इस सीट पर निश्चित पड़ सकता है।