विरासतः औरंगजेब के फरमान के बाद भी कैसे बना मस्जिद के आकर वाला शिव मंदिर?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। यूपी के सिद्धार्थनगर में एक साढ़े तीन सौ साल पुराना अनोखा शिव मंदिर है। जो बाहर से देखने पर पूरी तरह से मस्जिद लगता है। लेकिन हकीकत में वह शिवमंदिर है, इसीलिए इसे मस्जिदनुमा मंदिर कहा जाता है। जहां लगभग तीन सौ सालों से मेला लगता चला आ रहा है। मुगल बादशाह औरंगजेब ने नये मंदिरों के निर्माण पर रोक के आदेश के बाद भी यह मस्जिदनुमा शिव मंदिर कैसे बना यह कहानी बेहद दिलचस्प है।
मस्जिद जैसी बनी है महराब व ताक, मीनारें भी
सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज तहसील मुख्यालय से 5 किमी दूर एक गांव है देईपार। इसगांव में लगभग साढ़े तीन सौ साल पुराना यानी औरंगजेब के काल का एक शिव मंदिर है। इस मंदिर पर पहुंचने पर पहली ही नजर में चौंकना पड़ता है। क्योंकि यह समने से मंदिर के बजाये मस्जिद लगता है। मंदिर में मस्जिद की तरह की महराबें, बडे बड़े ताक बने हुए हैं।, मुगल वास्तुकला की नक्काशियां बताती है कि यह मस्जिद का स्वारूप ही है। मगर जब मस्जिद के पीछे गर्भगृह का पिछला हिस्सा दिखता है अथवा गर्भगृह में जाइये तो शिवलिंग और मूर्तियां देख कर पता चलता है कि वह वास्तव में शिव मंदिर है।
1669 में लगी थी मंदिर निर्माण पर रोक
देईपार गांव पहले कायस्थ सामंतों का था। औरंगजेब के काल में वहां कायस्थ सामंत ने मंदिर बनाना चााहा, मगर उस समय मुगल बादशाह औरंगजेब ने सन 1669 में एक फरमान जारी कर नये मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा दी थी। तब मंदिर कैसे बना? इस बारें में मंदिर निर्माता कायस्थ सामंत के वंशज उमाशंकर लाल बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने इसकी बुनियाद मस्जिद के आकार में रखी थी। जब मंदिर का अगला हिस्सा मस्जिदनुमा बन गया तो अंत में चुपके से गर्भगृह बनाकर उसमें चुपके से शिवलिंग स्थापित कर दिया गया।
1680 के आसास बना मंदिर
गांव के प्रधान प्रतिनिधि और जयंत्री प्रसाद श्रीवास्तव के एक और वंशज विनीत श्रीवास्तव बताते हैं कि इसका निर्माण सन1680 के आस पास हुआ, जब औरगेजेब मराठों से युद्ध ल़ड़ने दक्षिण चला गया। विनीत श्रीवास्तव बताते हैं कि यह बात हम अपने पुरखों से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आ रहे हैं और अब तो नये शोंधों से यह प्रमाणित भी होने लगा है। मंदिर के पुजारी भी इसी कहानी का समर्थन करते हैं।
विरासत संरक्षित करें सरकार
कुल मिला कर साढ़े तीन सौ साल पहले बना यह अनोखा शिवमंदिर आज भी खडा है। दो साल पहले शासकीय निधि से इसकी रंगाई पुताई करा कर इसे बेहतर कर दिया गया है। मगर बीस बीघे में फैले इसके अन्य पुरावशेष ढह कर नष्ट हो रहे हैं। जब औरंगजेब की कब्र को एएसआई अपने संरक्षण में ले सकती है तो इतिहास के इस विरासत को भी पुरातत्व विभाग द्धारा संरक्षण में लेना न्यायसंगत होगा।