नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में इटवा समेत जिले भर में प्रदर्शन, राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा गया
— सिद्धार्थनगर, इटवा, डुमरियागंज व बढ़नी का मुस्लिम तबका सरकार के विरोध में उतरा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर शुक्रवार को विरोध प्रदर्शनों की झड़ी लगी रही। जिला मुख्यालय समेत इटवा, बढ़नी, डुमरियांगंज के मुस्लिम समाज ने बिल को लेकर अपने गुस्से का इजाहार किया। कल के उनके रूख को लेकर आशंका है कि निकट भविष्य में विरोध के इस स्वर को और बुलंद किया जाऐगा। प्रशासन इस आंदोलन पर सतर्क निंगाह रख रहा है।
जानकारी के मुताबिक शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद मस्जिदों से नमाजियों ने बाहर निकल कर अपने अपने तरीके से गुस्से का इजहार किया। कहीं पर ज्ञापन दिया कहीं ज्ञापन नहीं भी दिया गया। डुमरियागंज में नमाजियों ने मस्जिद के बाहर प्रदर्शन किया, तो सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय पर नमाजियों ने मसिजद से पेट्रोल पम्प तिराहे तक जुलूस निकाला। बढ़नी में भी इसी प्रकार का छिटपुट प्रदर्शन हुआ। इटवा में जरूर प्रदर्शन थोड़ा व्यवस्थित था। वहां प्रदर्शनकारियों ने बकायता नारे लगाते हुए प्रदर्यान किया तथा प्रशासन के माध्याम से श्राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर नागरिकता संशोधन निधोय को काला कानून बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की।
हमारे इटवा रिपोर्टर से मिली खबार के अनुसार इटवा के कई सामाजिक संगठनों ने राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन उपजिलाधिकारी इटवा को सौंपा। इस अवसर पर वक्ताओं ने व्यापक जन विरोध के बावजूद विवादास्पद और विभाजनकारी नागरिकता संशोधन विधेयक को बहुमत के नशे में लोकसभा और राज्यसभा से पारित कराए जाने को सत्ता अहंकार और जन भावनाओं का निरादर बताया।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि देश की बहुसंख्यक जनता इस विधेयक के खिलाफ है। गृह मंत्री ने लोकसभा और राज्यसभा में विधेयक पेश करते हुए गलत तथ्य प्रस्तुत किया और इस तरह सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाई। वक्ताओं के मुताबिक इस विधेयक से संविधान की धारा 14 का उल्लंधन हुआ है तथा लोगों के समानता के अधिकार को चोट पहुंची है।
वक्ताओं का कहना था कि यह संशोधन विधेयक सावरकर और जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धान्त को दोहराने जैसा है। वर्तमान सत्ता जनता से जुड़े हर मोर्चे पर असफल है इसलिए वह जनता का ध्यान आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ आदि ज्वलंत मुद्दों से हटाना चाहती है। साथ ही अपने मनुवादी एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए देश के भूमिहीन, गरीब, वंचित, मज़दूर, अनपढ़ आबादी को दस्तावेज़ों के अभाव में विदेशी घोषित कर अल्पसंख्यकों को डिटेंशन कैम्पों में डाल देना चाहती है। बहुजन आबादी को दया का पात्र मानते हुए नागरिकता देकर आरक्षण और संविधान प्रदत्त अन्य सुविधाओं से वंचित कर देना चाहती है। संविधान धार्मिक आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं देता। स्वतंत्र भारत में राज्यों की सीमा निर्धारण के समय भी धार्मिक आधार को खारिज किया गया था। भाजपा ने इस विवादास्पद विधेयक के पारित करवाने की ज़िद बांधकर व्यावहारिक रूप से संविधान की प्रस्तावना को ही फाड़ने का काम किया है।
कार्यक्रम में समाजसेवी अहसन जमील खान, अफ़रोज़ खान, नादिर सलाम, खान रज़ा, राशिद, शाहरुख, वहीद, दिलशाद खान, साहिल राईनी, इकराम, साहिल राईन, मो. शरीफ, फजलू, अताउल्लाह राईनी, मो. शफीक, कामरान, अज़ीमुश्शान फारूकी आदि लोग उपस्थित रहे।