पंचायत चुनावः गंवई चौपालों पर बैठ माहौल बनाने के लिए जुटने लगीं ‘सियासी गपोड़ियों’ की टोलियां
— जानिये किस किस ट्रिक से अपने पक्ष में माहौल बना रहे भावी उम्मीदवार
— मतदाताओं की इच्छा भांप उन्हें उसी तरह के लालीपाप देने के नुस्खे पर किया जा रहा अमल
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की आहट अब कुछ ज्यादा स्पष्ट सुनाई देने लगी है। इसी के साथ जिले की लगभग एक हजार ग्राम पंचायतों में ग्राम प्रधान, बडीसी और जिला पंचातय सदस्यों का चुनाव लड़ने वालों की गतवधियां भी शुरु हो गईं हैं। गांवों की चौपालों, नुक्कड़ों पर बैठने वाले सियासी गपोंड़ियों की टलियां अब अपने अपने अनुसार चुनाव का गुए गणित बताने लगीं हैं। इन्हीं के बीच चुनावबाज भी अप्रत्यक्ष रुप से बातें प्रचारित कर अपने लिये माहौल बनाने में लग गये हैं। इसके लिए भांति भांति के ट्रिक आजमाए जा रहे हैं।
गपोड़ियों की चौपाल में क्या हो रहा है
चुनाव की तैयारियों में गांव के बातचीत और गप्पें मारने में माहिर और शातिर लोगों की बन आई है। चुनाव लड़ने के इच्छुक अनेक भावी उम्मीदवारों ने ऐसे गपोंड़ियों को पटा रखा है। ऐसे लोग उम्मीदवारों से दूर रह कर घूम घूम कर उन स्थानों पर जाते हैं जहां गंवई लोगों आम तौर पर बैठते हैं। मसलन चाय पान की दुकान, किसी पोखरे के भीठे अथवा चौपाल आदि पर, जहां भी दस पांच लोगों से मुलाकात संभव हो। यह गपोड़ी न्यूट्रल भाव से वहां बैठ कर अपने भावी उम्मीदवार के गुण दोष की चर्चा करने लगते हैं और अधिकांश को भ्रष्ट बताते हैं इन भ्रष्टों में उनका उम्मीदवार भी शामिल होता है। यह गपोड़ी गैंग का हिस्सा होता है।
अन्त में वोटरों को फांसने के लिए बिछाते हैं जाल
रणनीति के तहत अधिकांश उम्मीदवारों को महाभ्रष्ट घोषित करने के बाद उनमें से कम भ्रष्ट चुनने पर बहस होती है। इस बहस में यदि कोई किसी व्यक्ति को कम भ्रष्ट की सूची में उलवाना चाहता है तो गपोड़ी गैंग के दो तीन अन्य सदस्य उसके कुछ कथित दोष को शामिल कर उस भावी उम्मीदवार को महाभ्रष्ट ही साबित करता रहता है। इस दौरान जैसे ही गपोड़ियों को प्रायोजित प्रत्याशी का नाम आता है गपोड़ी गैंग धीरे से एक एक कर उनका समर्थन करता है । इस प्रकार वह पहले चरण में जनता का माइंड मेकप कर देता है। इस काम के लिए गपोड़ी गैंग को अच्छी रकम मिलती है।
दूसरा चरण दारूबाजों का
इनसे काम लेने के लिए प्रत्याशी पहले दो तीन समझदार पियक्कड़ों को अपने खमे में लाता है। इसके बाद वे दारूबाज गांव कस्बे के अन्य दारूबाजों से मिलते हैं, मगर वे अपने को किसी उम्मीद का समर्थक नहीं बताते हैं। वे इन दारूबाजों को बताते है कि जो उम्मीदवार उनके लिए सबसे अच्छी दारू और मटनचिकन की व्यवस्था करेगा वोट उसी को दिया जाए।फिर वे बातों की बातों में प्रत्याशियों से बात चीत का जिम्मा ले लेते हैं। फिर एक दिन बताते हैं कि उनकी ‘फलां’ उम्मीदवार से बात हो गई है। नामांकन से चुनाव तिथि तक उसने दारू मुर्गा का जिम्मा लिया है। फिर दारू गैंग का नेता उन्हें उसी दिन दावत देकर अपने प्रत्याशी के लिए वचन ले लेता है। दारूबाजों को पता भी नहीं चलता कि उसका वोट किसी खूबसूरती से खरीद लिया गया है।
चुनाव कर्मी भी पट जाते हैं
गत तीन चुनाव में चुनाव अधिकारी रहे एक अफसर बताते हैं कि यह सब तो होता ही है, इसके अलावा चुनाव कर्मी भी यह काम करते हैं। जैसे ही मतदान टोली गांव में पहुंचती है , गांव को सबसे चालाक उम्मीदवार चुनाव अधिकारी को पटा लेता है। वह उनकी आवाभगत जम कर करता है। दो एक कर्मियों की दूसरे प्रकार से सेवा कर देता है। इस प्रकार वह मतदान के समय अपनी पसंद के प्रत्याशी के मतदान एजेंट के इशारे पर विरोधी के मतदाताओं के वोट को भी कई ट्रिक से अपने पक्ष में डलवा लेता है। लेकिन वह केवल निरे अनपढ़, बुजुर्ग और बेहद भोले मतदाताओं के साथ ऐसा कर सकता है।
तो आप सावधान हो जाइये। लोकतंत्र के महोत्सव में ऐसे शातिर लोग आपका वोट खरीद सकते हैं और आपको पता तक न लगेगा कि हमारा वोट कैसे बिक गया।