सिद्धार्थनगर में भी गोदी मीडिया के पत्तलकार हैं साहब जी!
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिले में रासोवादी लेखन अपने शीर्ष पर है। साहब के दफ्तर में जाइये, उनकी चाय की चुस्की मारिए, फिर साहब के प्रवचन रूपी गंगा में डुबकी लगाइये और चाटूकारिता की पत्रकारिता को पवित्र कीजिए। यही है सिद्धार्थनगर की मुख्यधारा की पत्रकारिता का असली मुकाम। सोचिए, गोदी मीडिया केवल दिल्ली में ही नही है। उसने सिद्धार्थनगर में भी अपने झंडे गाड़ रखे है।
अभी उस्का बजार थाने में एक एफआईआर दर्ज हुई। कहते हैं अरोपी ओपी सिंह एक सीनियर इंजीनीयर हैं। छोटे मोटे मामलों के मुकदमों को खबर का रूप देने वाले गोदी मीडिया के इन नारद मुनियों ने खबर बनाने की जहमत नहीं उठाई। जबकि कि खबर के नजरिये से यह सेलेबुल समाचार हे सकता था।जब अखबारों में इस खबर के न छपने की बात चली तो जो दलील दी गई उसके अनुसार पता चला कि मामला चाय पानी और सम्बंधों का था।
अभी एक महीने भी नहीं बीते जिले के एक पत्रकार पर दर्ज एक मुकदमा जो आपराधिक भी नहीं था और प्रतिद्धदंदिता में दर्ज कराया गया था, उसे छापने के लिए इन चंदबरदाइयों में होड़ मच गई थी। विभागों में बैठ कर मुफ्त की चाय चूसने वाले ये चाटुकार अब एक अफ्सर पर दर्ज मुकदमें को छापने से बचते हैं। जबकि वह अफसर यहां नौकरी भी नहीं करता है, वहीं यह नारदवंशी अपने सीनियर साथी को भी चाटुकारिता के नाम पर बदनाम करते हैं।
अब अगर उनकी पोलो खोल दी जाए तो इनमें बेचारे ऐसे भी हैं जो मुफ्त के भोजन के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की टीम का भेजन बनते देख तब तक बैठे रहते हैं, जब तक बैठ कर मुफ्त का भोजन न छक लें। कई एक तो अपने जूनियर रिपोर्टरों के यहां रात्रि में भोजन के लिए ही पहुंचते रहते हैं और बिना खाए खिसकते भी नहीं। अब रिपोर्टर बेचारा क्या करें? एक पत्तलकार साहब तो बेचारे ऐसे हैं जो पुलिस के खिलाफ कुछ भी सुनना नपसंद करते हैं। बस अपनी खबरों में उन्हीं का जयकारा लगाते रहते हैं।मानों पुलिस न होकर उनके मानस पिता जी हों।
तो साहब सिद्धार्थनगर की गोदी मीडिया को पहचानिए। इन्हें हड्डी फेंकिए और कुछ भी लिखवाइये, भौंकाइये। रेट भी ज्यादा नहीं, बस दो रोटी तथा चाय की चुस्की ही फीस है, जो मंहगी नहीं है।