नदी ने लिया अरार, बीस वर्षीय रमेश कुदरत के क्रूर करिश्मे का हुआ शिकार
–12 घंटों की मेहनत के बाद भी एनडीआरएफ टीम नहीं ढूंढ पायी रमेश की लाश
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। इटवा तहसील के गोपिया गांव के पास राप्ती नदी में डूबे उसी गांव के बीस वर्षीय युवक रमेश चौहान की लाश घटना के 36 घंटे बाद भी नहीं मिल पाई है। जबकि एनडीआरएफ टीम के गोताखोर पिछले दिन निरंतर 12 घंटे नदी में शव की तलाश करते रहे। कुदरत के एक क्रूर करिश्मे से जिस प्रकार रमेश की जान गई वह उसके परिजनों के लिए बहुत दुखदायी बन गई है।
बताया जाता है कि दो दिन पूर्व शाम को डूबे रमेश के शव की तलाश में एसडीएम डुमरियागंज व त्रिलोकपुर थाने के सब इंस्पेक्टर अजय सिंह के पर्यवेक्षण में एन.डी.आर.एफ. की टीम ने नदी में उतर कर शव की तलाश की, मगर कई किमी तक छानबीन और गोताखोरी के बाद भी रमेश की लाश का कुछ पता न चला। अन्ततः शाम तक टीम ने अपने हाथ खड़े कर दिये। अनुमान है कि शव कहीं दूर बह कर चला गया है। या किसी कुंड में नीचे बैठ गया है। इस खबर ने घर वालों की अंतिम आशा को भी समाप्त कर दिया। रमेश के पिता धर्मराज का कहना है कि पहले तो बेटी गया था, लेकिन अब उसकी लाश भी न मिलना पूरे परिवार को गम में पागल किए हुए है।
गोपिया गांव के धर्मराज चौहान के बीस वर्ष का बेटा अजय चौहान अपने पिता की इकलौती संतान था। वह उम्र के हिसाब से घर के लिए काफी जिम्मेदार था। लेकिन उसकी मौत कुदरत के अनोखे नियम के चलते हुई। सोमवार सायं वह नदी के किनारे वह जिस जमीन पर बैठा था, वहां से वह घर जाने के लिए खड़ा ही हुआ था कि जमीन नीचे से टूट कर नदी में समा गई।
बता दें कि बाढ़ के उतरने के वक्त नदी का पानी अंदर ही अंदर मिट्टी काटने लगती है। इसके बाद कर अचानक ऊपर की सतह को नदी में गिराती है इसमें वहां खड़े व्यक्ति को यहसास तक नहीं हो पाता कि कुछ क्षणों में क्या होने वाला है। इसे अरार लेना कहते हैं। यह कुदरत का नियम है और इस नियम का शिकार बीस साल का बेकसूर रमेश हो गया। बहरहाल एनडीआरएस टीम की नाकामी की खबर के बाद से रमेश के परिवार वालों का रो रो कर बुरा हाल है।