विश्लेषणः मुसलमानों के बीच से क्यों खिसकता जा रहा मायावती का जनाधार ?

November 7, 2019 1:05 PM0 commentsViews: 404
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— हाल के उपचुनावों में बसपा का मत प्रतिशत गिर कर 17 पर पहुंचा, जबकि कांग्रेस का बढ़ा

— इस बार मुसलमानों ने बसपा के दलित मुस्लिम गठजोड़ की ट्रिक को किया सिरे से खारिज

एम. कैफ

लखनऊ।लोकसभा चुनावों में 10 लोकसभा सीट जीतकर वापसी करने वाली उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी से मुसलमानों का मोह भंग शुरू हो गया है। हालिया उपचुनाव नतीजों के बाद से यह बात पूरी तरह सच साबित हो गई है। मुसलमानों ने बसपा को वोट नहीं किया है। यहाँ तक कि उसके मुस्लिम प्रत्याशियों की भी जमानत जब्त हो गई।

सूबे के इतिहास में पहली बार उपचुनाव लड़ रही बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती से मुसलमान नाराज है और 11 सीटों पर हुए उपचुनाव में उसने पहली प्राथमिकता समाजवादी पार्टी को दी है। इसके बाद मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया है। समाजवादी पार्टी ने टेक्निकली सिर्फ 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमे उसे 22.61 फीसद वोट मिले हैं। कांग्रेस का वोट फीसद भी 6 से बढ़कर 11.49% हो गया है जबकि बसपा को 17.02 फीसद वोट मिले हैं। आंकड़ो के अनुसार 6 सीटों पर बसपा की जमानत जब्त हो गई जबकि सिर्फ एक सीट पर वो दूसरे स्थान पर आई, हालांकि अलीगढ़ जनपद की इगलास सीट पर भी वो दूसरे स्थान पर रही मगर यहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी के पर्चे रद्द होने से यह स्थिति पैदा हुई। गिरावट भाजपा के वोट में हुई जो घटकर 35.64 फीसद रह गया ।

दलित मुस्लिम समीकरण ध्वस्त

आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में बना दलित मुस्लिम समीकरण टूट गया है। पाँच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में सूबे में दलितों और मुस्लिमो ने एकजुट होकर वोट किया था। जिसके बाद बसपा को 10 लोकसभा सीट हासिल हुई थी और उसके तीन मुस्लिम सांसद भी चुने गए थे। हालिया उपचुनाव में यह गठजोड़ एक सीट पर भी देखने को नही मिला है यही कारण है कि बसपा एक भी सीट जीतने में कामयाब नही रही है।

राजनीतिक जानकारों के बीच इसे बसपा के भविष्य के लिए बेहद घातक माना जा रहा है। खास बात यह है कि जिन 11 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए हैं वो अलग अलग जगहों पर है जिससे पूरे प्रदेश का मिजाज समझा जा सकता है। इनमें सहारनपुर की गंगोह, रामपुर,कानपुर की गोविन्दनगर,अलीगढ़ की इगलास,लखनऊ केंट,जैदपुर,जलालपुर,बलहा और घोसी जैसी सीट है।

इन सभी सीटों पर 20 फीसद से लेकर 48 फीसद तक मुसलमान है। दलित और मुसलमान गठजोड़ की बात करें तो वो 30 फीसद से लेकर 67 फीसद तक है। मगर किसी भी सीट पर दोनों समुदाय ने एकजुट होकर वोट नही की है।आश्चर्यजनक रूप से सहारनपुर की गंगोह सीट पर दलित और मुस्लिमों ने कांग्रेस को वोट की है जहां काँग्रेस प्रत्याशी नोमान मसूद को 62 हजार वोट मिला जबकि बसपा के प्रत्याशी इरशाद चौधरी को इसकी आधी 31 हजार वोट मिली। नोमान मसूद सहारनपुर जनपद के चर्चित नेता इमरान मसूद के जुड़वा भाई है।

हमीरपुर से हुई थी शुरूआत

हालांकि इस तरह के नतीजों की शुरुआत हमीरपुर विधानसभा से हो गई थी जहां बसपा के मुसलमान प्रत्याशी नौशाद अली को सिर्फ 21 हजार वोट मिला जबकि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मनोज प्रजापति को 45 हजार वोट मिला। भाजपा का प्रत्याशी यहाँ 12 हजार से चुनाव जीत गया। मुसलमानों ने यहां मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावूजद बसपा को वोट नही दी। बीएसपी के ख़िलाफ़ हमेशा मुखर रहने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चर्चित मुस्लिम नेता इमरान मसूद कहते हैं “मायावती पूरी तरह एक्सपोज़ हो चुकी है।अब उनके कार्यकर्ताओं में तर्क करने की क्षमता तक खत्म हो चुकी है।

लोकसभा चुनाव के बाद बसपा सुप्रीमो ने एक बार फिर खुद को बदल लिया है। उनकी 10 लोकसभा सीट उन्हें भाजपा के विरोध में मिली है। अब वो लगभग हर मुद्दे पर केंद्र की भाजपा सरकार की हिमायत में खड़ी हो जाती है।हो सकता है इसके पीछे कोई डर हो मगर सच यह है कि डराया तो सभी को जा रहा है।मैं तो हमेशा से बसपा को बीजीपी की बी टीम कहता हूँ अब यह खुलकर सामने आ चुका है।मुसलमानों को लगता है उनके साथ छल हुआ है।”सूबे की राजनीति के अधिकतर जानकार मानते हैं कि बीएसपी ने मुस्लिमों के बीच अपना भरोसा खो दिया है।

सहारनपुत तक में बसपा की हुई दुगर्ति

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर बीएसपी का गढ़ रहा है हाल ही में यहां से बसपा के ही प्रत्याशी हाजी फजरूलरहमान चुनाव जीतकर सांसद बने। ये अलग बात है बीएसपी के प्रति सबसे अधिक नाराजगी यहीं है। मुसलमानों में बीएसपी के प्रति गुस्सा है कभी यहां बीएसपी का टिकट जीत की गारंटी माना जाता था। फिलहाल उपचुनाव में गंगोह में बीएसपी के प्रत्याशी इरशाद चौधरी की जमानत जब्त हो गई। यह स्थिति तब है जब पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष इरशाद चौधरी खुद एक कद्दावर नेता है और उनका अपना वोटबैंक भी है।

गंगोह के परवेज़ पंवार कहते हैं कि “एक बार बीएसपी के नेता ने यह कहा था बहन जी यहाँ से अगर किसी ‘कुत्ता ‘ को भी टिकट दे दे तो उसकी प्रोफ़ाइल पर मत जाना सीधे उसे वोट देकर जीता देना अब यह स्थिति है कि अगर बीएसपी से कोई ‘हजरत जी’ भी टिकट लेकर आएगा तो मुसलमान उसे भी हरा देंगे। मुसलमानों में इतना गुस्सा बीएसपी को लेकर पहले नही देखा गया है, गंगोह के प्रत्याशी को उनके व्यक्तित्व के वोट मिले हैं।”

यह स्थिति हालिया राष्ट्रीय स्तर के मामलों में बीएसपी के रुख से भी पैदा हुई है जैसे तीन तलाक,370 जैसे मुद्दों पर बीएसपी खुले तौर पर बीजीपी सरकार की हिमायत में खड़ी रही जबकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इसका प्रखर विरोध किया।

समाजवादी पार्टी के युवा नेता फरहाद गाड़ा कहते हैं “तीन तलाक और 370 जैसे मुद्दों वाली बात तो है ही मगर स्थानीय मुसलमानों में बीएसपी की तरफ से भारी निराशा गठबंधन तोड़ने को लेकर आई। यह गठबंधन राजनीतिक पार्टीयों का गठबंधन नही था बल्कि जनता का गठजोड़ था। जनता चाहती थी कि सभी सेकुलर दल एक मंच पर एकजुट हो। समाजवादी पार्टी तो पिछला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के भी साथ मिलकर लड़ चुकी थी। मायावती के गठबंधन तोड़ने के तरीके से ही दलितों और मुसलमानों दोनों को धक्का लगा अभी तो मायावती से सिर्फ मुसलमानों ने दूरी बनाई है कुछ समय बाद दलित भी इनसे दूर चला जायेगा।”

2007 में सूबे में बहुमत की सरकार बनाने वाली बीएसपी के प्रदर्शन उसके बाद से लगातार गिरावट दर्ज हुई है। इसकी वजह मायावती के अंदर की अनिश्चितता है। पूर्व मंत्री दीपक कुमार के मुताबिक मायावती की राजनीति में स्थायित्व नही है वो विचारधारा विहीन नेता है। उनका एकमात्र उद्देश्य सत्ता हासिल करना है। मिशन के साथ उनके साथ जुड़ने वाले तमाम नेता आज उनसे दूर हो चुके हैं, मुसलमानों को भी ऐसा लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है।

माया अक्सर दे देती हैं धोखा

कभी मायावती के बाद बसपा में दूसरे नम्बर की हैसियत रखने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी बेहद अपमानित तरीके से पार्टी से बाहर किए गए। इससे पहले एक और बसपा नेता और शिक्षा मंत्री डॉक्टर मसूद को रातोंरात मंत्री पद से हटा दिया गया और आवास खाली करा लिया गया। डॉ मसूद ने उसके बाद नेलोपो (नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी) बना ली।

अब वो राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष है। डॉ मसूद कहते हैं “आप मायावती पर भरोसा कर ही नही सकते वो जो सुविधाजनक लगता है उसी के साथ गठजोड़ बना लेती है, उन्होंने भाजपा के साथ भी सरकार बनाया है। फिलहाल तो वो सीबीआई से डरी हुई है।”उपचुनाव में बसपा से मुसलमानों की पूरी तरह दूरी बना लेने की एक बहुत बड़ी वजह अमरोहा के सांसद कुँवर दानिश अली को नेता सदन बीएसपी से हटाया जाना भी है।

जेडीएस के प्रवक्ता कुँवर दानिश अली पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से उभरे उन्होंने अमरोहा से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। उनकी काबिलयत को देखते हुए उन्हें सदन में मायावती ने बसपा सांसद दल का नेता बना दिया। कई मुद्दों पर कुँवर दानिश अली ने प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखी। बाद में दानिश अली को हटा दिया गया। मुसलमानों में इसका यह संदेश गया कि मायावती ने मुसलमानों की आवाज़ उठाने वाले नेता को नीचा दिखाया है। हालांकि इसके बाद बसपा के पुराने वफादार बाबू मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया मगर नाराजगी कायम रही। बसपा से 20 साल से जुड़े हापुड़ के मोहम्मद शाहीन कहते है “यह सब खेल बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा का है वो ‘बहनजी’ का सब कुछ बर्बाद कर रहे हैं।”

 

 

 

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