“और मर गया लीलाराम” के जरिये नावोंमेष का संदेश, पैसे के लिये हद न पार करें
अजीत सिंह
सिद्धार्थनगर। नावोंमेष नाट्य शृंखला के छठे दीन हास्य नाटक “और मर गया लीला राम” जिसका लेखन एवं निर्देशन अमूल सागर ने किया है का मतलब इस मनोरंजन के माध्यम से ये सन्देश दिया गया है कि कैसे आज की रोज़मर्रा जीवन शैली मे परिवार विलास और धन को लेकर आपसी मतभेद की हर सीमा को पार कर देते है ।
नावोंमेष के संस्थापक अध्यक्ष विजित सिंह के कुशल नेतृत्व मे मनोरंजक तत्वों / पात्रो की सजक भूमिका के ज़रिये दर्शको को वर्तमान सभ्यता और रहन सहन के लोगो के तरीकों को उजागर किया गया है।
इस नाटक की सबसे विशेष बात ये है कि इस पूरी कहानी मे एक भी मुख्य पात्र नहीं है परंतु सभी पात्रो की अपने आप मे एक विशेष भूमिका है।
इस कहानी मे लीला राम जो की एक मध्यम परिवार का युवक है उसके परिवार जनों जैसे की माँ , पत्नी व भाई-बहन उसके पिता द्वारा दी गयी वसीयत मे अपना हक़ जमाने के लिए अलग-अलग तरीको से उसे रिझाने तो कभी उसके पीठ पीछे उसकी बुराई करके उसका धन हथियाने की साज़िश बनाते है।
इस कहानी मे लोगों को हास्यास्पद माध्यम से पारिवारिक एकता के महत्व का एक बहुत ही ज़रूरी संदेश मिलता है और दर्शको का मनोरंजन भी करता है।
साथ ही एक और शिक्षा भी मिलती है कि वर्तमान में जितनी महत्वत्ता हम लोगों ने प्रतिस्पर्धा या यूं कहें कि धन के पीछे भागने के चक्कर में खुद को व्यस्त रख कर दी है उससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है जिनके लिए आप धन कमाते हैं उन्हें समय देना और रिश्तों के मूल्य को समझना।
पात्र परिचय
नाट्य उतसव में मुख्य रुप से लीलाराम की भुमिका में अंकित कौशल, राजाराम बने यश कालरा, भोलाराम – आशुतोष कुशवाहा, गयाराम – सिद्धार्थ कुमार, सावित्री – ऐमन ख़ातून, प्रीति – निशा गुप्ता, सास – रितिका मल्होत्रा, मल्होत्रा – प्रवीण सागर नाथ, हरिया – कवि, वकील – निकेतन गुप्ता, एल आई सी एजेंट – अज़ीम बेग, इंस्पेक्टर हवलदार – मोहित डबास, हवलदार कमिश्नर – मोहित वैद, पंडित जी – नीतीश कुमार, पहलवान (नौकर) – प्रियांशू कुमार पटेल निभा रहे थे।