सीएम साहब, जरा रैन बसेरों को देखिए! गरीबों के आसरे में रखे जाते हें अभिलेख, चार बजे ही लटक जाता है ताला
हमीद खान
इटवा, सिद्धार्थनगर। अफसरों का क्या, उनके बंगले तो सर्दी में गर्म और गर्मी में बेहद ठंडे होते हैं। सभी साहब बहादुर सहूलियत के सहारे कुनबे के साथ मजे में रात बिताते हैं। लेकिन गरीब आफत में है। रैन बसेरे में सरकारी अभिलेख रखे जाते हैं। अब वह मरे या जिए, साहबों पर क्या फर्क पड़ता है।
यहां इटवा तहसील में बने रैन बसेरे पर एक बैनर तो टांग दिया गया है, लेकिन वहां गरीब को आसरा नही मिलता है। उस तथाकथित रैन बसेरे में सरकारी फाइलें रखी जाती है। इसलिए सायं चार बजे कार्यालयों के बंद होते ही वहां ताला लटका दिया जाता है।
इटवा तहसील कार्यालय के एक कमरे के सामने रैन बसेरा का बैनर टांग कर प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली। लोगों की मानें तो इस भवन का ताला कभी खुला ही नहीं। गरीब तो शाम ६ बजे के बाद रैन बसेरा तलाश नही पाते। कोई वहां पहुंचा तो अपमान तय है।
प्रशासन रैन बसेरा का सही ढंग से संचालन होने की बात कह रहा है। यहां रैन बसेरा का सही उपयोग ना होने से रात में फंसे यात्रियों की हालत आसानी से समझी जा सकती है। यहां रैन बसेरा का बैनर टंगा है। सभाकक्ष तक कोई गरीब पहुंच नहीं पाता। दिन में तहसील के काम के बाद यहां शाम होते ही ताला लटक जाता है।
इस बारे में जब उपजिलाधिकारी इटवा जुबैर बेग से उन के फोन नम्बर पर बात करने की कोशिश की गई तो उन का फोन नहीं लग सका। वैसे जुबैर बेग क्या, इस मुद्दे पर कोई भी अफसर साफ बात नहीं करना चाहता है।