मुकामी सियासत के “जय वीरू” हैं माता प्रसाद पांडेय और मलिक कमाल यूसुफ
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। शोले फिल्म में जय बीरू के किरदार से तो तमाम लोग वाकिफ होंगे। सिद्धार्थनगर जिले के इटवा विधायक और यूपी असेंबली के चेयरमैन माता प्रसाद पांडेय व डुमरियागंज के विधायक कमाल यूसु्फ मलिक उत्तर प्रदेश की राजनीति के “जय वीरू” हैं। कोई भी सियासी झंझावात इस जोड़ी को आज तक हिला नहीं पाया है।
दोनों नेताओं का जन्म चालीस के दशक में हुआ था। युवा अवस्था में राजनीति भी दोनों ने साथ शुरू की थी। यह और बात है कि कमाल यूसुफ मलिक 1977 में पहली बार विधायक बनें तो माता प्रसाद पांडेय को 1980 में यह गौरव मिला। हालांकि माता प्रसाद मंत्री पहले बने और कमाल यूसुफ काफी बाद में।
कमाल यूसुफ जहां पांच बार विधायक बने हैं वहीं माता प्रसाद जी 6 बार निर्वाचित हुए हैं। 70 से लेकर 80 के दशक तक इस जोड़ी की सियासी हनक की वजह से डुमाियागंज इटवा क्षेत्र को मिनी बागपत कहा जाता था। क्योंकि तब चौधरी चरण सिंह के किले बागपत में उनके अलावा कोई जीत नहीं पाता था।
मतभेद तो हुए, मनभेद कभी न हुआ
1977 के बाद से कई ऐसे मुकाम आये हैं, कि दोनों नेताओं के सियासी सफर तक अलग हो गये हैं। मसलन कमाल यूसुफ ने बसपा और पीस पार्टी का भी दामन थामा, लेकिन दोनों की दोस्ती बरकरार रही। हालांकि कई बार टिकट और अन्य कई मुद्दों पर दोनों में मतभेद भी रहे, लेकिन मनभेद नहीं होने के कारण दोस्ती पर आंच न आई।
कमाल यूसुफ और माता प्रसाद के बीच हाल में भी एक मुद्दे पर मतभेद था। आज की सियासत में नेताओं के मतभेद अक्सर चौराहो पर चर्चा का विषय बनते रहते हैं, लेकिन इनके मतभेदों को बहुत करीबी लोग ही जान सके। इसे कहते हैं दोस्ती।
संघर्ष में साथ साथ रहे दोनों
दोनों का सियासी संघर्ष साथ साथ चला। 80 के दशक में गन्ना किसानों के आंदोलन में हुए भयानक लाठी चाार्ज में अगर दोनो घायल हुए तो बागपत बलात्कार कांड के विरोध में दोनों ने साथ साथ जेल यात्रा भी की। चुनाव के दौरान दोनों के प्रचारक और उनकी गाड़ियां एक दूसरे के क्षेत्रों में आकर एक दूसरे की मदद करती थीं। आज भी यह सिलसिला जारी है।
और माता प्रसाद वाकई बन गये कालिदास
विधायक कमाल यूसुफ मजाक में माता प्रसाद को कालिदास कहा करते थे। दोस्ती का यह मजाक भी दुआ बन गया। माता प्रसाद पांडेय विधायक बनने के बाद विधायी कार्यो नियमों का अघ्ययन करने में लगे रहे। नतीजा सामने है, आज वह एक विद्धान राजीतिज्ञ माने जाते हैं। असेंबली का दो दो बार स्पीकर बनना उनकी विद्धता का ही प्रतीक है।
उत्तर प्रदेश में कई सियासी जोड़ियां टूटी
यूपी के सियासतदानों में कई मजबूत सियासी जोड़ियों को टूटते देख गया है। यहां तक कि मुलायम सिंह यादव और बेनी प्रसाद वर्मा की जोड़ी को लोग भूल चुके हैं, लेकिन सिद्धार्थनगर के सियासी “जय वीरू” की जोड़ी का जलवा आज भी कायम है। तो आप भी इस जोड़ी की दोस्ती से प्रेरणा लीजिए।