वाह सईद भाई! बदलाव की जिद ऐसी कि खुद तो प्रधानी न लड़ सके, मगर दिग्गजों को धूल चटा कर ही रहे
सीट आरक्षित हुई तो विदेश में रह रहे बचपन के दोस्त की पत्नी को चुनाव लड़ा दिया मुहम्मद सईद ने
अब कहां मुम्बई और कहां कारोबार, अब तो गांव संग जीना मरना और गांव का कर्ज अदा करना है- मुकम्मद सईद
अनीस खान
सिद्धार्थनगर। जानिये मुहम्मद सईद उर्फ सईद भाई की सियासी जंग की रोचक कहानी को। ये 33 साल के नौजवान हैं, महाराष्ट्र के मालेगांव में अच्छा खासा लाखों का टर्नओवर वाला करोबार है। एक बार मुम्बई से घर आने पर गांव में ऐसी राजनीति देखा कि गांव की सूरत बदलने की जिद ठान लिया और एक झटके में भरा पूरा कारोबार भाइयों के हाथ छोड़ अपने गांव के होकर रह गये। समाजसेवा करते पंचायत चुनाव का एलान हुआ तो उनका गांव पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हो गया। मगर गांव में बदलाव लाने की उनकी जिद बनी रही। आनन फानन में उन्होंने अपने बचपन के एक दोस्त की पत्नी को तैयार कर चुनावी जंग में उतार दिया। जम कर जंग हुई जिसमें बड़े बड़े दिग्गज खेत रहे और इस नौजवान ने म़ित्र की पत्नी को प्रधानी का ताज पहना कर ही दम लिया।
क्यों लात मार दिया लाखों के कारोबार को
बर्डपुर ब्लाक की ग्राम पंचायत बर्डपुर 11 जिले की ग्राम पंचायतों में से है। इसमें 19 राजस्व ग्राम शामिल है। जिसमें मधुबेनियां चौराहे का भी एक भाग भी शामिल है। यहां वोटरों की तदाद लगभग 7 हजार है। इसी ग्राम पंचायत के पिपरी गांव के रहने वाले नौजवान हैं मुहम्मद सईद, लोग जिन्हें प्यार से सईद भाई कहते हैं। मुहम्मद सईद का पूरा परिवार महाराष्ट्र के मालेगांव में रह कर अच्छा कारोबार करता है। सईद भाई भी करोबार में मगन थे। गांव से उतना ही वास्ता था जितना अक्सर मुम्बइयों का होता है। चार साल साल पूर्व सईद भाई गांव आये हुए थे। उन्होंने गांवों की राजनीति तथा पिछड़ापन देखा तो ग्राम पंचायत की सूरत बदलने के लिए मुम्बइया करोबार को लात मार दिया और गांव में परेशानहाल लोगों की मदद में जुट गये।
आरक्षण ने तोड़ दीं सभी उम्मीदें, लेकिन…
तीन साल की जनसेवा के बाद वे प्रधान बनने की सोचने लगे थे। बकौल मुहम्मद सईद यहां आकर उन्होंने देखा कि गांव में मूलभत सुविधाओं की स्थापना के लिए प्रधान होना जरूरी है। इसलिए गत वर्ष उन्होंने प्रधानी का चुनाव लड़ने का मन बनाया और लोगों से जनसम्पर्क में जुट गये। मगर पिछले दिनों जब पंचायत चुनावों की घोषणा हुई तो उनकी उम्मीदों को झटका लगा, उनकी ग्राम पंचायत पिछड़ा वर्ग लिए आरक्षित हो गई। अब वे क्या करते अचानक उन्हें अपने बचपन के साथी सिराजुद्दीन की याद आई। मगर वह विदेश में था। आनन फानन में सिराजुद्दीन से बात कर उनकी पत्नी रहीमुन्निशां को उम्मीदवार बनाने की राय बन गई।
कई दिग्गजों को मिली शिकस्त
चुनाव में रहीमुन के सामने 10 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से कई दिग्गज भी शामिल थे। सईद की प्रत्याशी रहीमुन के समने कई बार प्रधान रहे चुके दो व्यक्ति थे। भारी वोट बैक से भरपूर मेकरानी बिरादरी के फरूख मेकरानी और दीपेन्द्र चौधरी थे। मैदान में पूर्व प्रधान मो. यूनुस की पत्नी अशरा बानों भी थीं जो खुद प्रधान रही थीं। सर्दद के ही गांव के निवासी और वर्तमान प्रधान फारूख खां के भी उम्मीदवार लड़ रहे थे। लड़ाई बड़ी प्रतिष्ठा की बन गई थी। मगर जब परिणाम आया तो सभी दिग्गज ध्रराशायी हो गये। और सईद भाई की मेहनत ने रहीमुन्निशां को प्रधान बनवा दिया। जीत का प्रमाण पत्र सईद ने खुद प्राप्त किया। जैसा की होता है गांवों का चुनाव जीत कर मुम्बइये फिर शहर लौट जाते हैं। क्या यहां भी ऐसा ही होगा? इस सवाल के जवाब में मुहम्मद सईद कहते हैं कि अब तो जीना मरना गांव में ही होगा। कारोबार परिजन देखेंगे मै गांव की सूरत बदलूंगा। बस अब तो जनसेवा का फर्ज तथा गांव का कर्ज अदा करते रहना है।