कठेला क्षेत्र का अनीता कांडः छात्रा केे अपहरण या मौत के जिम्मेदारों को कौन बचा रहा, पुलिस या नेता?
— ढेबरूआ पुलिस की भूमिका पर उठ रहे कई सवाल, एक पुलिस अफसर और कुछ राजननीतिज्ञ बचाने में लगे हैं
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिले के कठेला क्षेत्र की फर्स्ट ईयर की छात्रा का अपहरण गत तीन सितम्बर को हो गया। तब से अब तक डेढ़ महीने हो चुके मगर न छात्रा मिली न उसके साथ घर से गायब हुए जेवर। वह जिंदा भी है, या नहीं। इसका कोई पता नही चल पा रहा है । मामले में ढेबरुआ थाने की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। चर्चा यह भी है कि एक चर्चित संगठन के नेता के इशारे पर पुलिस काम कर रही है। उन्हें सत्ताधारी राजनतिज्ञों को भी संरक्षण मिल रहा है। लड़की के परिजन भाग भाग कर रोज अफसरों के यहां चक्कर लगाते हैं, मगर कोई सुनने करने वाला नही है।
दर्ज प्राथमिकी एवं अन्य श्रोतों से मिली जानकारी के मुताबिक ढेबरूआ थाने के कठेला कोठी की रहने वाली 17 साल की अनीता (काल्पनिक नाम) 11वीं की छात्रा थी। उसका स्कूल के एक लड़के दिलीप अग्रहरि से रागात्मक सम्बंध था। संयोग से दोनों के बीच की एक आडियो क्लिप स्कूल के एक टीचर के हाथ लग गई। जो कतिपय अन्य लोगों के संज्ञान में आ गई। उक्त टीचर की भारी गलती यह है कि उसने यह बात दोनों के परिजनों को नही बताई।
लड़की ताेे गई लाखाेें के जेेवर भी लेे गई
बहरहाल दिलीप के एक साथी के बड़े भाई जो एक चर्चित संगठन के नेता कहे जाते हैं, इनके दबाव में उक्त विडियो क्लिप हासिल कर ली गई। इसके बाद दिलीप ने अनीता को समझाया कि यदि वह क्लिप मां बाप को पता चल गया तो बुरा होगा। इसी भय से उसने अनीता को लेकर भागने का फैसला कर लिया और 2/3 सितम्बर की रात को दिलीप अग्रहरि अनीता को लेकर घर से भाग गया। अनीता जाते जाते घर से 10 लाख के जेवर भी ले गई।
अनीता और दिलीप अंंतिम बार अमौसी एयरपोर्ट तक देेखेे गये
तीन सितम्बर को जब दोनों के भागने की जानकारी अनीता के परिजनों को मिली तो उन्होंने ढेबरूआ थाने की पुलिस चौकी कठेला को लिखित तहरीर दी, पहले तो पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया, मगर बाद में पुलिस ने काफी सामाजिक दबाव और हो हल्ले के बाद सात सितम्बर को मुकदमा दर्ज कर लिया । इसमें दिलीप व उसके सहयोग में लगे दोस्तों विक्की व सुरेन्द्र के अलावा अनीता का जेवर खरीदने वाले सुनार प्रशांत व जिस गाड़ी से दोनों भागे थे, उसके चालक हलीम को गिरफ्तार भी कर लिया गया। हलीम दोनों को लखनऊ अमौसी हवाई अडडे पर उन्हें छोड़ कर आया था। लेकिन दिलीप और अनीता का कोई पता नहींं है।
अब सवाल खड़ा होता है पुलिस की कार्यशैली पर?
पीड़ित पक्ष का आरोप है कि पुुलिस के लोग दिलीप पक्ष के लोगों को कुछ नेताओं के कहने पर संरक्षण दे रहेे हैंं। इस केस में सत्ता पक्ष के एक चर्चित संगठन के नेता का भाई भी अरेस्ट है। इसलिए कुछ लोग पुलिस पर दबाव बना कर केस को रफा दफा करने के प्रयास में हैं। लड़की के भाई का तो यहां तक कहना है कि बात सुननेे की दूूर सीओ साहब तो उन लोगों को देखना तक पसंद नहीं करते। वैैसे आम लोगोंं का कहना है कि उक्त नेेता के पास से कुुछ जानकारी जरूर मिल सकती हैै।
मामले में आया नया मोड़
इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब उस क्षेत्र से गुजरने वाली बूढ़ी राप्ती नदी में ११ अक्टूबर को एक लड़की की लाश पाई गई। ढेबरूआ थाने की पुलिस लाश को लेकर पुलिस चौकी पर आयी। रास्ते में ही पीड़िता का घर पड़ता था। पुलिस को भली भांति मालूम था कि यहां की एक छात्रा गायब है, मगर उसने पीड़िता के परिजनों को बुला कर लाश की शिनाख्त करने के बजाए पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। बाद में अनीता के परिजनों को पता चला तो उन्होंने पास्टमार्टम के बाद शव को पहचानने के लिए देखा और आशंका व्यक्त की , कि वह अनीता ही लगती है। उन्होंने शत प्रतिशत विश्वास से इसलिए नहीं कहा क्योंकि तब तक शव खराब हो कर विकृत हो चुका था।फिर भी उसकी उगलियों और शाररिक बनावट के आधार पर उसे अनीता ही बताया। अब पाठक गण खुद सोचें कि यदि पुलिस ने थाने पर ही लाश की पहिचान करा दी होती तो संभव है कि रहस्य से पर्दा उठ जाता।
पुलिस ने ऐसी गलती क्यों की ?
इस बारे में कक्षेत्रीय लोगों का कहना है कि पुलिस सियासी दबाव में काम कर रही है। बहरहाल यह बात गलत भी हो तब भी लाश बरामद होने के बाद उसकी शिनाख्त न कराना अक्षम्य अपराध है। जबकि पुलिस का मालूम हो कि लाश की ही उम्र की एक लड़की उसी क्षेत्र से गायब हो। क्षेत्रीय जनों की मांग है कि पुलिस अधीक्षक इस मामले की जांच एक टीम बना कर कराएं तथा थानाध्यक्ष व जांच अधिकारी को इस लापरवाही के लिए दंडित करें। समाचार लिखे जाने तक मुख्य अभियुक्त फरार है और लड़की के मां बाप व भाई अपनी बेबसी पर खून के आंसू बहा रहे हैं।