जिला पंचायतः अध्यक्ष का चुनाव दम खम से न लड़ने के पीछे क्या है सपा की अंदरूनी रणनीति
भाजपा का किला उसी के अस्त्र से ढहाने के फिराक में समाजवादी खेमा।
इसलिए औपचारिक नामांकन करेगी करेगी सपा ?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सर पर है लेकिन समाजवादी पार्टी की तरफ से अब तक उसके राजनीतिक ओवेन में केवल पानी के बुलबुले ही दिखते हैं, जबकि रणनीतिक तौर पर पानी को उबाल के स्तर पर होना चाहिए था। आखिर प्रदेश में भाजपा के विकल्प के रूप में जानी जाने वाली पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर इतना सन्नाटा क्यों है ? क्या यह सरकारी खौफ से उत्पन्न हताशा है या फिर उसकी कोई रणानीति ? कपिलवस्तु पोस्ट के अनुसार इसके पीछे सुनियोजित रणनीति है, जिसे भाजपा भी अतीत में अपना चुकी है।
कौन है अध्यक्ष पद का दावेदार
समाजवादी पार्टी में इस साल भी अध्यक्ष पद के लिए केवल एक ही चेहरा सामने आ रहा है। क्यों कि चुनाव के लिए अर्थिक संसाधनों से लैस और कोई प्रत्याशी जीता ही नहीं है। वरना अन्य कई दावेदार हो सकते थे। खबर है कि सपा नेता राम कुमार उर्फ चिनकू यादव की पत्नी पूजा यादव इस पद की सशक्त और फिलहाल एक मात्र दावेदार है। चिनकू यादव ने गत चुनाव में सीट रिजर्व होने पर अपने वाहन चालक गरीब दास को अध्यक्ष निर्वाचित करा कर अपनी संघर्ष क्षमता को एक नहीं दो-दो बार साबित भी किया है। लेकिन इस बार के चुनाव में उनके हौसलों में वह उड़ान नही है, जितना गत दो चुनावों के मौसम में दिखा था।
क्यों नहीं मुकाबला करेगी सपा?
सूत्र बताते है कि गत चुनाव में योगी जी की सरकार बनने के बाद उन पर दो-दो हमले हुए। उनके परिवार की ब्लाक प्रमुखी छिनी फिर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर निर्वाचित उनके वाहन चालक को शक्तिहीन किया गया। यही नहीं भाजपा के तेवरों के चलते जिले के तमाम सपाई ब्लाक प्रमुखों को अविश्वास प्रस्ताव के चलते उनके पदों से हटाया गया। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव अभी भी सपा पर छाया हुआ है। ऐसे में काफी लम्बी रकम खर्च कर चुनाव लड़ना सपा के लिए बहुत बड़ा रिस्क माना जा रहा है। सपा सूत्रों का कहना है कि अगर विशाल धनराशि खर्च कर चुनाव लड़ा भी जय तो प्रशासन के सहयोग से सत्ताधारी दल उनकी जीत होने देगा, इसकी कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए वास्तविक मुकाबला न करने में ही समझदारी है।
क्या है सपा की रणानीति?
सपा के जिम्मेदार सूत्र बताते हैं कि इस विकट परिस्थिति में सपा ने दूसरे विकल्प पर ध्यान लगाया है। सपा सूत्रों के मुताबिक जब तक जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव होगा प्रदेश में भाजपा सरकार का कार्यकाल केवल 6 महीने ही शेष रहेगा। इसमें भी अगर आचार संहिता का समय भी निकाल दिया जाये तो नये अध्यक्ष को काम करने का मौका सिर्फ तीन महीने ही मिलेगा। सपा के लोगों का कहना है कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि अगले विधान सभा चुनावों में उनकी सरकार बन जाएगी। तब वह नव निर्वाचित भाजपा के जिला पंचायत अध्यक्ष को उसी प्रकार हटायेंगे जैसा कि अतीत में उन्होंने किया था। यदि विधानसभा चुनावें में सपा की जीत नहीं हुई तो? इस सवाल के जवाब में सपाइयों का कहना है कि तब उनके पास अगले पांच साल प्रतीक्षा के अलावा कोई चारा नहीं है। वैसे भी अगर वह आज दम खम से लड़ भी जाएं तो इस शासन में उनकी जीत की गारंटी नहीं है।
बात है साफ, औपचारिक लड़ाई लड़ेगी सपा
इस प्रकार यह साफ हो जाता है कि सपा की इस रणनीति के तहत उनका लक्ष्य दम खम से लड़ने के बजाए बस किसी तरह शेष समय काटना है। वह कहते हैं कि इस समय करोना काल के करण एक दो महीने के लिए विलम्ब से चुनाव हों तो यह और भी अच्छी बात है। इस सच्चाई का पता इससे भी चलता है कि भाजपा जहां बिना घोषणा के भी चुनाव को बेहद गंभीरता से लेकर सपा, बसपा व कांग्रेस के जिला पंचाायत सदस्यों को अपने पाले में लाने में जुटी हुई है, वहीं सपाई आराम से बैठे अपने सदस्यों को टूटते देख भी रहे हैं। सपा सदस्य भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं इसलिए उनमें कई ने अपना रेट भी खेल दिया है। जाहिर है सपा इस चुनाव को केवल औपचारिक ढंग से लेड़ेगी और भविष्य की अपनी दावेदारी कायम रखने के लिए सपा नेता राम कुमार उर्फ चिनकू यादव की पत्नी और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पूजा यादव औपचारिक रूप से पर्चा दाखिल कर सकती है।