अरशद की उम्मीदवारी से नाराज पूर्व सांसद मुकीम कह सकते हैं बसपा को अलविदा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। अरशद खुर्शीद को इटवा विधानसभा का उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद लोगों की निगाहें पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम पर टिक गई हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में वह बसपा को अलविदा कहने का मन बना सकते हैं।
इटवा से विधायक और डुमरियागंज से सांसद रहे मुहम्मद मुकीम जिले में बसपा के सर्वाधिक जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। विधायक मलिक तौफीक के निधन के बाद वह अकेले मुस्लिम नेता थे, जो मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने में सक्षम थे।
उनके अलावा सैयदा मलिक बसपा की एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं, मगर उनका प्रभाव सिर्फ डुमरियागंज क्षेत्र तक ही सिमटा हुआ है। अरशद खुर्शीद मुसलमानों को बसपा से जोड़ने में कितने सक्षम होंगे यह देखना अभी बाकी है।
इटवा में कल बसपा क्वार्डीनेटर लाल जी वर्मा की सभा में मुसलमानों की उपस्थित बेहद कम थी। इसे मुकीम को दरकिनार करने की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। बसपा नेता इसरार अहमद, कमाल अहमद, मैनुदृदीन, इजहार अहमद आदि ने कार्यक्रम से किनारा कर रखा था। खुद मुहम्मद मुकीम भी वहां मौजूद नहीं थे।
कल के घटनाक्रम के बाद इटवा के बसपा समर्थक मुसलमानों का गुस्सा साफ दिख रहा था। जलालुद्दीन का कहना था कि अरशद को उम्मीदवार बनाना मुकीम ही नहीं इटवा की जनता के साथ धोखा है। बसपा को इसकी कीमत अगले चुनाव में चुकानी पड़ेगी।
जहां तक मुकीम का सवाल है, वह आने वाले दिन में बसपा छोड़ने का फैसला ले सकते हैं। हांलाकि कपिलवस्तु पोस्ट से बातचीत में उन्होंने ऐसी मंशा नहीं जताई है, लेकिन उनके खांटी समर्थक ठीक साफ कहते हैं कि अब इस दल में रहना उनके लिए ठीक नहीं है।
अगर मुकीम ने बसपा छोड़ा तो उसके नतीजे क्या होंगे? इस बारे में उनके समर्थकों का कहना है कि जिले के मुसलमानों पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा। उनके मुस्लिम समर्थक पूरे जिले में हैं। जो पार्टी छोड़ने की हालत में उनके साथ जायेंगे।
बसपा नेता इसरार अहमद कहते है कि मुहम्मद मुकीम ने सालों की मेहनत के बाद मुसलमानों को बसपा से जोड़ने में कामयाबी पाई थी। जिस दिन वह पार्टी जोड़ेंगे, बसपा जिले में बेहद कमजोर हो जायेगी।
जहां तक अरशद खुर्शीद का सवाल है, पैदाइश तो उनकी डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में हुई है, लेकिन उनकी पूरी सक्रियता बलरामपुर इलाके में रही है। उनकी पहिचान जिले में गैरजनपदीय नेता की है। इसलिए इटवा में मुकीम जैसे कदृदावर नेता के मुकाबले मुस्लिम जनसमर्थन जुटा पाना उनके लिए टेढ़ी खीर ही साबित हो सकता है।
11:03 PM
This is not a good decision for bsp underthat they are fail in their mission means he lost one seay already.
6:13 PM
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