जानिएः आरक्षण के चलते किन सियायतदानों के गांवों में है ‘कहीं खुशी-कहीं गम” का माहौल
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। राजनीतिक के लिए आरक्षण भी खुशी और गम का कारण बन गया है। जिला स्तर जिला पंखायत, बीडीसी और प्रधान पद का चुनाव लड़ने के लिए चुनाव लड़ने की उम्मीद लिए लोग पांच साल मेहनत कर फील्ड बनाते हैं और ऐन चुनाव के वक्त पता चलता है कि उनका क्षेत्र किसी दूसरे वर्ग के लिए आरक्षित हो गया है। 2021 के चुनावों के लिए भी आरक्षण की सूची से ऐसे कितने लोगों के हौसले टूटे है। जो चुनाव के पांच वरर्रो से कड़ी मेहनत कर रहे थे, मगर आरक्षण की सूची ने उनको निराश कर दिया है। कई गांवों की सूची कुछ नोगों को सुकून देने वाली भी है। तो आइये देखते हैं जिले के उन राजनीतिज्ञों के गांव की स्थिति जहां आरक्षण के चलते कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल नजर आ रह है।
पूर्व मंत्री के यहां खुशी का माहौल
डुमरियागंज विधानसभा क्षे़त्र से आधा दर्जन बार विधायक रहे कमाल यूसुफ मलिक की अपनी ग्राम पंचायत कादिराबाद की सीट इस बार सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। पिछली बार महिला सीट होने के कारण उनकी भतीजी चुनाव लड़ीं और जीती थीं। सबको इस बार आशंका थी कि यह सीट रिजर्व हो सकती थी। परंतु सीट सामान्य निकली। इस बार उनके भतीजे बबलू चुनाव लड़ेंगे। इससे खुल कर लड़ने का मौका मिलेगा। मगर पूर्व की भांति इस बार भी उन्हें खनदान के ही प्रतिद्धंदी रियाजुद्दीन मलिक से फिर कड़ा संघर्ष होने की संभवना है। जिन्हें कमाल यूसुफ के सियासी प्रतिद्धंदियों द्धारा संरक्षण दिया जाता था। बहरहाल इस बार यहां दोनों पक्षों में और भी रोचक संघर्ष देखने को मिलेगा।
इसके अलावा इसी क्षे़त्र से सपा के प्रत्याशी रहे राम कुमार उर्फ चिनकू यादव के ग्राम पंचायत कैथवलिया भी अनुसचित के लिए रिजर्व होने से बच गई है। इसलिए अब उनके परिजन यहां से चुनाव लड़ सकेंगे। यह उनके लिए राहत की बात है।
पूर्व विधायक के गांव में उदासी
कादिराबाद के ही बगल के गांव में इस पर उदासी और सन्नाटा है। यह पूर्वमंत्री कमाल यूसुफ के परम्परागत प्रतिद्धंदी व पूर्व विधायक तौफीक का ग्राम बिथरिया है। यहां स्व. तौफीक मलिक की पत्नी पूर्व विधायक है। वर्तमान में उनकी बेटी उनकी बेटी सैयदा खातून विरासत संभलती है। इस गांव में भी मलिकों के दो गुट आपस में परम्परागत रूप भिड़ते रहे हैं। यहां एक गुट को कमाल यूसुफ का संरक्षण रहता था। लेकिन इस बार सह सीट पछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित हो गया है। लिहाजा अब यहां खामोशी है। वरना चुनाव घोषणा के साथ ही इस ग्राम पंचायत में असेम्बली चुनाव की तरह टक्कर व रौनक रहती थी।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष को निराशा
इटवा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पिरैला निवासी और उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडे के लिए भी घोषित आरक्षण निराशा लेकर आया है।गत चुनाव में उनकी ग्राम पंचायत से उनकी बहू ग्राम प्रधान चुनीं गई थीं, लेकिन इस बार उनकी ग्राम पंचायत अनुजा के लिए आरक्षित कर दी गई है। लिहाजा उनकी बहू अब इस बार चुनाव लड़ने से वंचित रहेगी। श्री पांडेय की धर्म पत्नी वर्तमान में इटवा की ब्लाक प्रमुख हैं। परन्तु बदले हुए राजनीतिक हालात में उनके भी पुनः लड़ने के आसार नहीं बनते। इसलिए विस अध्यक्ष जी को भले ही निराशा हो, मगर उनके गांव में इस बार चुनाव को लेकर लोगों में काफी उत्साह है।
विधायक जी निराश, पूर्व विधायक की मौजां
सदर सीट यानी कपिलवस्तु विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत धौरी कुइयां को पिछड़ा के लिए आरक्षित कर दिया है। सदर क्षेत्र के विधायक श्यामधनी राही इसी ग्राम पंचायत के निवासी है। उनके भतीजे इस बार काफी दिन से प्रधनी के चुनाव के लिए कमर कस रहे थे। जाहिर है कि आरक्षण से उनके परिजनों को निराशा हाथ लगी है। दूसरी तरफ ग्त विधानसभा में उनके प्रतिद्धंदी रहे पूर्व विधायक विजय पासवान की ग्राम पंचायत गदहमोरवा हालांकि पिछड़े वर्ग के लिए रिजर्व हो गई है। फिर भी वे बहुत खुश हैं। उन्हें इसका मलाल नहीं कि उनका कोई परिजन चुनाव नहीं लड़ पायेगा। बल्कि उन्हें इस बात की खुशी है कि गांव का वर्तमान प्रधान और उनका सबसे कटु विरोधी इस बार आरक्षण के चलते चुनाव लड़ने से वंचित हो गया है।
इस प्रकार जिले के दर्जनों छेटे बड़े नेताओं क गांव आरक्षण से प्रभावित अथवा मुक्त हुए है। ऐसे गांवों में जहां नेता आरक्षण के दायरे से मुक्त हुए वहां खुशी और जहां प्रभावित हुए वहां गम का माहौल देखा जा रहा है। अंत में कपिलवस्तु पोस्ट के माध्यम से आएंगे जल्द ही एक नई और अछूती चुनावी स्टोरी के साथ।