कागज पर बच्चों की तादाद बढा़ कर मलाई काट रहे प्राइमरी स्कूलों के गुरुजन
हमीद खान
इटवा, सिद्धार्थनगर। एमडीएम, स्कूल ड्रेस जैसी आकर्षक योजनाओं के बावजूद प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की उपसिथत बेहद कम हो रही है। सवाल है कि जब सरकार कापी, किताब, ड्रेस, मध्याहन भोजन सब कुछ बच्चों को मुफ्त में देती है, तो स्कूलों में छात्रों की संख्या घट क्यों रही है। जवाब साफ है‚ अधिकांश गुरुजन कागज पर बच्चों की संख्या बढा कर सुविधाएं हड़पने का खेल खेल रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों को तमाम सुविधायें मिलती हें, जबकि
प्राइवेट विद्यालयों में इतनी सुविधा बच्चों को नहीं मिल पाती है। फिर भी वहां बच्चों की संख्या अधिक रहती है। सरकारी स्कूलों में सरकार प्रशिक्षित अध्यापकों पर मोेटा वेतन खर्च करती है। फिर भी नामांकित बच्चों के सापेक्ष उपस्थिति अंगुलियों पर गिनने वाली रहती है।
शिक्षा विभाग के सूत्र बताते हैं कि अक्सर बच्चों की नामांकन संख्या बढ़ा कर लिखी जाती है। इसका फायदा एमडीएम में हो जाता है। इसके अतिरिक्त प्रधानाध्यापक एक से अधिक कार्याें में व्यस्त रहते हैं। कुछ असर वाले तो बराबर पढ़ाने भी नहीं आते हैं।
यदि एमडीएम के खाद्यान और बच्चों की संख्या का ठीक से जांच की जाये तो बहुत से लोग बेनकाब हो सकते हैं। नामांकित बच्चों के हिसाब से खाद्यान का उठान होता है और बच्चे भोजन करते हैं। जिम्मेदारों की उदासीनता से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम रहती है।
जानकारों का मानना है कि मध्यम वर्गीय परिवारों में जिनकी आमदनी ठीक ठाक है वह कानवेंट स्कूलों में अपने बच्चों को भेजते हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या और उसके निदान के सम्बंध में जब खण्ड शिक्षा अधिकारी भनवापुर से जानने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल नम्बर नहीं लग रहा था।