पंचायत चुनावों को लेकर सपा नेताओं की कुर्सी लोलुपता (?) से खफा हैं खांटी कार्यकर्ता
जिला पंचायत चुनावों को लेकर सपा नेताओं व कार्यकर्ताओं के बीच नहीं दिख रहा मतैक्य
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिला पंचायत चुनावों को लेकर समाजवादी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता अपने नेताओं की चुनावी भूख से बेहद नाराज हैं। विधानसभा, लोकसभा के टिकट व महत्चपूर्ण पदों पर अपने परिजनों को बैठा देने वाले इन नेताओं की जिला पंचायत सदस्यों का पद भी हथिया लेने की मंशा को देख सपा के खांटी वर्कर बहुत नाराज हैं। इसका खुलासा शानिवार को कार्यालय पर हुई बैठक में हुआ। जहां से निकलने के बाद कार्यकर्ताओं ने अपनी भड़ास निकाली। यह तो अच्छा हुआ कि पार्टी के जिला अध्यक्ष लालजी यादव ने बैठक में एक ऐसी बात कह दी जिससे कार्यकर्ताओं का गुस्सा ठंडा पड़ गया, वरना कल की बैठक में कई सपा नेताओं के बेनकाब होने को कोई रोक नहीं सकता था।
शनिवार की बैठक में एजेंडे पर वार्ता के बाद जब जब त्रिस्तरीय चुनावों की बात चली तो जमीनी कायकर्ताओं का मूड बिगड़ने लगा। दरअसल इस चर्चा में कई बड़े नेता चाहते थेकि उनके परिजनों द्धारा लड़ने वाली संभावित सीटों पर कार्यकर्ता चुनाव न लड़ें । जबकि कार्यकर्ता चाहते थे कि बड़े नेता जो खुद एमपी एमएलए के चुनाव लड़ते हों, वह नीचे के चुनाव के लिए अपने कार्यकताओं को लड़ायें, न कि अपने परिजन को।
कहते हैं कि वार्ता के दौरान जब एक नेता व पूर्व विधायक ने परिवाद का अप्रत्यक्ष बचाव करते हुए यह कहा कि सभी चुनाव लड़ें, जें जीत कर आयेगा वहीं असली सपाई होगा, इस पर कहते हैं कि सपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष सरफराज भ्रमर ने यह जवाब दिया तो फिर यही बात विधानसभा चुनावों में लागू हो जाये तो असलियत जाहिर हो जाएगी। इस पर कार्यकर्ताओं ने ठहाका लगाया, क्योंकि वह पूर्व विधायक जी भी गत चुनाव हारे हुए थे।
दरअसल कार्यकर्ताओं कि मंशा यह थी कि बड़े चुनाव लड़ने वाले नेता छोटे चुनावों में भी यदि अपने परिवार को उतारते रहेंगे तो आखिर वर्कर कहां जायेगा? उनके उदाहरणों से लग रहा था कि वे पूर्व विधायक पूर्व विधायक विजय पासवान, पूर्व प्रत्याशी चिनकू सहित पूर्व विस अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय आदि से कुछ ज्यादा ही नाराज थे, अपने परिजनों को तमाम पदों पर लडाया। इससे कार्यकर्ताओं का हक मारा गया।
बहरहाल नेता बनाम कार्यकर्ता की यह लड़ाई तूल पकड़ती इससे पूर्वजिलाध्यच लालजी यादव ने हालात संभाला। उनका कहना था कि नेता जी (मूलायम सिंह) सभी सीटें केवल जीतने केलिए नहीं लड़ाते थे। बल्कि वह हार निश्चित जान कर भी कार्यकर्ताओं को इसलिए लड़ा देते थे ताकि पार्टी का जनाधार और वर्करों का मनोबल बढ़ा रहे।
बहरहाल लालजी की इस बात का असर पड़ा औरविवाद की संभावना गायब हो गयी, मगर इतना तो साफ हो ही गया कि इस बार उन बड़े नेताओं का अपने परिजनों सा करीबी चाटूकारों को जिता पाना कठिन है, जो आधा आधा दर्जन परिजन अथवा करीबी को मैदान में उतार देते थे। सो सदि बड़े नेता नहीं सुधरे तो पार्टी की सेहत बिगड़ कर ही रहेगी, ऐसा राजनीतिक प्रेक्षकों का मनना है।