Exclusive News- जानिएः पंचायत चुनाव में अनुसूचित व पिछड़ा वर्ग की आरक्षित सीटों पर कैसे लड़ रहे सवर्ण परिवार के सदस्य

March 8, 2021 1:33 PM0 commentsViews: 1622
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नजीर मलिक

मो. युनुस अपनी पत्नी अशरा बानू के साथ (ऊपर), भाकियू नेता विश्वम्भर गौड, अपनी बहू राजश्वरी व बेटे राजेश के साथ (नीचे)

 

सिद्धाथनगर। पंचायत चुनाव सिर पर है। जिला पंचायत सदस्य, बीडीसी और ग्राम सभा की जो सीटें अनुसूचित व पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हो गई हैं, वहां के सामान्य वर्ग यानी सवर्ण समाज के लोग चुनाव लड़ने से वंचित हो चुके हैं। सरकारी नियम कानून ने आरक्षित सीटों पर समान्य वर्ग को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी है। मगर कुदरत का करिश्मा देखिए की जिले में लगभग एक दर्जन सवर्ण परिवार ऐसे है जिन्हें भाग्य का खेल ने चुनाव लडने का मौका दे दिया है।इससे उन परिवारों की बांछें खिल गई हैं

सीट पिछडा वर्ग की और लड़ रहा खान परिवार

सदर तहसील की ग्राम पंचायत बर्डपुर नम्बर 11 ऐसी ही एक ग्राम पंचायत है। जिसमें बीस राजस्व ग्राम शामिल है और आबादी लगभग 25 हजार है। यह ग्राम पंचायत इस बार पिछडी जाति के लिए रिजर्व हो चुकी है। फलतः यहां के पूर्व प्रधान मो. यूनुस  सवर्ण हैं। नियमानुसार वह चुनाव नहीं लड़ सकते। मगर उन्हें इसका कोई गम नहीं। यदि वे खान होकर नहीं लड़ सकते तो उनकी पत्नी तो लड़ेंगी ही।

अब आप सोच रहे होगें कि पिछड़ी सीट पर सवर्एा कैसे लड़ सकता है, तो जान लीजिए की मो. यूनुस सवर्ण (तुर्क खान) हैं और उनकी पत्नी अशरा बानू पिछड़ा वर्ग (अंसारी) से हैं। और संविधान कहता है कि सवर्ण से शादी करने पर किसी अनुसचित या पिछड़ा वर्ग की महिला की जाति नहीं बदलती। बस वह इसी नियम का लाभ लेकर अपनी पत्नी को चुनाव लड़ा रहे हैं।

दरअसल मो. युनुस ने 1975 में अशरा बानू से अर्न्तजातीय विवाह किया था। उनका कहना है कि उनका धर्म जात पात में विश्वास नहीं करता। इसी के चलते उनकी शादी अंसारी फैमिली में हुई। जब मंडल आयोग लागू हुआ तो उनकी पत्नी नियमानुसार ओबीसी क्लास में मानी गईं। इस प्रकार उन्हें आज यह सुविधा मिल गई।

बर्डपुर 10 की कहानी और भी रोचक

इसी तहसील के ग्राम पंचायत बर्डपुर नम्बर 10 की कहानी और रोचक है। सह सीट अनुसूचित जामि के लिए आरक्षित है। नियमानुसार यहां से न तो सवर्ण लड़ सकता है और न ही पिछडा वर्ग का कोई व्यक्ति। परन्तु कुदरत का खेल देखिए किसान युनियन के नेता रहे पिछडी जाति के विश्वम्भर गौड़ का परिवार यहां से चुनाव लड़ रहा है। विश्वम्भर गौड़ पिछले पांच सालों से प्रधानी का चुनाव लड़ने के लिए फील्ड बना रहे थे। मगर जब आरक्षण सूची आयी तो उनका गांव अनुसूचित के लिए रिजर्व हो गया। ऐसे में काम आयी उनकी बहू रजेश्वरी देवी।

दरअसल बी.ए. एवं बीटीसी पास राजश्वरी देवी देवी दलित परिवार से हैं। शिक्षा के दौरान उनका विश्वम्भर के बेटे राजेश गौड़ से प्रेम हो गया और आठ वर्ष पूर्व दोनों ने शादी कर ली। संविधान के अनुसार गौड़ परिवार में शादी होने के बाद भी राजेश्वरी देवी को अनुसूचित सीट से चुनाव लड़ने का अधिकार है। विश्वम्भर गोड़ बताते हैं कि यह तो भारत सरकार की देन है कि आज उनकी बहू चुनाव लड़ने के लिए अर्ह है। वह खद भी बाहर निकल कर वोट मांगेगी।

जिले में लगभ्खग दो दर्जन सीटों पर यही स्थिति

है कि इस प्रकार जिले में एक से दो दर्जन परिवार ऐसे हैं जो जाति सर्टीफिकेट के माध्यम से इस प्रकर का लाभ पा सकते हैं। खबर है कि बांसी तहसील का एक सवर्ण परिवार भी इस नियम का लेभा लेने की तैयारी कर रहा है। इसी प्रकार डुमरियागंज इलाके में एक मुस्लिम परिवार में कोर्ट मैरिज करने वाली विश्वकर्मा जाति की एक महिला भी चुनाव लड़ने के लिए कानून की जानकारी ले रही है। इटवा में भी इस प्रकार के दो मामले चर्चा में हैं। खैर अभी तो तैयारी चल रही है। आगे देखिए  इस प्रकार के कितने चेहरे सामने आते हैं।

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